रोहिल्ला के नाम का जहाज़ मिला टाइटैनिक से भी बड़े हादसे से

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
25-01-2019 02:09 PM
रोहिल्ला के नाम का जहाज़ मिला टाइटैनिक से भी बड़े हादसे से

औपनिवेशिक काल के दौरान यातायात के प्रमुख साधनों में से जलीय मार्ग भी एक थे। शायद इसी कारण उस दौरान के अनेक जलीय हादसे सुनने को मिलते हैं। जिनमें से एक भयावह हादसा था रोहिल्ला वाष्‍प पोत / स्टीमर (Steamer) का दुर्घटना ग्रस्‍त होना। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चिकित्‍सालय के रूप में इस जहाज़ को उपयोग किया गया था। रोहिल्ला ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कंपनी (British India Steam Navigation Company) का एक यात्री वाष्प पोत था, जिसे ब्रिटेन और भारत के बीच सेवा के लिए, और एक सैन्य दल के रूप में बनाया गया था। एस.एस. रोहिल्ला को, 1906 में हारलैंड एंड वोल्फ, बेलफास्ट (Harland & Wolff, Belfast) द्वारा ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कंपनी (BISNc) के अधिकारियों के लिए बनाया गया था।

एस.एस. रोहिल्ला को 1905 में ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कंपनी ने बनवाने का आदेश दिया था। इसके साथ ही एस.एस. के साथी के रूप में रीवा नाम के एक और जहाज़ को बनाने का आदेश भी दिया गया था। हालांकि दोनों जहाज़ों को लन्दन और कलकत्ता के बीच सेवा प्रदान करने के लिए बनवाया गया था, परन्तु बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण ब्रिटिश-भारत ने इसे इस प्रकार बनवाया कि ये एक सैन्य दल के रूप में भी इस्तेमाल किये जा सकें। उस समय ब्रिटिश भारत के नियंत्रण में आने वाले अधिकतर जहाज़ों के नाम के लिये भारतीय स्थानों के नाम या उन पर आधारित नामों का उपयोग किया जाता था, और अधिकांशतः ये नाम अक्षर ‘ए’ (‘A’) पर समाप्त होते थे। और इसी रीत के चलते, इस जहाज़ का नाम दिल्ली के पूर्व में मौजूद संयुक्त प्रांत, रोहिलखण्ड के लोगों के नाम पर रखा गया था। इस जहाज़ ने एक समुद्री पर्यटन पोत के रूप में अपने जीवन की यात्रा शुरू की थी, ये सर्दियों के दौरान लंदन-भारत के बीच साउथेम्प्टन से कराची तक यात्रा करता था।

1955 से पहले के ब्रिटिश भारत के जहाज़ों में सजावट के तौर पर एक श्वेत रंग की पट्टी के साथ काले रंग का जहाज़ का ढाँचा होता था और कंपनी के विशिष्ट दो सफेद छल्ले के साथ एक काला फ़नल (Funnel) होता था। परंतु 1955 के बाद के जहाजों के ढाँचे को सफेद रंग के साथ रंगा गया, और सबसे ऊपर एक काले रंग की पट्टी को बनाया गया। 6 अगस्त 1914 को इसे नौसेना-विभाग के लिए अस्पताल के जहाज़ के रूप में परिवर्तित करने की मांग की गई, इस कारण इसे रेड क्रॉस (Red Cross) के साथ पंजीकृत किया गया और मान्यता प्राप्त सफेद रंग से ऊपरी ढाँचा सजाया गया तथा ढाँचे के चारों ओर एक हरी पट्टी बनाई गयी। अब रोहिल्ला अपनी नई भूमिका को समायोजित करने के लिए तैयार था, इसके यात्री आवास को अस्पताल के वार्डों में बदल दिया गया और जहाज़ में दो थिएटरों को निर्मित किया गया था, जो पूर्ण एक्स-रे (X Ray) उपकरणों और वायरलेस रेडियो (Wireless Radio) से लैस था। यह पहला ब्रिटिश भारत का जहाज था जिसमें इस प्रकार की सुविधाएं थी।

