मिर्जा ग़ालिब पर केन्द्रित लोकप्रिय दूरदर्शन श्रृंखला

लखनऊ

 27-03-2019 09:30 AM
द्रिश्य 2- अभिनय कला

उर्दू-फ़ारसी के सर्वकालिक महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब को गुलज़ार, नसीर और जगजीत सिंह ने 80 के दशक के अंत में दूरदर्शन में शुरू की गई लोकप्रिय टीवी सीरीज के माध्यम से सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि दी। इस टीवी सीरीज को देखने के बाद युवा ग़ालिब से इतने प्रभावित हुए कि आज भी कई युवा इनकी गजलों को सुनते हैं। वहीं मिर्जा ग़ालिब का रामपुर से भी एक गहरा संबंध रहा था क्योंकि उन्होंने अपने लेखों में कई बार कोसी नदी के मीठे पानी और रामपुर के स्वादिष्ट भोजन के बारे में उल्लेख किया हुआ है। उन्होंने रामपुर और रामपुर के नवाबों की प्रशंसा में फ़ारसी और उर्दू क़सीदा और क़िताह दोनों लिखा था। साथ ही आज भी उनके साहित्य रजा लाइब्रेरी में मौजूद है। मिर्जा ग़ालिब के रामपुर से संबंध के बारे में और अधिक जानने के लिए आप प्रारंग के इस लिंक पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।

मिर्ज़ा ग़ालिब का कला, प्रेम, समाज, संस्कार, धर्म और जीवन पर आधुनिक दृष्टिकोण था। इसलिए उनका काव्य ज्ञान आज भी काफी महत्वपुर्ण है। वहीं दूरदर्शन सीरीज “मिर्ज़ा ग़ालिब” में प्रदर्शित ग़ालिब के विचार वर्तमान की पीढ़ी के रचनात्मक विचारों में गहरा प्रभाव डालती है। वहीं बजट सीमा और कम निर्माण मूल्य के साथ शुरू किया गया यह सीरीज सबसे प्रगतिशील प्रयास था।

मिर्जा ग़ालिब साहब के जीवनकाल के दौरान ही मुगल साम्राज्य समाप्त हो गया था और अंग्रेजों द्वारा 1857 के महान विद्रोह के बाद उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप से हटा दिया गया था। मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा 1857 के महान विद्रोह के समय और उसके दौरान (ग़ज़ल के नाम से जानी जाने वाली) कई कविताएँ लिखीं, जिसके कारण भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना हुई थी। मिर्ज़ा ग़ालिब को अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र II द्वारा "दबीर-उल-मुल्क" और "नज़्म-उद-बदर" की उपाधि दी गई थी।

एक एपिसोड में, जब ग़ालिब की पत्नी उन्हें दिल्ली छोड़ने और आगरा लौटने के लिए मनाती है, क्योंकि उनका विचार था कि ग़ालिब राजधानी में शांतिपूर्वक नहीं रह पाएंगे। जिस पर ग़ालिब कहते हैं, कि "बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे", अर्थात दुनिया मेरे सामने एक बच्चों का खेल का मैदान है, रात और दिन यह नाटकशाला मेरे सामने अभिनीत करती है। वास्तव में उनके द्वारा उस समय के समाज में व्यापक रूप से व्याप्त साम्प्रदायिक असामंजस्य पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की गयी थी।

वहीं टीवी शो मिर्ज़ा ग़ालिब में ग़ालिब की भूमिका निभाने वाले प्रसिद्ध फिल्म और थिएटर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह इसे श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, शेखर कपूर और केतन मेहता द्वारा निर्देशित फिल्मों में से सबसे उत्कर्ष्ट और अपने द्वारा किये गये इस किरदार को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मानते हैं। गुलजार द्वारा लिखित और निर्देशित यह शो 1988 में प्रसारित किया गया था, जो ना केवल भारत में प्रसिद्ध हुआ, बल्कि पाकिस्तान में भी काफी लोकप्रिय हुआ था।

शो की सबसे प्रमुख विशेषता ग़ज़लें थीं जिन्हें संगीतमय युगल जगजीत सिंह जी और चित्रा सिंह जी ने गाया था। वहीं गुलज़ार जो खुद सबसे प्रतिष्ठित गीतों को लिखने के लिए जाने जाते हैं, ने स्वर्गीय जगजीत सिंह के साथ काम कर गज़ल प्रेमियों को अपनी गजलों से मोहित कर दिया। टीवी शो "मिर्ज़ा ग़ालिब" के अन्य कलाकारों में तनवी आज़मी (उमराव बेगम मिर्ज़ा ग़ालिब की पत्नी के रूप में) और नीना गुप्ता (नवाब जान-मिर्ज़ा ग़ालिब के शिष्टाचार प्रेमी के रूप में) शामिल हैं। आज की तारीख में, मिर्जा ग़ालिब न केवल भारत और पाकिस्तान में, बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। उनकी मृत्यु 21 फरवरी, 1879 को दिल्ली, ब्रिटिश भारत में हुई थी।

संदर्भ :-

1. https://rampur.prarang.in/posts/2301/The-famous-poet-Mirza-Ghalib-was-the-master-of-two-Nawabs-of-Rampur
2. https://indianexpress.com/article/entertainment/television/mirza-ghalib-tv-show-5000763/
3. https://nettv4u.com/about/Hindi/tv-serials/mirza-ghalib



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