लखनऊ विभिन्न भूकंप क्षेत्रों में से ज़ोन 3 में आता है। हालांकि लखनऊ में भूकंप के उच्च झटके महसूस नहीं होते हैं, फिर भी किसी भावी भूकंप का यदि पहले से पता चल जाए तो अच्छा होगा। तो, क्या वास्तव में भूकंप की भविष्यवाणी की जा सकती है? भूकंप के लिए विज्ञान की एक विशेष शाखा बनाई गयी है, जो पृथ्वी पर होने वाली भूकंपीय गतिविधियों पर नजर रखती है। भूकंप का पूर्वानुमान विभाग निर्दिष्ट सीमाओं के भीतर भविष्य के भूकंपों के समय, स्थान और परिमाण से संबंधित गतिविधियों को बताता है। किंतु वास्तव में वर्तमान समय में इसके पूर्वानुमान का कोई विशेष तरीका नहीं है। पुर्वानुमान लगाये गये भूकंप के परिणाम भिन्न भी हो सकते हैं।
वास्तव में भूकंप की तारीख का अनुमान लगाने के लिए कुछ विशेष तरीकों को अपनाया जाता है, जिसमें कुछ दोष होने की संभावना होती है। अधिकांश विशेषज्ञ यह स्वीकारते हैं कि अगले बड़े भूकंप का अनुमान लगाना असंभव है। भूकंप पृथ्वी की सतह के नीचे भूमिगत, चट्टानों के खिसकने से आता है, जो पृथ्वी के भीतर शक्तियों द्वारा संचालित होता है। इसमें यह अनुमान लगाना कठिन होता है कि ये चट्टाने बढ़ते दबाव और तापमान पर कैसे प्रतिक्रिया करेगी। प्रयोगशाला में किये जाने वाले प्रयोग अपेक्षाकृत छोटे नमूनों तक सीमित होते हैं, जबकि भ्रंश ज़ोन वाले प्रयोग कठिन और महंगे होते हैं। भूकंप की भविष्यवाणी करने के लिए हमें स्पष्ट अग्रगामी संकेतों की आवश्यकता होगी। भूकंप से पूर्व भूकंपविज्ञानी ने पर्यावरण में कुछ बदलावों जैसे कि रेडॉन गैस (radon gas) की सांद्रता में वृद्धि, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक (electromagnetic) गतिविधि में बदलाव, फॉरशॉक्स (foreshocks), औसत दर्जे की भू-विकृति, भूजल में भू-रासायनिक परिवर्तन और यहां तक कि पशुओं के असामान्य व्यवहार की ओर ध्यान दिया। इस प्रकार के अनेक उपायों को अपनाया गया है किंतु कोई भी भूकंप का सटीक पूर्वानूमान नहीं देता है, इसके लिए वैज्ञानिक अभी भी अध्ययन कर रहे हैं।
कुछ भूकंप भूजल स्तर में परिवर्तन से पहले आ जाते हैं। विवर्तनिकी में दबाव के बढ़ने पर चट्टानों पर सूक्ष्म दरारें विकसित हो सकती हैं, तथा जल में चट्टानों की भेद्यता बदल जाती है। इसके अलावा, स्प्रिंग्स की हाइड्रोकैमिस्ट्री (hydrochemistry) बदल सकती है, क्योंकि चट्टानों को संचित दबाव द्वारा तोड़ दिया जाता तथा भूजल में रसायन रिस जाते हैं या इनका प्रवाह परिवर्तित हो जाता है।
कुछ खनिजों में मौजूद तत्वों के रेडियोधर्मी क्षय द्वारा उत्पन्न गैस रेडॉन (radon) भूकंप से पहले उतार-चढ़ाव दिखा सकती हैं। इसका उपयोग पहले भूकंप की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि रेडॉन संकेंद्रण और भूकंप कैसे जुड़े हुए हैं। हो सकता है कि भ्रंश में चट्टानों के टूटने पर इनमें सूक्ष्म दरारें उत्पन्न हों, जो भूमिगत की पारगम्यता को बदल देते हैं और गैस सतह से निकल जाती हो, जहां से इसका पता लगाया जा सकता है। 2009 में इटली के लाक्विला (L’Aquila) के भूकंप से पहले सफलता के दावों के बावजूद, अधिकांश वैज्ञानिक इस पद्धति पर संदेह करते हैं। उच्च रेडॉन सांद्रता भूस्खलन, चट्टानों के टूटने या भूजल में रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा भी उत्पन्न हो सकती हैं।
कुछ क्रिस्टल (crystal) और चट्टानें अत्यधिक दबाव में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा (Electromagnetic energy) का उत्सर्जन करती हैं। एक क्षेत्र के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र को मापकर, भूमि में संग्रहित विकार को मापना संभव हो सकता है तथा चट्टानों के टूटने से पहले वैज्ञानिक भावी भूकंप के संकेत दे सकते हैं। इस युक्ति का उपयोग फारेशॉक्स (foreshocks) को मापने के लिए किया जाता है, जो एक प्रकार का भूकंप है। प्राचीन काल में, भूकंप का अनुमान इससे पूर्व पशुओं ही पक्षियों के बदलते व्यवहार से लगया जाता था। जिस पर आज भी शोध चल हो रहा है, लेकिन व्यवहार किसी भी सटीक पूर्वानुमान के लिए सामान्य नहीं है।
अमेरिका के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तरी कैलिफोर्निया (California) के हेवर्ड भ्रंश को अक्सर अमेरिका में सबसे खतरनाक भ्रंश कहा जाता है। यह इस देश के शहरों के निकटतम स्थित भ्रंश है, इस सर्वेक्षण के अनुसार यहां पर आने वाला भूकंप शहर में सबसे ज्यादा तबाही मचाता है। इस भ्रंश पर अंतिम भूकंप 1868 में आया था। एक ऐसा ही (सैन एंड्रियास (San Andreas)) भ्रंश केलिफोर्निया में स्थित है, जो 1906 के भूकंप के लिए भी उत्तरदायी था। यह भयानक भूकंप दोबारा 6 दिन बाद भी आ सकता था और 100 वर्ष बाद भी जिसका पूर्वानुमान संभव नहीं है। इसके लिए भूकंप प्रतिरोधी तैयारी ही सहायक सिद्ध हो सकती है।
हिमालय में स्थित उच्च-तीव्रता वाले भूकंप के विषय में वैज्ञानिकों द्वारा अक्सर चेतावनी दी जाती है। वैज्ञानिकों का कहना कि 1315 और 1440 के बीच 8.5 या उससे अधिक की तीव्रता का एक बड़ा भूकंप लगभग 600 किमी हिमालयी क्षेत्र में फैला हुआ था। जिसने पिछले 600 से 700 वर्षों के मध्य कोई प्रतिक्रिया नहीं की है, यह एक बड़े भूकंप के आने की ओर संकेत करता है। जिससे भारत के अनेक शोधकर्ता भी सहमत हैं।
संदर्भ:
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