प्राचीन विश्‍व में लेखन संग्रह का महत्‍पूर्ण माध्‍यम, स्क्रॉल

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12-01-2019 10:00 AM
प्राचीन विश्‍व में लेखन संग्रह का महत्‍पूर्ण माध्‍यम, स्क्रॉल

मानव में लेखन क्षमता वि‍कसित होने के साथ ही, उसने अपने भावों को अभिव्‍यक्त करने के लिए प्रकृति के विभिन्‍न माध्‍यमों को चुनना प्रारंभ कर दिया। जिसमें पांडुलिपियां, अभिलेख, पुस्‍तकें इत्‍यादि शामिल हैं। लेखों को सं‍रक्षित करने का एक ओर अद्भुत माध्‍यम है स्क्रॉल (Scroll) या रोल (Roll)। स्क्रॉल (पुरानी फ्रांसीसी एस्क्रो या एस्क्रौ से) मुख्‍यतः भोजपत्र, चर्मपत्र, या कागज़ से युक्त एक रोल होता है। स्क्रॉल का इतिहास प्राचीन मिस्र से मिलता है। कई प्राचीन संस्‍कृतियों में लम्बे दस्तावेज़ों को एक लचीली पृष्ठभूमि पर स्याही या पेंट (Paint) से अंकित किया जाता था। इस लचीली सतह से पहले सख्त सतहों का भी इस्तेमाल किया गया, जैसे मिट्टी की बनी पृष्ठभूमि आदि। मिस्र, यूनान, रोम तथा अन्य जगहों पर इन स्क्रॉल ने पुस्‍तक की भूमिका निभाई। संरक्षित किये गए सबसे प्राचीन स्क्रॉल पेपिरस (मिस्र का एक पौधा जिससे कागज़ बनता था) से बनाये गए थे तथा पेपिरस का उपयोग 6ठी शताब्दी तक किया गया था।

स्क्रॉल क्षैतिज या लंबवत दोनों रूप में होते हैं। लेखन को कभी-कभी चौड़ाई के अनुसार ऊपर से नीचे तक स्‍तं‍भित रूप में भी व्यवस्थित किया जाता है, जिससे दस्तावेज़ को पढ़ने और लिखने के लिए एक तरफ रखा जा सके; प्राचीन समय में व्‍यापक रूप से इसका उपयोग देखने को मिलता है। मध्ययुग तक अधिकांश स्क्रॉल लंबवत रूप से बनने लगे थे। स्क्रॉल आमतौर पर इस तरह खोले जाते थे कि एक पृष्ठ एक बार में, लिखने या पढ़ने के लिए आसानी से दिखाई दे, शेष पृष्ठ दृश्य पृष्ठ के बाईं और दाईं ओर रोल किये रहते थे। यह अगल-बगल से खुले होते हैं तथा पृष्ठ के ऊपर से नीचे तक पंक्तिबद्ध रूप में लेख लिखा जाता है। भाषा के आधार पर, अक्षरों को बाएं से दाएं, दाएं से बाएं या दिशा के अनुसार बारी-बारी से लिखा जा सकता है। स्क्रॉल पर लिखने के लिए प्रयोग की गयी स्याही को बार बार स्क्रॉल के बंद और खोले जाने से फर्क नहीं पड़ना चाहिए था। इसलिए एक विशेष प्रकार की स्‍याही का भी इजात किया गया था।

