संगीत हमारे जीवन का अहम हिस्सा है जो हमारे जीवन के हर भाव को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। किसी भी संगीत को तैयार करने में विभिन्न कारकों की भूमिका होती है, जिसमें सर्वप्रमुख है गायन शैली यह विभिन्न प्रकार की होती हैं, जिनमें से एक है ठुमरी। ठुमरी प्रमुखतः भारतीय शास्त्रीय संगीत की गायन शैली है, जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है अर्थात राग की शुद्धता के स्थान पर रस, रंग और भाव को प्रधानता दी जाती है। ठुमरी की व्युत्पत्ति हिन्दी भाषा के ठुमके शब्द से हुयी है जिसका अर्थ से सुन्दर-पादक्षेप। ठुमरी में नृत्य, नाटकीय एवं प्रेमभाव का समावेश होता है। ठुमरी मुख्यतः उत्तर प्रदेश के प्रेम कविताओं एवं लोकगीतों से जुड़ी हुयी है, किंतु इसमें कुछ क्षेत्रीय भिन्न्ताएं दिखाई देती हैं।
15 वीं शताब्दी तक ठुमरी का कोई ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिलता है। ठुमरी का उल्लेख 19 वीं शताब्दी से देखने को मिलता है, जो कथक (उत्तर प्रदेश का नृत्य) से संबंधित था। इसे लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को ठुमरी का जन्मदाता माना जाता है तथा इनके शासनकाल के दौरान लखनऊ में ठुमरी काफी प्रसिद्ध हुई। वाजिद अली लखनवी ठुमरी के अत्यंत करीब थे, उस समय यह तवायफों या दरबारियों द्वारा गाया जाने वाला गीत था। वाजिद अली संगीत प्रिय नवाब थे, अंग्रेजों के आगमन के बाद इन्हें लखनऊ छोड़़ना पड़ा तथा यह कलकत्ता जाकर बस गये, इन्हीं के द्वारा ठुमरी को कलकत्ता ले जाया गया। इनके मटियाबुर्ज के दरबार (कलकत्ता) में लखनवी ठुमरी को संरक्षण दिया गया। ठुमरी को सुनकर इनके लखनऊ की खट्टी मिठ्ठी यादें ताजा हो जाती थी।
इनका दरबार गायन के लिए विशेष रूप से सजाया जाता था। जहां कलकत्ता के विभिन्न संगीतकार सिरकत किया करते थे, इनमें से एक थे राजा सुरिंदर मोहन टैगोर (1840-1914)। यह अपने समय के सबसे बड़े हिंदु संगीत के पारखी थे, जिसके लिए वे विश्व भर में जाने जाते थे। इन्हें मेटियाब्रुज के दरबार में गाया जाने वाला लखनऊपुरी ठुमरी अत्यंत प्रिय था। इन्होंने मेटियाब्रुज के दरबार में गाये जाने वाले लखनवी ठुमरी का आनंद लेने के लिए पथुरीघाट से मेटियाब्रुज की यात्रा की। ठुमरी पारंपरिक रूप से ब्रज भाषा, या उत्तर भारत के आगरा-मथुरा क्षेत्र की बोली में रची जाती थी, जो भगवान कृष्ण की भक्ति से जुड़ी थी। कुछ की रचना खड़ी बोली और कुछ की उर्दू में हुई थी। उर्दू शब्दों का इसमें प्रयोग मुस्लिमों के बीच इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है। ख़याल की भांति ठुमरी के दो भाग होते हैं अभय और अंतरा। इसमें दीपचंदी, रूपक, आधा और पंजाबी जैसे तालों का अनुसरण किया जाता है। ठुमरी में काफ़ी, खमाज, जोगिया, भैरवी, पिल्लू और पहाड़ी जैसे रागों का संयोजन होता है, साथ ही इसमें अन्य रागों का प्रयोग भी देखने को मिलता है। वाजिद अली शाह ने एक ठुमरी रची थी, जो श्रोताओं के मन को बहुत प्रिय थी, जिसमें नवाब के अपने राज्य से बिछड़ने का दर्द छिपा था।
अर्थात- हे पिता; मैं अनिच्छा से अपने घर से जा रही हूं। चार आदमी मेरी पालकी को उठाने के लिए एकत्र हो गये हैं तथा अब मेरे प्रियजन अजनबी हो जाएंगे। जैसे ही मैं अपने पिता का घर छोड़ कर अपने पति के देश जाऊँगी, मेरे घर का प्रवेश मार्ग ही मेरे लिए दुर्गम हो जाऐगा।
फिल्मों के प्रारंभ के साथ ही इनमें ठुमरी का उपयोग किया गया। तीस के दशक में राजकुमारी ने कई ठुमरियां गायी। 1935 में के एल सहगल ने फिल्म देवदास में एक लोकप्रिय ठुमरी, “पिया बीना ना आना” गायी थी। 1938 की फिल्म स्ट्रीट सिंगर में सहगल की “बाबुल मोरा नैहर” को कौन भूल सकता है। 2014 में आयी फिल्म डेढ़ इश्किया में गायी गयी ठुमरी “हमरी अटारिया आओ रे संवरिया” ने लोगों के मन में एक बार फिर से अपने प्रति लोकप्रियता को जीवित कर दिया। गोविंदा की माता भी एक अच्छी ठुमरी गायिका रहीं। ठुमरी के कुछ गीत इस प्रकार हैं:
1. गीत- रो रो नैन गवाए
गायक- निर्मला देवी
2. गीत-कौन गली गयो
गायक-परवीन सुल्तान
फिल्म-पाकीजा
3. गीत-पिया बिन आवत नहीं चैन
गायक-अब्दुल करीम खान
4. गीत- निंदिया ना आए
गायक-लक्ष्मी शंकर
5. गीत-पिया न आए
गायक-गिरिजा देवी
6. गीत-जा मैं तोसे नहीं बोलन
गायक-मुख्तार बेगम
7. गीत-भर भर आयी मोरी
गायक-बेगम अख्तर
8. गीत-मोहे पनघट पे छेड़ गये नंदलाल
गायक-लता मंगेशकर
फिल्म-मुगल-ए-आजम
19 वीं शताब्दी के अंत में, ठुमरी का एक नया संस्करण सामने आया जो नृत्य से स्वतंत्र था, और बहुत अधिक धीमी गति से गाया जाता था। वाराणसी में विकसित हुए ठुमरी के इस रूप को बनारस की ठुमरी कहा गया। वर्तमान समय शास्त्रीय संगीत के प्रति बढ़ती लोगों की उदासीनता के कारण इस विधा का पतन होता जा रहा था। बनारस घराने की गायकी की इस विधा को सीखने-सिखाने का दौर मंद पड़ गया है।
संदर्भ:
1.https://www.tornosindia.com/journey-of-thumri-from-lucknow-to-calcutta/
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Thumri
3.https://www.quora.com/What-are-some-of-the-best-thumris
4.https://nothingtodeclare.in/2014/01/17/the-millennium-thumris-of-hindi-cinema/
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.