कंगारू, कोआला, पॉस्सम, वोम्बैट और तास्मानियाई डेविल आदि जानवर अक्सर लोगों के आकर्षण का कारण बनते हैं। खासतौर पर इनके बच्चे जो अधिकांशतः अपना समय अपनी मां के पेट पर बनी हुई एक धानी में बिताते है। वे स्तनधारी जानवर जो अपने शिशुओं को अपने पेट के पास बनी हुई एक धानी (थैली) में रखकर चलते हैं उन्हें धानीप्राणी या मारसूपियल (Marsupial) वर्ग में रखा गया है। ये विचित्र स्तनधारी जीव होते हैं और अन्य सभी स्तनधारियों से पर्याप्त भिन्न होते हैं।
ये मारसूपियल ज्यादातर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में रहते हैं। इनकी 334 प्रजातियाँ ज्ञात हैं जिनमें से लगभग 70% ऑस्ट्रेलिया और उनके आसपास के द्वीपों में मिलती हैं। शेष 100 जातियाँ मुख्यतः दक्षिण अमेरिका में मिलती हैं तथा 13 प्रजातियाँ मध्य अमेरिका में और 1 प्रजाती उत्तरी अमेरिका में मेक्सिको के उत्तर में भी मिलती है। अक्सर लोग सोचते है कि इसके बच्चे थोड़े आलसी होते है तभी ये अपनी मां की धानी में रहते हैं या ये शिकारियों से बचने के लिये ऐसा करते है। परंतु ऐसा नहीं है, असल में धानिप्राणी के नवजात शिशु अन्य स्तनधारियों के नवजातों की तुलना में पूर्ण विकसित नहीं होते हैं और पैदा होने के बाद यह काफ़ी समय तक अपनी मां की धानी में ही रहकर विकसित होते हैं।
मारसूपियल की प्रजनन प्रणाली, अपरा स्तनधारियों से अलग-अलग होती है। इनमें भ्रूण के विकास के दौरान, एक कोरिओविटेलीन प्लेसेंटा (choriovitelline placenta) बनता है तथा पंदिकोकु (पैरामेलेमोर्फिया (Peramelemorphia) गण के सर्वभक्षी मारसूपियल) में, एक अतिरिक्त जरायु-अपरापोषिका अपरा होती है, हालांकि इसमें यूथिरियन अपरा में पाए जाने वाले जरायु अंकुरिका का अभाव होता है।
मारसूपियल के नवजात बच्चे अन्य स्थनधारी जानवरों के बच्चों की तुलना में बहुत अपरिपक्व पैदा होते हैं, उदाहरण के लिए ओपस्सम के बच्चे निषेचन होने के केवल 8 से 13 दिनों के बाद ही पैदा हो जाते हैं। उसके बाद ये बच्चे स्वयं ही माँ की धानी में रेंगते हुए जाते हैं, जहाँ वे कुछ महिनों तक रहकर संपुर्ण विकसीत होते हैं। वैसे तो सभी मारसूपियल में धानी या मार्सुपियम नहीं होती है, कुछ मारसूपियल की त्वचा में फ्लैप होते हैं। इनमें नवजात शीशू अपनी माँ के इधर-उधर जाते समय उसके स्त्नाग्र से लटके रहते हैं। अपरा स्तनधारियों (जैसे खरगोश) में विकासशील भ्रूण अपनी माँ से गर्भनाल के माध्यम से पोषण प्राप्त करते हैं और इसमें शीशुओं के विकास में एक लंबी अवधी का समय लगता है तथा परिणामस्वरूप इस माध्यम से शीशु जन्म के समय अच्छी तरह से विकसित होते हैं। लेकिन वहीं मारसूपियल में शीशुओं को गर्भनाल द्वारा पोषित नहीं किया जाता है। मारसूपियल के भ्रूण अपना पोषण अंडे के पीतक या गर्भाशय में उपलब्ध दूध से प्राप्त करते हैं। पीतक जल्द ही समाप्त हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप शीशू एक अपरिपक्व अवस्था में पैदा होते हैं।
उदाहरण के लिए:- वर्जीनिया ओपस्सम (Virginia Opossum) के शीशू जन्म के समय एक मधुमक्खी के आकार के होते हैं। इनको धानी में इनकी माँ नहीं रखती है, ये स्वयं ही अपना रास्ता ढूंढते हैं, जो ऐसे अपरिपक्व जीवों के लिए एक बहुत ही उल्लेखनीय उपलब्धि है। जन्म के समय इनके अग्रांग और तंत्रिका आपूर्ति अच्छी तरह से विकसित हुए होते हैं और पश्चपाद अपरिपक्व होते हैं। शीशुओं द्वारा धानी में समय बिताने की अवधि हर मारसूपियल जीवों में भिन्न होती है, जैसे – मारसूपियल बिल्ली में लगभग 7 सप्ताह और रैट कंगारू में 4 महीने तक की होती है। वर्जीनिया ओपस्सम के शीशू लगभग 2 महीने के लिए धानी में पोषित होते हैं और वे कम से कम 3 महीने तक माँ के साथ रहते हैं। मारसूपियल के एक अध्ययन से पता चलता है कि ये वर्ष के किसी भी समय प्रजनन करने में सक्षम होते हैं, उदाहरण के लिए वर्जीनिया ओपस्सम मादा आमतौर पर साल में दो बार गर्भवती हो जाती है। हालांकि कुछ में प्रजनन का समय निश्चित होता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Marsupial
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