29-30 दिसबंर, 1916 लखनऊ के लिए ऐतिहासिक दिन थे। इन दिनों यहां लखनऊ समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक महानायक एकत्रित हुए। लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन पर चरमपंथी और नरमपंथी दोनों दलों ने अपने आंतरिक कलह को भूलाकर एक साथ भाग लिया। इस अधिवेशन में बालगंगाधर तिलक प्रमुख थे। लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर, दोनों गुटों के नेता राष्ट्रीय आंदोलन के वरिष्ठ नेताओं का स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे। बालगंगाधर तिलक प्रमुखतः चरमपंथी दल से थे किंतु इनके स्वागत के लिए यहां दोनों गुटों के मध्य प्रतिस्पर्धा लगी हुयी थी।
लखनऊ में कांग्रेस सत्र के लिए सभी व्यवस्था, प्रशासन और प्रबंधन नरमपंथियों द्वारा की गयी थी। इन्होंने तिलक को चारबाग रेलवे स्टेशन से कार्यक्रम स्थल तक ले जाने के लिए कार की व्यवस्था की थी। किंतु चरमपंथी युवा इन्हें अपने कंधों पर बैठाकर कार्यक्रम स्थल तक ले जाना चाहते थे, इसलिए इन्होंने कार के टायर पंचर कर दिये। चरमपंथी दल में अधिकांशतः युवा शामिल थे जो तिलक जी को अपना भगवान मानते थे। इन युवाओं में से एक शाहजहाँपुर के किशोरी राम प्रसाद (जिन्हें बाद में क्रांतिकारी राम प्रसाद 'बिस्मिल' के नाम से जाना गया) भी थे। इनके द्वारा काकोरी काण्ड का नेतृत्व भी किया गया था। चरमपंथी युवाओं ने तिलक जी के लिए घोड़े के रथ की व्यवस्था कर दी, जिसमें से इन्होंने घोड़ों को हटाकर रथ को स्वयं खिंचने का निर्णय लिया। तिलक जी के रथ को खिंचने वालों में राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी प्रमुख थे। तिलक जी मधुमेह के रोगी थे तथा काफी देर तक रथ में बैठने के बाद उनका शरीर सुन्न होने लगा। रथ से उतरते ही उन्होंने तुरंत अपनी दवा ली। युवाओं के एक झुण्ड ने उनके पैर छुकर आर्शीवाद लेने के लिए उन्हें घेर लिया। युवाओं द्वारा किया गया तिलक जी के स्वागत को देखकर सभी निःशब्द रह गये।
1916 में आयोजित इस अधिवेशन के 101 वर्ष पूरे होने की खुशी में लखनऊ में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें तिलक जी के प्रपौत्र शैलेश को आमंत्रित किया गया। यह कार्यक्रम तिलक जी से सम्मान में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में तिलक जी के जीवन से संबंधित तस्वीरों और लेखों को प्रदर्शित किया गया।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2HfNIBU
2. https://bit.ly/2JaJA7Q
3. Image Reference - wikicommons
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