रबी और खरीफ के मध्‍य अंतराल में पुदीने की खेती एक अच्‍छा विकल्‍प

लखनऊ

 06-02-2019 04:09 PM
बागवानी के पौधे (बागान)

किसानों द्वारा प्रमुख फसलों का उत्‍पादन मुख्‍यतः रबी और खरीफ के मौसम में किया जाता है। इन दोनों मौसम के मध्‍य जो अंतराल (जायद का मौसम) होता है, इस दौरान भी किसान कुछ ऐसी फसलें उत्‍पादित कर सकते हैं, जिनसे उन्‍हें अच्‍छा आर्थिक लाभ प्राप्‍त हो सके, इनमें से एक फसल है पुदीना। अपने औषधीय गुणों और अद्भूत सुगंध के कारण पुदीने की मांग आज विश्‍व स्‍तर पर तीव्रता से बढ़ती जा रही है, माउथवॉश, टूथपेस्ट, च्युइंग गम, बालों में प्रयोग होने वाला शीतल तेल, टेलकम पाउडर (talcum powder) इत्‍यादि में इसका प्रयोग किया जा रहा है। भारतीय किसानों के लिए एक सकारात्‍मक बिंदु यह है कि भारत विश्‍व में सबसे बड़ा पुदीना निर्यातक देश है। भारत मुख्‍यतः अमेरिका, ब्रिटेन, अर्जेन्‍टीना, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, जापान इत्‍यादि को पुदीना या उसके उत्‍पाद निर्यात करता है, जो किसानों की आय पर प्रत्‍यक्ष प्रभाव डालता है।

1964 से पहले भारत में पुदीने की खेती नहीं की जाती थी। रीजनल रिसर्च लेबोरेटरी जम्मू तवी से श्री आरएन चोपड़ा और डॉ आईएन चोपड़ा ने पहली बार पुदीने को 1964 में यहां लाया और हिंदुस्तान रिचर्डसन लिमिटेड (विक्स) के प्रबंध निदेशक श्री एससी बंटे के सर्वोत्तम प्रयासों से भारत में इसकी व्यावसायिक खेती शुरू की जा सकी। रिचर्डसन हिंदुस्तान लिमिटेड द्वारा किए गए सर्वेक्षण से उत्तर-प्रदेश के तराई क्षेत्र को पुदीने की फसल के लिए उपयुक्त स्थान निर्धारित किया गया इसलिए यहां पुदीने हेतु एक कृषि अनुसंधान केंद्र स्थापित करने के लिए 15 हेक्टेयर की भूमि खरीदी गई थी। मेंथा की फसल सफलतापूर्वक उगाई गई और जब स्टीम आसवन द्वारा मेंथा तेल निकाला गया, अर्थक्षम पुदीने की फसल व्यवहार्य में आ गई। फार्मर्स स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज और CSSIR प्रयोगशालाओं RRL जम्मू, CIMAP लखनऊ के सर्वोत्तम प्रयासों से, भारत दुनिया में मेंथॉल और पुदीने के उत्पादों का सबसे बड़ा उत्पादक राष्‍ट्र बन गया, अब दूसरा चीन है।

भारत में पुदीने की खेती मुख्‍यतः गंगा बेसिन वाले क्षेत्र में की जाती है, भारत के प्रमुख पुदीना उत्‍पादक राज्‍य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और बिहार हैं इनमें भी 95% खेती उत्तर प्रदेश तथा अन्‍य 5% खेती अन्‍य राज्‍यों द्वारा की जाती है। उत्तर प्रदेश में 1.30 लाख हैक्टेयर भूमि पर मेंथा की खेती की जाती है तथा 20,000-22,000 टन तेल का वार्षिक उत्पादन किया जाता है। उ.प्र. में, प्रमुख पुदीना उत्पादक जिले बाराबंकी, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, बदायूं, पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, हरदोई, उन्नाव, फैजाबाद, बदायूं और लखनऊ हैं।

आवश्‍यक भौगोलिक स्थिति:
पुदीने की खेती के लिए, मिट्टी में पर्याप्त जैविक सामग्री, अच्छी जल निकासी, 6.0-7.5 के मध्‍य पीएच तथा रेतीली दोमट और जलोढ़ दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। खेत की अच्छी तरह से जुताई करके भूमि को समतल बना लेते हैं। मेंथा के रोपण के बाद, हल्की सिंचाई दें ताकि यह अच्छी तरह से रोपित हो।

