भारत में रूढ़िवादी सोच के चलते कई लोगों को प्रभावित होना पड़ता है, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं महिलाएं। मासिक धर्म से संबंधित अज्ञानता व खुले तौर पर इन विषयों पर चर्चा ना कर पाने की वजह से कई महिलाएं अनेक बिमारियों से ग्रस्त होती हैं। परंपरागत रूप से, कई महिलाओं द्वारा मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के लिए कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे वे बार-बार धोती हैं और पुनः उपयोग करती हैं। वहीं जो गरीब हैं वे लत्ता, राख या भूसी का उपयोग करते हैं।
मासिक धर्म स्वच्छता की कमी से संक्रमण के साथ-साथ बैक्टीरियल वेजिनोसिस (Bacterial vaginosis) जैसे रोग भी होते हैं जिससे योनि में बैक्टीरिया और संक्रमण का प्रसार होता है। रटगर्स के एक अध्ययन से पता चलता है कि मासिक धर्म में 89% भारतीय महिलाओं द्वारा कपड़े का, 2% कपास ऊन का, 7% सैनिटरी नैपकिन (Sanitary napkin) का और 2% राख का इस्तेमाल करती हैं। कपड़े का इस्तेमाल करने वालों में, 60% उन्हें दिन में केवल एक बार बदलती हैं।
इस विषय में जागरूकता प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाओं को बढ़ावा दिया गया, जिसके चलते 2014 से 2015 के बीच सैनिटरी नैपकिन का उपयोग 50.7% से बढ़कर 54% हुआ था। इस योजना को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2011 में 10 और 19 वर्ष की आयु के बीच की लड़कियों के मध्य मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए शुरु किया था। योजना ने 17 राज्यों के 107 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों को अपने अंतरगत लिया था।
सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, यह योजना कई समस्याओं जैसे, सैनिटरी नैपकिन की गुणवत्ता और आपूर्ति, जागरूकता की कमी और असुरक्षित निपटान तकनीकों से ग्रस्त हुई थी। 2014 में, इस योजना को राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के साथ मिला दिया गया था। इस योजना तहत वितरित सैनिटरी नैपकिन का निर्माण ग्रामीण स्व-सहायता समूहों द्वारा किया जाता है, इसलिए इनकी गुणवत्ता नियंत्रण के उपाय राज्यों पर छोड़ दिए जाते हैं। इस योजना का खर्चा 2014-15 में 2,433.51 करोड़ रुपये से बढ़कर 2016-17 में 3,703.88 करोड़ रुपये हो गया है।
2014-15 के बीच हुए एक सर्वेक्षण में शामिल 16 राज्यों में से राजस्थान, पंजाब और केरल ने सैनिटरी नैपकिन के उपयोग में 8.2 से 26.5 प्रतिशत अंक की कमी को दर्शाया है। वहीं उत्तरप्रदेश ने 56.3% से 89% सैनिटरी नैपकिन के उपयोग में बढ़ोत्तरी को दर्शाया है। ओडिशा, राजस्थान और केरल में नैपकिन की गुणवत्ता में कमी के कारण उनके उपयोग में कमी होने लगी थी। वहीं अरुणाचल प्रदेश, बिहार, जम्मू और कश्मीर और महाराष्ट्र में सैनिटरी नैपकिन का स्टॉक खत्म हो गया था।
सैनिटरी नैपकिन के असुरक्षित निपटान से पर्यावरण को भी काफी खतरा हो रहा है। तमिलनाडु की एक कैग रिपोर्ट के मुताबिक इन नैपकिन पर प्लास्टिक की उपस्थिति इन्हें अजैव निम्नीकरण बना देती है। वहीं सरकार द्वारा मसोनरी चूलास को स्थापित करने के लिए 32 जिलों को 1.92 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। लेकिन उसमें से केवल 57 लाख रुपये का उपयोग किया गया और वह भी केवल 19 जिलों में ही।
सैनिटरी नैपकिन खरीदते समय ध्यान रखने योग्य बातें :-
रचना: कई ब्रांड द्वारा प्राकृतिक सैनिटरी नैपकिन का दावा करते हैं, लेकिन उनमें से कई प्राकृतिक सैनिटरी नैपकिन प्रदान नहीं करते हैं। इसलिए इन्हें खरीदते समय इनकी संरचना की जांच करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सुरक्षित और स्वच्छ निपटान: सैनिटरी नैपकिन का उचित निपटान स्वच्छता को बनाए रखता है। डिस्पोजेबल बैग (Disposable bag) युक्त सैनिटरी नैपकिन न केवल स्वच्छता को बनाए रखता है, बल्कि महिलाओं के लिए यात्रा करते समय भी बहुत सुविधाजनक होते हैं।
अपने और पर्यावरण दोनों की स्वच्छता को ध्यान में रखें: उन नैपकिन का चुनाव करें, जो न केवल आपके शरीर के लिए सुरक्षित हों बल्कि पर्यावरण के लिए भी स्वस्थ हो। जैवनिम्नीकरण नैपकिन पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए एक अच्छे विकल्प हैं, क्योंकि वे सिंथेटिक (synthetic) नैपकिन, जो अपघटित होने में लंबा समय लेते हैं की तुलना में बहुत तेजी से विघटित हो जाते हैं।
जहाँ उच्च स्तर में कई लड़कियों द्वारा अपने मासिक स्वच्छता के मुद्दों के कारण उच्च शिक्षा को छोड़ना एक चिंता का विषय बन रहा है, वहीं लखनऊ के अवध गर्ल्स डिग्री कॉलेज द्वारा अपने छात्रों के लिए एक स्वचालित सैनिटरी वेंडिंग मशीन (Automatic sanitary vending machine) स्थापित करने का साहसिक कदम उठाया गया है। अपर्याप्त मासिक धर्म संरक्षण के चलते किशोर लड़कियों (आयु वर्ग 12-18 वर्ष) को अपने मासिक धर्म के दौरान अवकाश लेना पड़ता है, जबकि लगभग 23 प्रतिशत लड़कियों द्वारा मासिक धर्म शुरू होने के बाद स्कूल छोड़ दिया जाता है। लखनऊ में सिर्फ स्कूलों और कॉलेजों में ही नहीं सैनिटरी वेंडिंग मशीन स्थापित की गई हैं, बल्कि महिलाओं की जेल में भी यह सुविधा प्रदान की जा रही है। महिला कैदियों को वित्तीय सहायता और बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए लखनऊ में महिलाओं की जेल के परिसर में एक सैनिटरी नैपकिन बनाने की मशीन को स्थापित किया गया। मशीन में हर महीने 10,000 सेनेटरी नैपकिन बनाने की क्षमता है।
पिछले साल ही भारत सरकार द्वारा सैनिटरी नैपकिन को कर मुक्त (tax free) कर दिया है। हालांकि अभी तक इस पर 12 प्रतिशत जीएसटी (GST) लगाया जाता था। यह कर छूट सैनिटरी नैपकिन के उपयोग को बड़े पैमाने तक ले जाने के लिए उच्च पहल है।
संदर्भ :-
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