हजारों वर्षों से, सड़कों, इमारतों और भवनों के निर्माण में रेत और बजरी का उपयोग किया जाता आ रहा है। आज, रेत और बजरी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। खनन संचालक, संज्ञानात्मक संसाधन एजेंसियों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं कि रेत खनन एक सही तरीके से संचालित हो। परंतु बढ़ती मांग के चलते अत्यधिक अवैध रेत खनन नदियों के क्षरण का कारण बनता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार 2020 तक, भारत में 1.4 बिलियन टन रेत की आवश्यकता होगी। बढ़ते खनन से नदियों का तल कम होता जा रहा है। जिससे किनारों का क्षरण हो रहा है।
तटीय क्षेत्रों में रेत के रिक्तीकरण से नदियों का गहरीकरण होता जा रहा है और नदी के मुहाने का विस्तार होता जा रहा है। इस कारण समुद्र से खारा-पानी नदियों में भी मिल सकता है। समुद्र के करीब के स्थानों पर खारा पानी नदियों के मीठे पानी में मिल कर शरीर में घुस सकता है और नुकसान पहुंचा सकता है। इतना ही नही अत्यधिक रेत खनन से पुल, नदी के किनारों और आस-पास की संरचनाओं को भी खतरा रहता है। रेत खनन से आसपास के भूजल प्रणाली और नदी का स्थानीय लोगों द्वारा उपयोग भी प्रभावित होता है। रेत खनन से अतिरिक्त वाहन यातायात उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है और स्थानीय वातावरण को नुकसान पहुंचाता है।
लगातार बढ़ते रेत के खनन से कई हेक्टेयर उपजाऊ भूमि प्रति वर्ष बंजर होती जा रही है। साथ ही साथ तटवर्ती क्षेत्रों में मूल्यवान लकड़ी के संसाधन और वन्यजीव निवास भी खोते जा रहे हैं और नदियों में मत्स्य उत्पादकता, जैव विविधता को भी नुकसान होता है। जलीय आवासों पर रेत खनन का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव तल में होती कमी और अवसादन हैं, जो जलीय जीवन पर पर्याप्त नकारात्मक प्रभाव डालता हैं। बढते हुए खनन के साथ वनस्पति का पूर्ण निष्कासन, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और मृदा प्रोफ़ाइल का विनाश होता जा रहा है। जिसके परिणामस्वरूप पशु आबादी में कमी आती जा रही है।
रेत के खनन से नदी के किनारे गहरे गड्ढों में बदलते जा रहे है, जिसके परिणामस्वरूप भूजल स्तर कम होता जा रहा है। खनन गतिविधियों से नदी की जल गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ रहा है। खनन स्थल पर अक्सर अवसादन और अतिरिक्त खनन सामग्री, कार्बनिक पदार्थ, तेल फैलना, खुदाई मशीनरी और परिवहन आदि के कारण अल्पकालिक मैलेपन में वृद्धि देखी जा सकती है और इस कारण जलीय जीवन की विषाक्तता भी बढ़ जाती है। उत्खनन स्थल पर नदी के किनारे और तटबंध के कटाव से पानी में निलंबित ठोस पदार्थ बढ़ जाते हैं और बहाव कम हो जाता है इस कारण जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। खनन बढ़ने से जल जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र, प्राकृतिक सौंदर्य, नदियों और झीलों की सुंदरता ये सभी नष्ट होते जा रहे है।
अत्यधिक रेत खनन नदी का मार्ग बदल सकता है, किनारे नष्ट हो सकते हैं और बाढ़ को जन्म दे सकता है। यह भूजल पुनर्भरण को प्रभावित करने के अलावा जलीय जानवरों और सूक्ष्म जीवों के आवास को भी नष्ट कर देता है। रेत के निष्कासन पर दिशानिर्देश कहते हैं कि हटाए गए रेत की मात्रा इसकी पुनःपूर्ति दर और नदी की चौड़ाई के अनुपात में होनी चाहिए। परंतु बढ़ती मांग के कारण अवैध खनन तेजी से होता जा रहा है। कुछ राज्य निर्माण उद्योग की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए चट्टानों और खदान के पत्थरों को कुचलकर उत्पादित रेत जैसे विकल्पों की खोज कर रहे हैं। परंतु अभी भी अवैध रेत निकासी के बढ़ते हुए करोबार को रोकने के लिये सुधारात्मक कदम बहुत कम उठाएं गये हैं। केरल सरकार द्वारा अवैध रेत खनन को नियंत्रित करने के लिए निम्न कदम उठाए गए है:
• जिले में अवैध रेत खनन से संबंधित शिकायतों को दर्ज करने के लिए कलेक्ट्रेट नियंत्रण कक्ष में एक हर समय उपलब्ध शिकायत कक्ष स्थापित किया गया है। इसके अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) द्वारा अवैध खनन जांच के लिए गठित राजस्व को उचित निर्देश दिए जाएंगे।
• अवैध खनन के मामलों में तहसीलदारों की छापेमारी जिम्मेदारी होती है और उन वाहनों को जब्त कर लिया जाता है जो अवैध गतिविधि में संलग्न हैं तथा इस पूरे मामले के बारे में जिला कलेक्टर को सूचित किया जाता है।
• नियंत्रण कक्ष से प्राप्त जानकारी के अनुसार सर्किल इंस्पेक्टर या सब इंस्पेक्टर छापेमारी करके अवैध गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम उठाते है।
• जब्त की गई रेत को बाद में सरकारी दरों के अनुसार बेच दिया जाता है।
यदि उपरोक्त नियमों का सख्ती से पालन किया जाये तो रेत के अवैध खनन को रोका जा सकता है और पर्यापरण को बचाया जा सकता है।
संदर्भ:
1. http://threeissues.sdsu.edu/three_issues_sandminingfacts01.html
2. https://bit.ly/2XX7CGT
3. https://bit.ly/2F07YDR
4. https://bit.ly/2XXyc2o
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