वो उड़ते हुए ही नदी में रहने वाली मछलियों को देख लेता है और तीर के समान नदी में गौता लगा कर पानी के अंदर बहने वाली मछली को कुशल धनुर्धर की भाँति भेद के अपनी चोंच में पकड़ के वापस हवा में उड़ जाता और किसी वृक्ष पर जा कर उसको खाने में जुट जाता है। ये इस दुनिया का सबसे कुशल मछुआरा है, उसका निशाना शायद ही कभी चुकता हो। हम बात कर रहे हैं किलकिला यानी किंगफिशर पक्षी की, जो अक्सर तालाबों, नदियों और झीलों के पास पाए जाते हैं।
किंगफिशर कोरासीफोर्म्स वर्ग के छोटे से मध्यम आकार के चमकीले रंग के पंक्षियों का एक समूह है। ये बी ईटर, हार्नबिल, मोटमोट के संबधी है। इनकी कई प्रजातियां पुरी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों जैसे अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इनकी कुल 114 प्रजातियां हैं जिन्हें तीन उपकुलों और 19 पीढ़ीयों में विभाजित किया गया है। सभी किंगफिशर के बड़े सिर, लंबी और तेज नुकीले चोंच, छोटे पैर और ठूंठदार पूंछ होती हैं। अधिकांश प्रजातियों के पास चमकीले पंख होते हैं जिनमें अलग-अलग लिंगों के बीच थोड़ा अंतर है, अधिकाशत: नर और मादा एक समान दिखते हैं। अधिकांश प्रजातियां वितरण के लिहाज से उष्णकटिबंधीय हैं और कुछ ही प्रजातियां केवल जंगलों में पायी जाती हैं। अपने वर्ग के अन्य सदस्यों की तरह ये खाली जगहों में घोंसला बनाते हैं, जो आम तौर पर जमीन पर प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से बने किनारों में खोदे गए सुरंगों होते हैं।
आहार और भोजनयह पक्षी पानी के किनारे किसी पेड़ की डाली पर बैठकर मछली का शिकार करता है। मछली नजर आते ही यह उस पर हमला कर देता है और पकड़ लेता है। इसके अलावा ये क्रस्टेशियन ( मेंढक और अन्य उभयचर), एनेलिड, मोलस्क, कीड़े, मकड़ियों, सरीसृप (नीले पंखों वाले कूकाबूरा को साँप के शिकार के लिये जाना जाता है), और यहां तक कि छोटे पक्षियों व उनके चूजों को भी खा जाता है, इनका ये आहार इनके रहने के स्थानों पर निर्भर करता है। ये सुबह और शाम शिकार के लिये सबसे अधिक सक्रिय होते हैं, लेकिन अगर मौसम बहुत गर्म नहीं हो, तो ये दोपहर के दौरान भी शिकार कर सकते हैं। यह लगभग 100 गज (90 मीटर) दूरी से अपने शिकार को देख लेता हैं। ये पक्षी एक कुशल शिकारी तो है परंतु ये कोलाहल बहुत करते हैं। इनके शोर मचाने और तीव्र एंव अचुक शिकार करने की प्रवृत्ति को देखकर कविवर रसविधि ने कहा है—
ये आम तौर पर एक पत्नीक होते हैं, हालांकि कुछ प्रजातियों में सहकारी प्रजनन भी देखा गया है। बड़े किलकिले मार्च से जुलाई तक और छोटे किलकिले जनवरी से जुन तक घोंसले बनाते हैं, अधिकांशत: इनके घोंसलों में पहले एक सुरंग होती है और बाद में एक कक्ष होता है। जंगलों में रहने वाले कई प्रजातियां अक्सर पेड़ों पर बने दीमकों के घोंसलों में अपना घोंसला बनाती हैं तथा कुछ प्रजातियां खाली जगहों में घोंसला बनाती हैं परन्तु ज्यादातर जमीन में खोदे गए बिलों में घोंसला बनाती हैं। इस तरह के बिल आम तौर पर नदियों, झीलों या मानव निर्मित खाइयों के जमीनी किनारों और तटों में होते हैं। कुछ प्रजातियाँ पेड़ों के छिद्रों में भी घोंसला बना लेती हैं। इनके अंडे देने का समय मार्च से जुन तक होता है और इनके अंडे सदैव सफेद और चमकदार होते हैं एंव दोनों लिंग अंडों को सेते हैं।
किलकिया पक्षी पलक झपकते ही मछलियों को अपनी चोंच से पकड़ लेते हैं। परंतु क्या आपने इन्हें पानी के अंदर गौता लगा कर मछली को झट से पकड़ते हुए देखा है? यदि नहीं तो ऊपर दिए गए चलचित्र (Video) में किलकिया को शिकार करते हुए देख सकते हैं। इस विडियो को आयरलैंड में शैनन नदी पर पीबीएस डॉक्यूमेंट्री के लिए कोलिन स्टैफ़ोर्ड-जॉनसन द्वारा शूट किया गया है। यदि आप इस विडियो को अंत तक देखेंगे तो आप धीमी गति से किलकिया को पानी के अंदर मछली को पकड़ते हुए देख सकते है।
किलकिया पक्षी की एक प्रजाति श्वेतकण्ठ किलकिया निचले हिमालय में भी पायी जाती है और इसलिए इसे उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में देखा जा सकता है क्योंकि रामपुर निचले हिमालय क्षेत्र में स्थित है। यह पक्षी भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा फिलीपींस में भी व्यापक रूप से पाया जाता है। ये एक सुंदर पक्षी है इसके गले एंव वक्ष का हिस्सा सफेद रंग का होता है जिस वजह से इसे श्वेतकण्ठ किलकिया के नाम से जाना जाता है।संदर्भ:
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