भारत के सम्मुख जलवायु परिवर्तन के वैश्विक खतरे से निपटने के साथ साथ अपनी तीव्र आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने की भी चुनौती है। जलवायु परिवर्तन से भारत के प्राकृतिक संसाधनों के वितरण और गुणवत्ता में बदलाव आ सकता है और इससे लोगों की अजीविका पूरी तरह से प्रभावित हो सकती है। चूंकि भारत की अर्थव्यवस्था का इसके प्राकृतिक संसाधनों तथा जलवायु की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कृषि, जल और वानिकी आदि से गहरा संबंध हैं, इसलिये भारत को जलवायु से होने वाले संभावित परिवर्तनों के कारण बड़े खतरे का सामना करना पड़ सकता है।
भारत का विकास पथ, उसकी असाधारण संसाधन संपदाओं, आर्थिक और सामाजिक विकास की प्राथमिकताओं और गरीबी उन्मूलन तथा सभ्यता की विरासत के प्रति इसकी प्रतिबद्धता, और पारिस्थितिक संतुलन के रखरखाव पर आधारित है। इसलिये पारिस्थितिकीय दृष्टि से सतत विकास का मार्ग तैयार करने के लिये भारत में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 30 जून 2008 को नई दिल्ली में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारम्भ किया। यह निम्नलिखित सिद्धान्तों द्वारा अनुप्रेरित होती है:
• एक समग्र और सतत विकास रणनीति के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील समाज के गरीब और कमजोर वर्गों की रक्षा करना।
• पारिस्थितिक स्थिरता को बढ़ाने वाले गुणात्मक परिवर्तन के माध्यम से राष्ट्रीय विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करना है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में और कमी आ सके।
• मांग पक्ष प्रबंधन का उपयोग करने के लिए कुशल और लागत प्रभावी रणनीति तैयार करना।
• ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के अनुकूलन और उपशमन दोनों के लिए, बड़े पैमाने पर और साथ ही त्वरित गति से उपयुक्त तकनीकों का विस्तार करना।
• सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए बाजार, विनियामक और स्वैच्छिक तंत्रों के नए और आधुनिक स्वरूप तैयार करना।
• सिविल सोसाइटी और स्थानीय सरकारी संस्थानों सहित सार्वजनिक तथा निजी सहभागिता के माध्यम श्रेष्ठ संबंधों के द्वारा कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को प्रभावित करना
• अतिरिक्त वित्त व्यवस्था और एक वैश्विक आईपीआर शासन द्वारा सक्षम प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान, विकास, साझाकरण और हस्तांतरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का स्वागत करना, जो UNFCCC के तहत विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना उन साधनों की पहचान करता है जो विकास के लक्ष्य को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही, जलवायु परिवर्तन पर विमर्श के लाभों को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है। राष्ट्रीय कार्य योजना के रूप में इसमें निम्न आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं।
1. राष्ट्रीय सौर मिशन: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय सौर मिशन को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। इस मिशन का उद्देश्य देश में कुल ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा के अंश के साथ अन्य नवीकरणीय साधनों की संभावना को भी बढ़ावा देना है। साथ ही यह मिशन शोध एवं विकास कार्यक्रम को आरंभ करने की भी माँग करता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग को साथ लेकर अधिक लागत-प्रभावी, सुस्थिर एवं सुविधाजनक सौर ऊर्जा तंत्रों की संभावना की तलाश करता है। हाल ही में, इस साल जनवरी में, भारत ने 20 गीगावॉट की संचयी सौर क्षमता हासिल की है।
2. विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन: ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001, केंद्र सरकार में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो और राज्य में नामोद्दिष्ट अभिकरण के संस्थानिक तंत्र के माध्यम से ऊर्जा बचत उपायों के कार्यान्वयन के लिये कानूनी अधिवेश मुहैया कराता है। इसके तहत कई कार्यक्रम शुरू किये गये है। इनके अतिरिक्त विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन के उद्देश्यों में शामिल हैं: बड़े पैमाने पर उर्जा का उपभोग करने वाले उद्योगों में ऊर्जा कटौती की मितव्ययिता को वैधानिक बनाना, ऊर्जा दक्षता बढ़ाने हेतु वित्तीय उपायों को विकसित करना, कुछ क्षेत्रों में ऊर्जा-दक्ष उपकरणों/उत्पादों को वहनयोग्य बनाने हेतु नवीन उपायों को अपनाना आदि।
3. सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन: भवनों में ऊर्जा बचत सुधारों, ठोस अपशिष्ठ के प्रबंधन और निश्चित रूप से सार्वजनिक परिवहन को अपनाने के माध्यम से पर्यावास को सतत बनाने के लिये सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन शुरू किया गया है। इस मिशन का लक्ष्य निवास को अधिक सुस्थिर बनाना है। इसके लिए तीन सूत्री अभिगम पर जोर दिया गया है: • आवासीय एवं व्यावसायिक क्षेत्रकों के भवनों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना। • शहरी ठोस अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन, • शहरी सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना।
4. राष्ट्रीय जल मिशन: राष्ट्रीय जल मिशन का लक्ष्य जल संरक्षण, जल की बर्बादी कम करना तथा एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन के द्वारा जल का उचित वितरण करना है। राष्ट्रीय जल मिशन, जल के उपयोग में 20% तक दक्षता बढ़ाने हेतु एक ढाँचे का निर्माण करेगा।
5. सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन: इस योजना का उद्देश्य हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता, वन आवरण और अन्य पारिस्थितिक संसाधनों का संरक्षण करना है, विशेषकर उन स्थानों में जहां ग्लेशियर (जो भारत की जल आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत हैं) ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप कम होते जा रहे है। यह राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 में उल्लिखित उपायों की भी पुष्टि करता है।
6. हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन: इस मिशन का लक्ष्य कार्बन सिंक जैसे पारिस्थितिकीय सेवाओं को बढ़ावा देना है तथा 60 लाख हेक्टेयर भूमि में वनरोपण कर देश में वन आवरण को 23% से बढ़ाकर 33% करना है।
7. सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन: इसका लक्ष्य फसलों की नई किस्म, खासकर जो तापमान वृद्धि सहन कर सकें, उसकी पहचान कर तथा वैकल्पिक फसल स्वरूप द्वारा भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला बनाना है। यह किसानों को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए सुझाव देता है।
8. जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन: इस मिशन का उद्देश्य शोध तथा तकनीकी विकास के विभिन्न क्रियाविधियों द्वारा सहभागिता हेतु वैश्विक समुदाय के साथ कार्य करने पर बल देना है। यह मिशन, अनुकूलन तथा न्यूनीकरण हेतु नवीन तकनीकियों के विकास के लिए निजी क्षेत्र की पहल को भी प्रोत्साहित करता है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन से संबंधित समर्पित संस्थानों तथा जलवायु-शोध कोष द्वारा समर्थित इसके स्वयं का शोध एजेंडा भी है।
उपरोक्त विवरण से आपको ज्ञात ही हो गया होगा की ये सभी मिशन जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन तथा न्यूनीकरण, ऊर्जा दक्षता एवं प्रकृतिक संसाधन संरक्षण की समझ को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं। प्रत्येक राष्ट्रीय मिशन को संबद्ध मंत्रालयों द्वारा संस्थाकृत किया जाता है। इस मंत्रालयों का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर प्रधान मंत्री परिषद को प्रस्तुत किए जाने वाले उद्देश्यों, कार्यान्वयन रणनीतियों, समयसीमा और निगरानी और मूल्यांकन मानदंडों को विकसित करना है।
संदर्भ:
1. http://www.ambitionias.com/the-eight-missions-of-napcc.html
2. https://www.indiatoday.in/education-today/gk-current-affairs/story/8-missions-govt-napcc-1375346-2018-10-25
3. http://arthapedia.in/index.phptitle=National_Action_Plan_on_Climate_Change_(NAPCC)
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