वहीं जब 30 अक्टूबर 1914 को यह जहाज़ चिकित्सा कर्मचारियों को लेकर ज़ख़्मी सैनिकों की मदद के लिए बेल्जियम के डनकर्क की ओर बढ़ रहा था तो शुरुआती घंटों में ही भयानक तूफान की चपेट में आने की वजह से यह अपना नियंत्रण खो बैठा। कप्तान ने नॉर्थम्बरलैंड के तट से अपनी अंतिम ज्ञात स्थिति का उपयोग करके अपने स्थान का अनुमान लगाया जिससे कप्तान ने माना कि वह यॉर्कशायर तट से मीलों दूर है। लेकिन जहाज़ व्हिटबी और उसकी नुकीली चट्टानों से कुछ मील ही दूर था।

उस समय युद्ध के कारण किनारे पर कोई मार्गदर्शक लाइट (Navigation Light) नहीं थी जिस वजह से कप्तान को पता नहीं चला कि वे कहां हैं और जब वे यॉर्कशायर तट के समीप पहुंचे, तो उसके निकट स्थित चट्टानों से जहाज़ टकरा गया। रोहिल्ला की ग्रीनिच मीन टाइम (Greenwich Mean Time) के अनुसार 04:00 बजे साल्टविक नैब से टक्कर हुई, जो उत्तरी यॉर्कशायर शहर के पूर्व में लगभग 400 गज लंबी चट्टान थी। तभी जहाज़ तीन हिस्सों में टूट गया, जिसका पहला हिस्सा डूब गया और उसमें मौजूद अधिकांश लोगों की मृत्यु हो गई। बाकि के बचे हुए हिस्से में लोग फंस गए क्योंकि वो हिस्सा अगले तीन दिनों की अवधि में टूटा था। इस हादसे से बचने वाली एक महिला जो दो साल पहले टाइटैनिक (Titanic) हादसे को भी झेलकर जीवित निकली थी, का कहना था कि यह समुद्री आपदा टाइटैनिक (Titanic) के डूबने से भी भयानक थी।

इस भयावी दृश्य को चट्टानों के ऊपर इकट्ठी हुई भीड़ द्वारा भी देखा गया। वहाँ से रॉकेटों को जहाज़ की ओर भी प्रक्षेपित किया गया लेकिन वे जहाज़ की एक रेखा को भी सुरक्षित करने में असमर्थ रहे थे। तूफान की वजह से बचाव कार्य भी संभव नहीं हो पाया, बल्कि बचाव दल को पहली नांव को भेजने से पहले भोर तक रुकना पड़ा था। जहाज़ के मलबे से नांव की मदद से 229 में से 35 यात्रियों को दो बारी में बचाया गया।

अगले तीन दिनों में, जिन लोगों ने उग्र समुद्रों में बचने के लिए तैरने का प्रयास किया, उनमें से कुछ को बचा लिया गया, हालांकि कईयों की मृत्‍यु हो गयी थी, और जीवन नौका अन्‍यों को बचाने में सक्षम रही। सभी 229 में से 146 बचने वालों में कप्तान नीलसन और सभी नर्सें भी शामिल थीं। एक किंवदंती के अनुसार, कप्‍तान द्वारा जहाज़ में मौजूद काली बिल्ली को अपनी बांह में दबाकर बचाया गया। हालांकि रोहिल्ला की कहानी कई लोगों के लिए अपरिचित है, लेकिन इसका मलबा आज भी व्हिटबी के समुद्र के नीचे है, जिसका नियमित रूप से गोताखोरों द्वारा दौरा किया जाता है।

संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/SS_Rohilla
2.https://www.wrecksite.eu/wreck.aspx?1813
3.https://www.bbc.com/news/uk-england-york-north-yorkshire-29807414