कुछ महिलाएं कर रही हैं धारा 498A का गलत इस्तेमाल

लखनऊ

 09-02-2019 10:15 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

आज हमारे देश में लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई कानून बनाए गए हैं। भारत में दहेज़ हत्या एवं प्रताड़ना से महिलाओं को बचाने के लिए 1983 में भारतीय दंड संहिता में धारा 498A को जोड़ा गया था। इस धारा के तहत यदि पीड़िता अपने पति या ससुराल के किसी भी सदस्यों पर दहेज के संबंध में प्रताड़ित करने का आरोप लगाती है तो आरोपित व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है और आरोप सिद्ध होने पर तीन वर्ष के लिए कारावास की सजा दी जाती है और जुर्माना भी देना पड़ता है। यह धारा गैर-जमानती (इसमें आपको अदालत में पेश होना होगा और न्यायाधीश से जमानत लेनी होगी), गैर-समाधेय (इसमें शिकायत वापस नहीं ली जा सकती है) और संज्ञेय (जिसमें शिकायत दर्ज कर उसकी जांच की जाती है और अधिकतर जांच से पहले ही गिरफ्तारी की जाती है) है।

दहेज से पीड़ित किसी भी महिला को इस संदर्भ में चुप नहीं रहना चाहिए, उन्हें इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau, NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2012-2014 में कुल 24,771 दहेज हत्‍याएं हुई, जिसमें से 8,455 मामले केवल 2014 के हैं, इससे यह अनुमान लगाया जा सकता हैं कि प्रति दिन दहेज के लिए 30 महिलाओं की हत्याएं होती हैं।

निम्नलिखित शीर्ष पांच राज्य हैं जिनमें सबसे अधिक दहेज संबंधित हत्याओं के मामले दर्ज हुए हैं:

गृह मंत्रालय के अनुसार, पूरे भारत में हर वर्ष दहेज से जुड़े 100,000 से अधिक मामले दर्ज होते हैं। लेकिन क्या वास्तव में आरोपित मामले सत्य होते हैं, कई बार दोषी खुद भी पीड़ित हो सकता है। कई महिलाएं इस धारा का व्यवसाय के रुप में दुरुपयोग करने लगी हैं। धारा 498A के अधिकांश मामले गलत साबित हुए हैं, लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि कोई ऐसा क्यों करेगा?

इस धारा के तहत लगाए गए अधिकांश झुठे मामलों में यह पाया गया है कि पीड़िता या उसके परिवार द्वारा आरोपित से उच्च धन की मांग की गयी थी। हर वर्ष दहेज उत्पीड़न के संबंध में 10,000 से अधिक शिकायतें झूठी पाई जाती हैं। वहीं भारत में एक लाख मामलों में से 90,000 मामलों की हर वर्ष जांच की जाती है, जिसे देखते हुए हम यह आंकलन लगा सकते हैं कि इस कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जा रहा है। वहीं ऐसे कई अनगिनत उदाहरण सामने आए हैं, जहाँ महिलाओं द्वारा शिकायत दर्ज करने पर पुलिस ने बुजुर्ग माता-पिता, अविवाहित बहनों, गर्भवती भाभी और यहाँ तक की नावालिग बच्चों को भी गिरफ्तार किया है। इन मामलों में परिवार के सभी सदस्यों को अत्यंत मानसिक यातना और उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है। साथ ही दहेज संबंधित मामले कई वर्षों तक चलते हैं और उन मामलों में दोषसिद्ध होने की दर लगभग 2% ही होती है। वहीं कई मामलों में तो आरोपित माता-पिता, बहनों और यहां तक कि पतियों ने जेल से आने के बाद आत्महत्या कर ली।

इन सभी घटनाओं और कई झुठे मामलों को देख सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी को रोकने के लिए इस धारा को संशोधित किया है। 27 जुलाई 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की कि धारा 498A के तहत आरोपित को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, और अब परिवार कल्याण समितियों द्वारा एफआईआर दर्ज होने के बाद उस मामले में चर्चा की जाएगी और साथ ही इन समितियों को पूरे भारत में स्थापित किया जाएगा। अदालत का कहना है कि जब तक कोई मारपीट ना हुई हो पीड़ित को गुस्से में और प्रतिशोध की भावना में कानूनी प्रावधान का लाभ नहीं उठाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि उत्पीड़ित पतियों और उनके रिश्तेदारों की सुरक्षा के लिए उन्हें अग्रिम जमानत दी जाएगी।

संदर्भ:
1.http://www.498a.org/498aexplained.htm
2.https://bit.ly/2Ngu1bH
3.https://bit.ly/2Dl48V7
4.https://bit.ly/2E0rPn4
5.https://mediaindia.eu/social-vibes/dowry-the-dark-side-of-indian-weddings/



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