महात्मा गांधी जी को कौन नहीं जानता, पर हम सब यह नहीं जानते की महात्मा गांधी जी ने अँग्रेजी को छोड़ कर हिन्दी को ही भारत की मातृभाषा क्यूँ चुना। तो आइये जानते है कुछ खास और दिलचस्प बातें हमारी मातृभाषा के बारे में।
महात्मा गांधी जी को कई भाषाओं का ज्ञान था, उन्होने भाषाएं इसलिए नहीं सीखीं क्योंकि वह विद्वान बनना चाहते थे बल्कि इस लिए सीखी ताकि वह लोगों की सेवा कर सके। अपनी मातृभाषा के रूप मे उन्हें गुजरती का ज्ञान था, स्कूल में उन्होने अंग्रेजी सीखी, बाद में इंग्लैंड(England) और दक्षिण अफ्रीका(South-Africa) जाकर उन्होने अंग्रेजी में महारत हासिल की। दक्षिण अफ्रीका में उन्होने मुस्लिमों के साथ काम किया, जिस कारण उन्हे उर्दू का ज्ञान हुआ। बाद मे भारत के मद्रास मे सत्याग्रह मे हिस्सा लेते हुए उन्होने दक्षिण भारतीय भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया।
इस दौरान उन्होने लोगों को अपना संदेश देने के लिए पूरे भारत में कूच किया, तब उन्हे एक बात जानने को मिली की पूरे भारत के किसी भी राज्य मे लोग उनका संदेश हिन्दी में सुन सकते है और समझ सकते है। शुरुआत में गांधी जी को हिन्दी अच्छे से नहीं आती थी, बाद में उन्होने इन भाषाओं को ओर ढंग से जानने की कोशिश की, जब भी उन्हे लम्बे समये के लिए जेल भेजा जाता, वो अपनी इन भाषाओं को और सुधारने के प्रयत्नों मे लग जाते।
गांधी जी ने अपनी कई रचनाओं में हिन्दी के साथ साथ उर्दू तथा फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया। स्कूल मे उन्हे संस्कृत पढ़ना ओर लिखना बिलकुल पसंद नहीं था, अपने एक दोस्त के कहने पर गांधी जी फारसी की कक्षा में जा कर बैठ जाते थे, जब उनकी अध्यापिका को यह पता चला तो वह दु:खी हुई और उन्होने गांधी जी को पूछा की क्या वो अपने धर्म की भाषा को नहीं जानना चाहते, अपनी अध्यापिका की बात सुन कर गांधी जी ने अपनी अध्यापिका को धन्यवाद दिया और संस्कृत भाषा को भी जानने का प्रयत्न किया, जल्दी ही वो संस्कृत किताबों को पढने लगे।
जब गांधीजी भारत आए तो उन्होने भारतीयो को भारतीय भाषाएं बोलने के लिए प्रोत्साहित किया। अपने जीवन का ज़्यादातर समय गांधीजी ने कई भाषाओं को सीखने मे गुजारा। भाषाओं के रुड़ी को जानने की कोशिश करते हुए उन्होने तुलसीदास की रामचरितमानस (Ramcharitmanas) तथा सूरदास, साहित्य और ब्रज के ग्रंथो के बारे मे भी जानकारी ली। लंदन से अपनी वापसी के साथ ही उन्होने बंबई मे कई महीने बिताए जहां उन्होने हिन्दू और हिंदुस्तानी के बारे मे जाना। दक्षिण अफ्रीका से गांधीजी ने अपने करियर (career) की शुरुआत एक गुजराती लेखक के रूप मे की, उन्होने हिन्दी और गुजराती मे कई लेख लिखे।
गांधी जी के अनुसार हिन्दी एक ऐसी भाषा थीं जिसे हर भाषा और शहर का व्यक्ति समझ सकता था। स्वतन्त्रता के बाद गांधीजी के लगातार कोशिशों से 1949 ई० में हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप मे मान्यता प्राप्त हुई।
हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य
हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नहीं दिया गया, बल्कि यह उसका अधिकार है। इस विषय में अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राजभाषा’ के लिए बताये थे-
• 1. अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।
• 2. उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।
• 3. यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।
• 4. राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।
• 5. उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है
संदर्भ :-
1. https://://hi.wikipedia.org/whttpsiki/भारत_की_राजभाषा_के_रूप_में_हिन्दी
2. https://www.quora.com/How-many-languages-could-Mahatma-Gandhi-speak
3. https://bit.ly/2Em13pp
4. https://bit.ly/2GzFG6i
5. https://www.mkgandhi.org/gandhiji/26language.htm
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.