चर्मपत्र या कागज़ के छोटे टुकड़े को रोल या रोट्यूली (Rotuli) कहा जाता था। यह शब्‍द समय के साथ इतिहासकारों के मध्‍य बदलता रहा। शास्त्रीय युग के इतिहासकार स्क्रॉल के स्‍थान पर रोल शब्द का उपयोग करते हैं। रोल्स कई मीटर या फीट लंबे हो सकते हैं। यूरोप में मध्ययुग और प्रारंभिक आधुनिक काल तक इनका उपयोग किया गया था तथा विभिन्न पश्चिमी एशियाई संस्कृतियों के लिए पांडुलिपि प्रशासनिक दस्तावेजों हेतु स्क्रॉल का उपयोग किया गया था, जिनमें लेखांकन, जमाबंदी, कानूनी समझौते और आविष्कार शामिल थे। रोल अक्सर एक विशेष अलमारी में एक साथ संग्रहीत किये जाते थे। स्कॉटलैंड में, 13वीं से 17वीं शताब्दी तक स्क्रॉल, सूचीपत्र, लेखन, या दस्तावेजों की सूची के लिए ‘स्क्रो’ (Scrow) शब्द का उपयोग किया गया था।

रोमनों ने स्‍क्रॉल के स्‍थान पर कोडेक्स (Codex) का उपयोग प्रारंभ किया, जो स्क्रॉल के पृष्ठों की तुलना में पढ़ने और संभालने में बहुत आसान थे। माना जाता है कि जूलियस सीज़र ने पहली बार स्क्रॉल को कॉन्सर्टिना-फैशन (Concertina-fashion, किसी चीज़ को तह करने का एक तरीका) में तह किया था, जिसे इन्‍होंने गॉल में अपनी सेना के लिए प्रेषित किया था। उपयोग की दृष्टि से कोडेक्स स्‍क्रॉल की तुलना में ज्‍यादा सरल थे। साथ ही कोडेक्स में पन्ने के दोनों हिस्‍सों का उपयोग किया जा सकता था, जबकि स्क्रॉल में पन्ने के केवल एक तरफ लिखा जाता था। ऊपर दिए गए चित्र में दर्शाया गया स्क्रॉल ‘दी जोशुआ रोल’ के नाम से जाना जाता है तथा इसे बायज़ेन्टीन साम्राज्य में 10वीं शताब्दी में (संभावित) बनाया गया है।

भारत में स्क्रॉल का कला में संस्करण:
स्‍क्रॉल में लेखन ही नहीं वरन् चित्रकारी भी देखने को मिलती है, इन पर चित्रकारी करने वालों में से भारत भी एक है। माना जाता है कि भारत में चेरियल स्क्रॉल पेंटिंग (Cheriyal Scroll Painting) 16वीं शताब्दी में मुगलों द्वारा लाई गई थी। लेकिन कुछ का कहना है कि यह ज्यादातर स्थानीय लोगों का आविष्कार है क्योंकि वे राजस्थान, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में पाए जाने वाले स्क्रॉल पेंटिंग के अन्य रूपों से अलग हैं। चेरियल पेंटिंग में मंदिर कला परंपराओं का बड़ा प्रभाव रहा है। नृत्य और संगीत की प्रदर्शनकारी कलाओं को काकी पदागोलु समुदाय द्वारा चित्रकला की इस शैली में जोड़ दिया गया। काकी पदागोलु कहानी कहने वालों का एक समूह था जो कहानी सुनाते समय इन चित्रों को दृश्य सहायक के रूप में उपयोग करता था। आज, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के नक्श कबीलों की वर्तमान पीढ़ी ने अपनी इस विरासत को जीवित रखा है।

13वीं शताब्दी में पटुआ पेंटिंग (Patua Painting) के जन्म का पता लगाया गया। पटुआ शब्द वास्तव में एक बंगाली शब्द ‘पोटा’ का अपभ्रंश है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘एक उत्कीर्णक’ है। समय के साथ, यह कला रूप विकसित हुया और पोटा या पटुआ कहलाने वाले लोग स्क्रॉल पेंटर (Scroll painter) या चित्रकार बन गए। उन्होंने हिंदू, इस्लामी और बौद्ध संस्कृतियों में अपनी पहचान बनाई है। पटुआ का इतिहास उनके चित्रों जितना रंगीन रहा है।

संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_scrolls
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Scroll
3.http://medievalscrolls.com/scrolls-a-basic-introduction
4.https://www.goheritagerun.com/scroll-paintings-india-cheriyal-patua/