भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम में आज़ाद हिन्‍द फौज का योगदान

लखनऊ

 23-01-2019 02:16 PM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा
तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से तू कभी न डर
उड़ा के दुश्मनों का सर, जोश-ए-वतन बढ़ाये जा…………

ये कुछ पंक्तियां हैं, उस गीत की जिसे भारतीय राष्ट्रीय सेना (भा. रा. से.) या आज़ाद हिन्‍द फौज की रगों में जोश भरने के लिए गाया जाता था। आज़ाद हिन्‍द फौज बनायी तो गयी थी भारत को स्‍वतंत्रता दिलाने के लिए किंतु इसका जन्‍म हुआ विदेशी भूमि अर्थात जापान में। इसका गठन भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान 1942 में किया गया। भारतीय राष्‍ट्रीय सेना मोहन सिंह के दिमाग की उपज थी, जिसे रासबिहारी बोस ने एक स्‍वरूप प्रदान किया। इन्‍होंने जापानियों के प्रभाव और सहायता से दक्षिण-पूर्वी एशिया से जापान द्वारा एकत्रित क़रीब 40,000 भारतीय स्त्री-पुरुषों को सेना का प्रशिक्षण दिया तथा उसे नाम दिया ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’।

इस सेना में ‘मलायन अभियान’ (8 दिसंबर 1941 - 31 जनवरी 1942) और ‘सिंगापुर की लड़ाई’ (8 से 15 फरवरी 1942) के दौरान जापान द्वारा ब्रिटिश-भारतीय सेना के कब्जे में लाये गए भारतीय सैनिक शामिल थे। दिसंबर 1942 में, एशिया में जापान की युद्ध में भूमिका को लेकर जापानी सेना और भा. रा. से. का नेतृत्‍व करने वाले सदस्‍यों के मध्‍य मतभेद छिड़ गया, जिस कारण इस सेना को भंग कर दिया गया। तत्‍पश्‍चात दक्षिण-पूर्व एशिया में आगमन हुआ भारत के महानायक सुभाष चन्‍द्र बोस का। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म सन 1897 में आज ही के दिन (23 जनवरी) कटक में हुआ था। इनके नेतृत्‍व से प्रभावित होकर रासबिहारी बोस जी ने भा. रा. से. की कमान सुभाष चन्‍द्र बोस जी के हाथों सौंप (1943 में) दी। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में इसे पुनर्जीवित किया गया था। सेना को बोस की अर्ज़ी हुकुमत-ए-आज़ाद हिंद (स्‍वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार) की सेना कहा गया। इसी दौरान सुभाष चन्‍द्र बोस ने अपना अमर नारा ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा’ दिया। सुभाष चन्‍द्र बोस के आह्वान पर लोग बड़ी संख्‍या में सेना में शामिल होने लगे। बोस के नेतृत्व में, सेना ने मलाया (वर्तमान मलेशिया) और बर्मा में भारतीय प्रवासी आबादी के पूर्व कैदियों और हजारों नागरिक स्वयंसेवकों को आकर्षित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि इनकी सेना के आंकड़े 40,000 तक पहुंच गये।

इस दूसरी भा. रा. से. ने शाही जापानी सेना के साथ इम्फाल में और बर्मा के अभियानों में ब्रिटिश और राष्ट्रमंडल सेना के विरूद्ध लड़ाई लड़ी और बाद में मित्र राष्ट्रों के सफल बर्मा अभियान के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में, स्वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार ने अंग्रेजों और अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। बोस ने मणिपुर में जापानियों के ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आक्रमण में भा. रा. से. को एक अभिन्न अंग बनाने के लिए जापानियों को आश्वस्त किया। यू-गो (U-Go) आक्रमण में, जो मणिपुर और नागा पहाड़ियों से ब्रिटिश कब्जा हटाने के उद्देश्य से एक सैन्य अभियान था, भारतीय सेना ने एक प्रमुख भूमिका निभाई। हालांकि, भा. रा. से. को बड़ी संख्‍या में अपने सैनिकों को खोना पड़ा, जिस कारण सेना काफी कमजोर पड़ गयी। 1945 में, भा. रा. से. 'बर्मा अभियान' के दौरान जापानी तैनाती का हिस्सा रही, जो बर्मा के ब्रिटिश उपनिवेश में हुई लड़ाई की एक श्रृंखला थी। दुर्भाग्य से, भा. रा. से. के सैनिकों और जापानी सेना को ब्रिटिश सेनाओं द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया, जिससे कई लोगों को आत्मसमर्पण या पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। भा. रा. से. के पास सुरक्षा से पीछे हटने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

