क्या आप अपने बच्चों को किसी और के घर में छोड़ सकते हैं और उनकी जिम्मेदारी दूसरों को दे सकते हैं? शायद आपका जबाव नहीं होगा परंतु, कुछ जानवर ऐसे भी होते हैं जो दूसरे के घोसले में अण्डे देते हैं और अपने बच्चों को दूसरों के सहारे छोड़ देते हैं। इन्हें अण्ड या शाव परजीवी कहते हैं और इस तरह का व्यवहार अण्ड परजीविता या शाव परजीविता कहलाता है। आपने रामपुर में अक्सर कोयल पक्षी को तो जरूर देखा होगा। कोयल शाव परजीवी प्रकृति का सबसे बड़ा उदाहरण मानी जाती हैं। यह कौवे सहित कई अन्य पक्षियों के घोंसले में अपने अंडे देती हैं और उनके अंडों को बाहर निकाल फेंकती है।
एशिया में पाई जाने वाली कोयल, क्युक्लिफोर्मीस नामक गण की एक पक्षी है। यह भारतीय उपमहाद्वीप, चीन एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाई जाती है। यह कोयल बड़ी और लंबी पूंछ वाली होती है, जो लगभग 15 से 18 इंच तक की हो सकती है और इसका वजन 190–327 ग्राम होता है। इस प्रजाति के पुरुष का रंग नीला-काला होता है, जिसमें हल्के हरे-भूरे रंग की चोंच होती है और इनकी आंख की पुतली का रंग गहरा लाल होता है। वहीं इस प्रजाति की मादा का शीर्ष भूरे रंग का होता है और उसके ऊपर धारीदार लकीरें होती हैं। वहीं इसके पीछे का हिस्सा, पुंछ और पंख गहरे भूरे और सफेद रंग के होते हैं। अंदर का भाग सफेद और धारीदार होता है। युवा पक्षियों का ऊपरी भाग नर की तरह होता है और उनकी चोंच काले रंग की होती है। कोयल एक शाव परजीवी प्रवृत्ति की होती हैं, जो अन्य पक्षियों (जैसे कौआ) के घोसले में अपने अंडे देती हैं।
कोयल पक्षी की आवाज जितनी मीठी होती है यह उससे कई गुना ज्यादा चालाक होती है। यह अन्य पक्षियों के घोंसले में अपने अंडे रख देती हैं और उनके अंडों को बाहर फेंक देती है। ऐसे में बेचारा वह पक्षी जाने अनजाने में कोयल के ही अंडों को सेता है और फिर बच्चों की परवरिश करता है। माना जाता है कि कोयल के इस व्यवहार का कारण यह है कि कोयल मुख्य रूप से एक फलाहारी पक्षी है। जिसका अर्थ है कि वयस्क कोयल ज्यादातर फलों पर निर्भर होती हैं। और सभी पक्षियों के बच्चों को जल्दी और स्वस्थ रूप से विकसित होने के लिए प्रचूर मात्रा में प्रोटीन युक्त आहार की आवश्यकता होती है। कोयल के फलाहारी होने की वजह से वो उसके शिशुओं की आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर पाती हैं। इसलिये मादा कोयल अन्य पक्षियों जैसे कौवे, भुजंगा आदि के घोंसले में अंडे देती हैं।
ऐसा करने के लिए, मादा कोयल अन्य पक्षियों के एक या दो अंडे को नष्ट कर देती हैं और उनकी जगह अपने अंडे रख देती है। कोयल के अंडे मजबूत खोल से ढके होते हैं और अन्य अण्डों की तुलना में बड़े होते हैं। इसके अण्डों से बच्चे भी अन्यों की तुलना में जल्दी निकल आते हैं। निकलने के बाद इसके बच्चे अन्य अंडो को बाहर फेंक देते हैं ताकि मेजबान माता-पिता का ध्यान केवल उन्ही पर रहे और उनको पर्याप्त मात्रा में भोजन मिल सके। धब्बेदार कोयल ज्यादातर कैरीयन कौवे के घोसले में अंडे देती हैं।
परंतु ऐसा हर बार नही होता कि कोयल अन्य पक्षी के घोसलों में अण्डे दे और वो उसके बच्चों को पाले। कोयल जब किसी अन्य पक्षी के घोसलों में अण्डे देती हैं तो कुछ पक्षी ऐसे भी होते हैं जो दूसरों के अण्डे या बच्चों को पहचान जाते हैं और अपने घोसले से बाहर निकाल देते हैं। किंतु कौवे ऐसा नहीं करते हैं, वे इनके बच्चों को अपने घोसलों में स्थान दे देते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिकों ने कई कारण बताए हैं, कोई कहता है कौवे इनको पालने में आनंद का अनुभव करते हैं तो वहीं दूसरी धारणा के अनुसार वे अपने बच्चों को बचाने के लिए इन्हें अपने साथ रखते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कोयल के बच्चे एक बदबूदार तरल पदार्थ उत्सर्जित करते हैं जिस कारण शिकारी उनके आसपास नहीं आते हैं, इससे कोयल के बच्चों के साथ साथ कौवे के बच्चों को भी सुरक्षा प्रदान हो जाती है।
एकमात्र कोयल ही नहीं है जो ऐसा करती है। यह रणनीति अन्य पक्षियों, कीड़ों और कुछ मछलियों में भी दिखाई देती है। मछलियों की बात करें तो लैक टैंगानिका (Lack Tanganicka) की एक मोचोकिडा कैटफ़िश (जो माउथब्रोडिंग साइक्लाइड मछली की एक शाव परजीवी है) द्वारा अन्य मछलियों के अंडों में अंडे दिये जाते हैं। इन कैटफ़िश के अंडों में से बच्चे मेजबान मछ्ली के बच्चों से पहले बाहर निकल जाते हैं, और ये नवजात कैटफ़िश मेजबान मछली के मुंह के अंदर मौजूद अन्य अंडों को खा जाते हैं।
कई मधुमक्खियाँ भी शाव परजीवी प्रवृत्ति की होती हैं क्योंकि ये अन्य मधुमक्खियों के छ्त्तों में अपने अंडे देती हैं। लेकिन इन्हें शाव परजीवी के बजाए आमतौर पर क्लेप्टोपारासाइट्स कहा जाता है। इनमें अंडों को मेजबानों द्वारा खाना नहीं खिलाया जाता है, बल्कि वे मेजबानों द्वारा इकट्ठा किए गए भोजन को खाती हैं। उदाहरण के लिए, कोएलियॉक्सीस रुफिटारिस (Coelioxys rufitarsis), मेलेटा सेपराटा (Melecta separata), बॉम्बस बोहेमिकस (Bombus bohemicus), नोमादा (Nomada) और एपेलोलॉइड (Epeoloides)।
इस तरह के शाव परजीविता व्यवहार का संबंध नकारात्मकता या बुराई से नहीं है। यह तो केवल जीवन की प्रतिस्पर्धा में खुद को जिंदा रखने की एक रणनिति है। इसी तरह के व्यवहार के कारण ही शाव परजीवी प्राणियों का अस्तित्व बना हुआ है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2SKyuWM
2. https://bit.ly/2TjSrbZ
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Brood_parasite
4. https://en.m.wikipedia.org/wiki/Asian_koel
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