भारत में एलजी और आईएमआरजी इंटरनेशनल द्वारा किए गए सर्वेक्षण “एलजी लाइफ इज गुड् हैप्पीनेस (Life’s Good Happiness)” के अनुसार लखनऊ 157 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर भारत का सबसे खुशहाल शहर है। इस सर्वेक्षण में 190 अंकों के साथ चंडीगढ़ ने सबसे खुशहाल शहर के रूप में पहला स्थान प्राप्त किया, जबकि दिल्ली 149 अंकों के साथ तीसरे स्थान रहा, जो महानगरों में खुशहाली के मामले में अव्वल है। लेकिन यह जानकर बहुत दुःख होता है कि 35-45 वर्ष की आयु वाले वयस्क, 18-24 वर्ष की आयु के युवाओं की तुलना में अधिक खुश रहते हैं। आजकल किशोर और युवा, वयस्कों की तुलना में अधिक तनावग्रस्त रहते हैं। यह तथ्य बहुत विचलित करने वाला है।
लॉस एंजिल्स में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार वास्तव में किशोरों का दिमाग वयस्कों की तुलना में भिन्न होता है और वे तनाव या जोखिम भरा निर्णय लेते समय अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। वहीं एड्रियाना गैल्वान के शोध के अनुसार किशोरों में तनाव का जो अनुभव होता है, वो उनके लिए अधिक तनावपूर्ण होता है। साथ ही यदि यह तनाव उनके निर्णय लेने की क्षमता में हस्तक्षेप करता है। ऐसी स्थिति में उनके तंत्रिका तंत्र को समझना महत्वपूर्ण है, जो तनाव के उच्च स्तर और कमज़ोर निर्णय लेने की क्षमता को अंतर्निहित करता है। शोध के अनुसार वयस्कों की तुलना में किशोर तनाव में जोखिम भरे विकल्प अधिक चुनते हैं, यह अंतर संभवतः प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स(Pre-Frontal Cortex) नामक मस्तिष्क क्षेत्र में परिवर्तन के कारण होता है। किशोरों में, यह क्षेत्र अपरिपक्व होता है, यही कारण है कि किशोर अक्सर कार्य करने से पहले परिणामों के बारे में पूरी तरह से समझे बिना ही कार्य करने लगते हैं। इस स्थिति को सुधारने के लिए किशोरों को अपने कार्यों को करने से पहले एक मिनट का समय लेकर उन कार्यों के परिणामों के बारे में सोचना चाहिए।
वहीं एक ओर शोध के अनुसार 22-25 आयु वर्ग के बीच के लगभग 65% युवाओं में तनाव के शुरुआती लक्षण देखने को मिलते हैं। जिनमें कई मामलों में निम्न आय स्तर भी तनाव का एक प्रमुख कारण बना है। इसके अतिरिक्त, 64% में प्रयाप्त नींद ना आना तनाव का प्रमुख कारण है। नींद की कमी विकृत मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाता है, जो पुरुषों (55%) की तुलना में महिलाओं (66) में उच्च स्तर पर होता है।
दक्षिण-पूर्व एशिया में किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार: 2007 में डब्ल्यूएचओ(WHO) द्वारा प्रकाशित एविडेंस फ़ॉर एक्शन की रिपोर्ट में भारत की 5.8% जनसंख्या 13-15 आयु वर्ग की थी। रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में लगभग 25% किशोरों ने लगातार 2 सप्ताह या उससे अधिक समय तक तनावग्रस्त रहने की सूचना दी। वहीं 8% किशोर ने चिंता में होने की सूचना दी थी और 8% किशोर ज्यादातर समय या हमेशा अकेला महसूस करते थे और 10% किशोरों के कोई दोस्त नहीं थे और सर्वेक्षण में शामिल 11% किशोर मादक द्रव्यों का सेवन करते थे। किशोरों के तनाव में माता-पिता और स्कूल की भूमिका :-
1) किशोरों में तनाव की पहचान निम्न तरिकों से करें :-
• दिन के अधिकांश समय में किशोरों में उदास या चिड़चिड़ा स्वभाव दिखना। किशोर द्वारा दुखी या क्रोधित महसूस करना।
• उन चीजों का आनंद नहीं लेना जिनसे उन्हें खुशी मिलती हो।
• वजन कम होना या बढ़ना एक उल्लेखनीय परिवर्तन है।