साथ ही जापानियों ने बर्मा में अपनी चढ़ाई को भी वापस ले लिया था तथा शेष बचे भारतीय राष्‍ट्रीय सेना के जवानों ने बैंकॉक की ओर पैदल मार्च शुरू किया। जापानी सैनिकों द्वारा उन्हें परिवहन उपलब्‍ध कराने के बावजूद भी, बोस द्वारा मना कर दिया गया और वे अपने सैनिकों के साथ चले गए। वापस आने के दौरान इनकी सेना को मित्र राष्‍ट्र के हवाई हमलों और बर्मा तथा चीनी सैनिकों के विरोध का सामना करना पड़ा। बोस अगस्‍त 1945 तक भारतीय राष्‍ट्रीय सेना और आज़ाद हिन्‍द से जुड़े रहे। अगस्त 1945 में, सुभाष चंद्र बोस ने सोवियत सैनिकों से संपर्क करने हेतु डालियान के लिए प्रस्थान किया। लेकिन बाद में यह बताया गया कि बोस जिस विमान में यात्रा कर रहे थे, वह ताइवान के पास दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया जिसमें उनकी मृत्‍यु हो गयी।

भारतीय राष्‍ट्रीय सेना के कुल 16,000 सैनिकों को विभिन्न स्थानों से अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया था। नवंबर 1945 तक, लगभग 12,000 भा. रा. से. के सैनिकों को चटगांव और कलकत्ता में पारगमन शिविरों में रखा गया था। नवंबर 1945 में, यह बताया गया कि अंग्रेजों ने कई भारतीय राष्‍ट्रीय सेना के सैनिकों को मार डाला, जिसके कारण पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ।

संदर्भ:
1.https://www.historynet.com/indian-national-army1942-45.htm
2.https://learn.culturalindia.net/indian-national-army.html
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_National_Army



RECENT POST

  • आइए समझते हैं, तलाक के बढ़ते दरों के पीछे छिपे कारणों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:28 AM


  • आइए हम, इस विश्व हिंदी दिवस पर अवगत होते हैं, हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसार से
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:34 AM


  • आइए जानें, कैसे निर्धारित होती है किसी क्रिप्टोकरेंसी की कीमत
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:38 AM


  • आइए जानें, भारत में सबसे अधिक लंबित अदालती मामले, उत्तर प्रदेश के क्यों हैं
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:29 AM


  • ज़मीन के नीचे पाए जाने वाले ईंधन तेल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे होता है?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:46 AM


  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली कैसे बनती है ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:32 AM


  • आइए, आज देखें, अब तक के कुछ बेहतरीन बॉलीवुड गीतों के चलचित्र
    ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

     05-01-2025 09:27 AM


  • आइए चलते हैं, दृष्टिहीनता को चुनौती दे रहे ब्रेल संगीत की प्रेरणादायक यात्रा पर
    संचार एवं संचार यन्त्र

     04-01-2025 09:32 AM


  • आइए जानें, कैसे ज़ाग्रोस क्षेत्र के लोग, कृषि को भारत लेकर आए
    जन- 40000 ईसापूर्व से 10000 ईसापूर्व तक

     03-01-2025 09:26 AM


  • परंपराओं का जीता जागता उदाहरण है, लखनऊ का आंतरिक डिज़ाइन
    घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ

     02-01-2025 09:39 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id