आपने ध्यान दिया होगा कि विश्व में जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, उनमें से अधिकांशतः किसी न किसी से प्रभावित या प्रेरित थे। ऐसी ही महान विभूतियों में से एक थे, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस जिनके जीवन पर आध्यात्मिक गुरू स्वामी विवेकानंद जी का अत्यधिक प्रभाव था। बोस का जन्म आज ही के दिन (23 जनवरी) सन 1897 में हुआ था। बोस के अनुसार स्वामी जी एक पूर्ण व्यक्तित्व वाले साहसी व्यक्ति थे जिन्हें इन्होंने अपने आदर्श के रूप में स्वीकार किया था। नेताजी ने स्वयं लिखा है कि उन्होंने मात्र 15 वर्ष की अवस्था से स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें पढ़ना प्रारंभ कर दिया था। जिनसे इन्हें वे सभी शिक्षाएं प्राप्त हो गयी थी जिनकी इन्हें तलाश थी। नेताजी ने स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारत का निर्माता बताया। नेताजी कहते थे, “यदि श्री रामकृष्ण (स्वामी विवेकानंद के गुरू) और स्वामी विवेकानंद जीवित होते तो मैं अवश्य ही उनका शिष्य होता किंतु आज वे हमारे समक्ष नहीं हैं पर मैं उनके प्रति पूर्णतः वफादार रहूँगा।”
नेताजी राष्ट्र के पुनर्निर्माण के विषय में स्वामी जी के दार्शनिक विचारों से प्रभावित थे। स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व समृद्ध, गहन और जटिल था। इस व्यक्तित्व के कारण उन्होंने अपने देशवासियों और विशेष रूप से बंगालियों पर अद्भुत प्रभाव डाला, जिनमें नेताजी भी शामिल थे। हालाँकि स्वामी जी ने कभी कोई राजनीतिक संदेश नहीं दिया, लेकिन उनके संपर्क में आने वाले सभी लोगों ने या उनके लेखन ने देशभक्ति और राजनीतिक मानसिकता की भावना विकसित की। स्वामी विवेकानंद गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ेपन की समस्याओं को हल करने में सोवियत रूस में समाजवाद की सफलता से अभिभूत थे लेकिन उन्हें सोवियत प्रणाली का हठधर्मी दृष्टिकोण पसंद नहीं आया, जिसने मनुष्य को एक मशीन (Machine) के रूप में समझा। लेकिन स्वामी विवेकानंद की भांति बोस का भी मानना था कि प्रत्येक मनुष्य ब्रह्म या सर्वोच्च आत्मा का स्वरूप है।
स्वामी विवेकानंद जनता के हित में हमारे समाज का आर्थिक उत्थान चाहते थे। वह अपने शब्दों में धन का समुचित वितरण चाहते थे: वे भारत में व्याप्त भुखमरी से व्याकुल थे तथा इसके निवारण के लिए चिंतित थे। नेताजी सामाजिक-आर्थिक संकट को हल करने तथा विकास के लिए सोवियत रूस के समान एक योजनाबद्ध दृष्टिकोण चाहते थे। 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने विकास संबंधी रणनीतियों को बनाने के लिए जवाहरलाल नेहरू के साथ एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया था। उन्होंने माना कि आर्थिक स्वतंत्रता राजनीतिक और सामाजिक स्वतंत्रता की उपलब्धि का सार है।
फरवरी 1938 में हरिपुरा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 51वें सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण में बोस ने स्वतंत्र भारत की आर्थिक योजना और औद्योगिकीकरण के बारे में अपने विचारों को व्यक्त किया। जिसमें उन्होंने बताया कि भावी राष्ट्रीय सरकार को पुनर्निर्माण की एक व्यापक योजना तैयार करने के लिए एक आयोग का गठन करना होगा। यह आयोग सोवियत संघ में सुप्रीम इकोनॉमिक काउंसिल (Supreme Economic Council) या वेसेनखा (Vesenkha) के समान एक निकाय होगा, जिसने उस देश में योजना प्रक्रिया की सलाह दी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और कृषि ऋणग्रस्तता को दूर करने की भी बात कही। स्वामी विवेकानंद की भांति, बोस ने आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी तरीकों पर आर्थिक पुनर्निर्माण और औद्योगिकीकरण की अभिलाषा व्यक्त की। एक समतावादी समाज के बारे में बोस का विचार सामाजिक और आर्थिक स्थिति की समानता पर आधारित था। इनका मानना था कि जन्म, माता-पिता, जाति और पंथ के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। एक सच्चे समाजवादी के रूप में, वे किसानों और श्रमिकों की शोषण से मुक्ति चाहते थे।
नेताजी की नज़र में समाजवाद का अर्थ कार्ल मार्क्स की नकल करना नहीं था। उनका मानना था कि मार्क्सवादी सिद्धांत और अनुप्रयोग भौतिक लाभ और सृजनात्मक सुविधा पर बहुत अधिक निर्भर थे तथा उनमें मनुष्य के आध्यात्मिक उत्थान का कोई विकल्प नहीं था। बोस अपने विकास के मॉडल में मार्क्स के आर्थिक सिद्धांतों को शामिल करना चाहते थे, लेकिन मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद में इनकी कोई रूचि नहीं थी। बोस विवेकानंद की मूल्य-आधारित मानवतावादी सामाजिक स्थिति चाहते थे, जहां किसी भी तथ्य, पुरुष और महिला, जाति और पंथ के आधार पर समाज के आर्थिक उत्थान में किसी प्रकार के भेदभाव का सामना ना करना पड़े।
1.https://www.speakingtree.in/blog/subhas-chandra-bose-on-swami-vivekananda
2.https://www.thestatesman.com/opinion/vivekananda-s-influence-on-bose-1481230319.html
3.https://www.facebook.com/knowswamiji/posts/netaji-subhas-chandra-bose-on-swami-vivekanandaswamiji-was-a-full-blooded-mascul/1429058127179468/
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