बुवाई का उपर्युक्‍त समय:
पुदीने की एक अच्‍छी फसल प्राप्‍त करने के लिए इसकी बुवाई का उपयुक्त समय 15 जनवरी से 15 फरवरी है। देर से बुवाई के लिए पौधों को नर्सरी में तैयार करके मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक खेत में रोप दें। देर से खेती के लिए कोसी किस्म के पुदीने का चयन करें।

बुवाई की विधि:
जापानी पुदीने की रोपाई के लिए लाइन की दूरी 30-40 सेमी०, देशी पुदीने के लिए लाइन की दूरी 45-60 सेमी० और जापानी पुदीने में पौधों से पौधों की दूरी 15 सेमी० रखनी चाहिए। जड़ों की रोपाई की गहराई 3 से 5 सेमी० करनी चाहिए। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। बुवाई / रोपण के लिए 8-10 सेमी के 4-5 क्विंटल जड़ पर्याप्त हैं।

उच्च लाभप्रदता के लिए फसल संयोजन:

उर्वरकों की मात्रा:
सामान्‍यतः, मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर उर्वरकों का उपयोग लाभदायक होता है। सामान्य स्थिति में पुदीने की अच्छी पैदावार के लिए 120-150 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश और 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर सल्फर का उपयोग करना चाहिए। फॉस्फोरस, पोटाश और सल्फर की कुल मात्रा और 30-35 किलोग्राम नाइट्रोजन का उपयोग बुवाई से पहले लकीरों में करना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा का उपयोग बुवाई के 45 दिन, 70-80 दिन और पहली कटाई के 20 दिन बाद करना है।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण:
पुदीने की सिंचाई मिट्टी, तापमान और हवा की तीव्रता पर निर्भर करती है। बुवाई / रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें। 20-25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई जारी रखें। हर कटाई के बाद सिंचाई जरूरी है। रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथलीन 30 ई०सी० के 3.3 लीटर प्रति हे० को 700-800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई/रोपाई के पश्चात् ओट आने पर यथाशीघ्र छिड़काव करें।

फसल सुरक्षा:
कीट, दीमक (जडों पर), बालदार सूंड़ी (पत्तियों की निचली सतह पर), पत्ती लपेटक कीट (पत्तियों पर), रोग जड़गलन (जडों पर), पर्णदाग (पत्तियों पर) इत्‍यादि फसल को क्षति पहुंचाते इनसे आवश्‍यक सुरक्षा की आवश्‍यकता होती है।

कटाई:
पुदीने की फसल की कटाई प्रायः दो बार की जाती है। पहली कटाई लगभग 100-120 दिन बाद की जाती है। पौधों की कटाई जमीन की सतह से 4-5 सेमी० ऊॅंचाई पर करनी चाहिए। दूसरी कटाई, पहली कटाई के लगभग 70-80 दिन बाद की जाती है। कटाई के बाद पौधों को 2-3 घण्‍टे तक खुली धूप में छोड़ दें तत्पश्चात् कटी फसल को छाया में हल्का सुखाकर जल्दी आसवन विधि द्वारा तेल निकाल लें। यह तेल यूपी के कारखानों और जम्मू जैसे कुछ राज्यों में बेचा जाता है। ये फैक्ट्रियां पुदीने के तेल को विभिन्न उत्पादों (मेन्थॉल, पेपरमिंट ऑयल) और उप-उत्पादों में संसाधित करती हैं, जिन्हें फिर घरेलू बाजार में बेचा जाता है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जाता है। पुदीने के पत्तों के तेल का उपयोग व्यापक रूप से औषधीय, सौंदर्य प्रसाधन, मिष्ठान और कई अन्य उत्पादों में उपयोग किया जाता है और इस प्रकार जो लोग इसकी खेती करते हैं, उन्हें इसकी मार्केटिंग(Marketing) में कोई समस्या नहीं होती है।

संदर्भ:
1.http://upagripardarshi.gov.in/StaticPages/JayadMentha.aspx
2.http://www.ijpab.com/form/2017%20Volume%205,%20issue%206/IJPAB-2017-5-6-1323-1327.pdf
3.https://www.hindustantimes.com/lucknow/the-mint-that-grows-profits-for-farmers/story-aeaOnQL9NAHjwJb18gJbLM.html
4.https://www.agricultureinformation.com/mint-growers-association-india/
5.http://www.ventura1.com/pdf/commodity/productnote/Mentha.pdf



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id