जब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में धन जारी किया जाता है, तो यह लेनदेन के माध्यम से प्रचलन में आता है। वहीं सरकार द्वारा अपने कर्मचारी को मुद्रा देकर, सामान और सेवाएं खरीदकर, सब्सिडी (subsidies) देकर और इसी तरह लेनदेन का प्रचलन चलता है। प्राप्त हुए पैसे का कुछ हिस्सा प्राप्तकर्ताओं द्वारा अपने पास रखा जाता है और बाकी बैंक के खातों में डाल दिया जाता है। एक सरकारी कर्मचारी जो वेतन प्राप्त करते है, वह इसका कुछ अंश घर पर रखते है और शेष को अपने बैंक खाते में कुछ ब्याज अर्जित करने के लिए जमा कर देते हैं। व्यवसायी जो अपने माल या समान सरकार को बेचते हैं, बैंक खातों में प्राप्त धन का एक हिस्सा वे अपने व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं, जबकि शेष बैंक में ही रहने देते हैं।
हम यह देख सकते हैं कि अर्थव्यवस्था में जारी किया गया अधिकांश पैसा वाणिज्यिक बैंकिंग प्रणाली के भीतर और बाहर जाता रहता है, जहाँ हम कुछ ब्याज प्राप्त करने के लिए पैसे जमा करते हैं, वहीं बैंक द्वारा हमें यह ब्याज हमारे पैसों को दूसरों को ऋण देकर या किसी अन्य माध्यम से प्राप्त ब्याज से हमें दिया जाता है। इस से यह स्पष्ट हो जाता है कि बैंक के पास वह पैसा नहीं है जो उसके जमाकर्ताओं ने उसके पास जमा किया है। यदि एक ही बैंक में सभी जमाकर्ता अपनी जमा राशि निकलवाने आते हैं, तो बैंक उन्हें भुगतान करने में असमर्थ हो जाएगा, इस स्थिति को बैंक में "रन (run)" कहा जाता है और आमतौर पर ऐसे बैंक विफल हो जाते हैं। इस स्थिति में आरबीआई बैंक को पैसे देता है। प्रत्येक बैंक को अपनी जमा राशि की एक निश्चित राशि आवश्यक रूप से आरबीआई के पास जमा करनी होती है, जिसे नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर (CRR – Cash reserve ratio)) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी बैंक के पास जमा राशि में 100 रुपये और सीआरआर 10% है, तो उस बैंक को आरबीआई में 10 रुपये जमा करने होंगे। अब इसके पास उधारकर्ता को देने के लिए रु 90 बचते हैं, जिसे यह उधारकर्ता को देता है और उधारकर्ता द्वारा इसका किसी और को भुगतान किया जाता है, जो इस राशि को अपने बैंक में जमा कर देता है। अब उस बैंक को आरबीआई में रु 9 जमा करने होंगे और अब वह रु 81 उधार दे सकता है। उधारकर्ता को देने के बाद यह राशि तीसरे बैंक में जमा हो सकती है, जिसे आरबीआई के पास रु 8.1 जमा करने होंगे।
यह सिलसिला ऐसे ही जारी रहता है। बैंकों को प्राप्त राशि भी जनता द्वारा किसी ना किसी रूप में इस्तेमाल करी जाती है। इस से आप यह जान सकते हैं कि आरबीआई ने बैंकिंग प्रणाली के जरिए 10 गुना पैसा बनाया है। इसे मनी मल्टीप्लायर (Money Multiplier) कहा जाता है। इस प्रणाली का यह लाभ है कि यदि कोई बैंक मुसीबत में है और उसके पास जमाकर्ताओं को वापस करने के लिए धन नहीं है, तो वह आरबीआई से उधार ले सकता है।
वहीं यदि एक ही बैंक के भीतर एक खाते से दूसरे खाते में पैसा स्थानांतरित किया जाता है तो बैंक को वास्तव में किसी भी नकदी को स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं होती है, यह उनकी अकाउंटिंग (accounting) प्रणाली में सिर्फ एक अद्यतन है। अगर विभिन्न बैंक के मध्य पैसे को एक खाते से दूसरे खाते में स्थानांतरित किया जाता है, तो बैंकों को वास्तव में नकदी को स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं होती है। दोनों बैंकों ने एक दूसरे के यहाँ पहले ही खाता खोल रखा होता है, इसलिए यह एक दूसरे के साथ उनकी अकाउंटिंग प्रणाली में सिर्फ एक अद्यतन करते हैं।
जब आप भारत से/के लिए अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन करते हैं या मान लीजिए कि आरबीआई (भारत के केंद्रीय बैंक) और फ़ेडरल रिज़र्व सिस्टम (अमेरिका का केंद्रीय बैंक) के मध्य पैसे का लेनदेन किया जाता है तो यह फॉरेक्स रिजर्व (Forex Reserve) में आता है, जिससे नागरिक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में वास्तविक लेनदेन कर सके, इसलिए इसके संप्रभु भुगतान की जिम्मेदारी केंद्रीय बैंकों को दी जाती हैं। इसमें राशि को वास्तव में संबंधित देश में स्थानांतरित किया जाता है। देशों के बीच निपटान की शर्तें केंद्रीय बैंकों द्वारा अक्सर पहले से ही तय होती हैं। हालांकि जरूरत के हिसाब से इन्हें बदला जा सकता है।
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