• रात को बहुत कम या दिन में बहुत ज्यादा सोना।
• परिवार या दोस्तों के साथ समय व्यतित न करना।
• अयोग्यता या अपराधबोध की भावना उत्पन्न होना।
• स्कूल के अंकों में गिरावट आना।
• कुछ गंभीर ना होने पर भी दर्द और पीड़ा की शिकायत करना और मौत या आत्महत्या के लगातार विचार आना।
2) किशोरों में तनाव को दूर करने के लिए कुछ रणनीतियाँ निम्न हैं :-
• आउटडोर थेरेपी(Outdoor Therapy) के माध्यम से प्रकृति में समय बिताने से कई मायनों में मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
• कई अध्ययनों से पता चलता है कि ध्यान और योग से मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सकता है। जॉन्स हॉपकिन्स के एक समीक्षा अध्ययन में पाया गया कि ध्यान लगाना चिंता और तनाव के लक्षणों के इलाज में एंटीडिप्रेसेंट(Antidepressants) की तरह ही प्रभावी है।
• अनुसंधान से पता चलता है कि शरीर द्वारा एंडोर्फिन के उत्पादन में वृद्धि करके तनाव से लड़ा जा सकता है।
• पर्याप्त नींद मानसिक स्वास्थ्य को लाभांवित करती है।
• कई अध्ययनों से पता चलता है कि सामाजिक मेल-मिलाप, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करते हैं।
• वैज्ञानिक अध्ययनों में बताया गया है कि आहार और मानसिक स्वास्थ्य के बीच सीधा संबंध है। इसलिए बढ़ती उम्र वाले बच्चों में सही आहार का खास ध्यान रखना चाहिए।
3) माता-पिता के लिए कुछ सुझाव :-
• बच्चे को घर में पोषण, नींद और व्यायाम के संबंध में स्वस्थ आदतें सिखाने में मदद करें। यदि आपका बच्चा घर से दूर है तो उसके व्यवाहार में किसी भी बदलाव पर ध्यान दें।
• अगर आपको पता चलता है कि आपका बच्चा मानसिक तनाव से गुजर रहा है तो उसे दंडित करने के बजाय करुणा से बात करें और उनसे उनकी परेशानी के कारण को साझा करने के मनाएं।
• यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा तनावग्रस्त है, तो तुरंत स्कूल के काउंसलर, थेरेपिस्ट या डॉक्टर को इस बारे में बताएं।
4) स्कूलों में तनाव के उपचार
• संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा में किशोरों के विचार और व्यवहार पैटर्न को पहचाना और संशोधित किया जाता है। इसमें उनके विचारों को नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर ले जाया जाता है।
• डायलेक्टिकल बिहेवियरल थेरेपी में किशोरों को उन अस्वास्थ्य व्यवहारों (जो उनके मन में गहनता से प्रवेश किए हुए हैं) से निपटने में मदद करती है और इन व्यवहारों को सुधारने के तरीके विकसित करती है।
• मनोचिकित्सा समूहों में, किशोरों का मस्तिष्क कैसे काम करता सिखाया जाता है, ताकि वे अपने विचारों में परिवर्तन कर सकें।
संदर्भ:
1.https://www.indiablooms.com/life-details/L/956/chandigarh-is-the-happiest-city-in-india-study.html
2.http://archive.indianexpress.com/news/stress-is-more-stressful-for-teens-than-adults/807254/
3.https://www.hindustantimes.com/health-and-fitness/65-indian-youngsters-show-early-signs-of-depression-study/story-9JJoIWNn0FsRINKcHFYnwM.html
4.https://www.ndtv.com/education/mental-health-status-among-adolescents-in-india-possible-solutions-1761025
5.https://www.healthychildren.org/English/health-issues/conditions/emotional-problems/Pages/Childhood-Depression-What-Parents-Can-Do-To-Help.aspx
6.https://www.newportacademy.com/resources/mental-health/adolescent-depression-in-schools/
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