मानव शरीर से विषाक्त पदार्थों को निष्कासित करने तथा शरीर में जल और खनिजों की मात्रा को नियंत्रित करने में किडनी (Kidney) या गुर्दे एक अहम भूमिका निभाते हैं, किंतु किसी कारणवश (जैसे-कोई बिमारी मधुमेह, उच्च रक्तचाप या चोट) यदि यह गुर्दे काम करना बंद कर दें, तो अपशिष्ट पदार्थ रक्त में मिलना प्रारंभ हो जाते हैं, जिससे रक्त विषाक्त हो जाता है, इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति कोमा में जा सकता है या उसकी मृत्यु हो सकती है। एक स्वस्थ व्यक्ति की किडनी हर दिन लगभग 120 से 150 क्वार्टर (quart) रक्त को छानती है। यदि किसी व्यक्ति की किडनी 85 से 90 फीसदी तक कार्य करना बंद कर देती है, तो ऐसे व्यक्ति का रक्त शोधन एक कृत्रिम विधि डायलिसिस या अपोहन (डायलिसिस) के माध्यम से किया जाता है।
डायलिसिस के माध्यम से अपशिष्ट उत्पादों को रक्त तक पहुंचने से रोका जाता है। आपात स्थिति में यह रक्त से विषाक्त पदार्थों या दवाओं को भी निकाल देता है। किडनी की स्थिति के अनुसार डायलिसिस स्थायी और अस्थायी हो सकता है। यदि डायलिसिस के रोगी के गुर्दे बदल कर नये गुर्दे लगाने हों या गुर्दे में कोई चोट इत्यादि लगी हो तथा अन्य कोई पुराना हृदय रोग होता है, तो ऐसी अवस्था में अस्थाई डायलिसिस किया जाता है। यदि रोगी के गुर्दे प्रत्यारोपण की स्थिति में न हों, तो डायलिसिस स्थायी होता है, जिसे आवधिक रूप से किया जाता है। यह प्रारंभ में एक माह से लेकर बाद में एक दिन और उससे भी कम होती जाता है।
डायलिसिस विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमें तीन प्रमुख हैं:
इंटरमिटेंट हेमोडायलिसिस (Intermittent hemodialysis-(IHD))
इस डायलिसिस में शरीर से रक्त को बाहर निकालकर एक विशेष मशीन के माध्यम से छाना जाता है, जो किडनी की भांति रक्त से अपशिष्ट पदार्थों को रक्त से छानती है, जो एक कृत्रिम किडनी की भांति कार्य करता है। कैथेटर (catheter) नामक लचीली नली को नसों में लगाकर रक्त शरीर से बाहर निकाला जाता है, कैथेटर को नसों में लगाने के लिए नसों के विस्तार की आवश्यकता होती है, जिसे हाथ की एक सर्जरी (surgery) के माध्यम से बढ़ाया जाता है। किडनी की स्थिति के अनुसार हेमोडायलिसिस सप्ताह में तीन से चार बार किया जाता है, जिसमें लगभग तीन से चार घण्टे का समय लगता है, जो अस्पताल और घर दोनों जगह किया जा सकता है। घर में डायलिसिस वालों की देखरेख करने वालों को इसकी संपूर्ण जानकारी और आवश्यक साधन उपलब्ध होना अनिवार्य है।
पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal dialysis)
इस डायलिसिस में पेरिटोनियल गुहा में एक ट्यूब के माध्यम से जीवाणुरहित अपोहन को पहुंचाया जाता है, जो खनिजों तथा शर्करा से समृद्ध होता है। पेट की आंतें उदरीय निकाय गुहा से घिरी होती हैं, इसमें अर्ध-पारगम्य झिल्ली, पेरिटोनियल झिल्ली होती है। पेरिटोनियल डायलिसिस विसरण के माध्यम से कार्य करता है, जो रक्त के शोधन के लिए पेट के आंतरिक परत की प्राकृतिक शोधन क्षमता, पेरिटोनियम का उपयोग करता है। इसमें अपशिष्ट उत्पादों को अवशोषित करने हेतु डायलेट (dialysate) को कुछ समय के लिए पेरिटोनियल गुहा में छोड़ दिया जाता है। फिर इसे एक ट्यूब के माध्यम से निकाला जाता है। यह प्रक्रिया सामान्यतः दिन में की जाती है, किंतु स्वचालित प्रणाली के साथ रात को भी संभव है। यह डायलिसिस हेमोडायलिसिस की तुलना में अधिक समय लेता है, किंतु उसी के समान शरीर से अपशिष्ट पदार्थ, नमक और जल की समान मात्रा को हटा देता है। आवश्यक उपकरणों के साथ इसे घर में या यात्रा करते समय कहीं भी किया जा सकता है। पेट में कैथेटर डालने के लिए एक विशेष सर्जरी की आवश्यकता होती है। इस डायलिसिस के प्रमुखतः दो प्रकार होते हैं:
निरंतर एंबुलेंस पेरिटोनियल डायलिसिस (Continuous ambulatory peritoneal dialysis (CAPD))
यह प्रक्रिया घर में संभव है इसमें किसी विशेष प्रकार की मशीन की आवश्यकता नहीं होती है, इसमें डायलेट को 8 घण्टे के लिए पेट में छोड़ दिया जाता है और फिर यह सीधे ताजे विलयन में परिवर्तित हो जाता है। यह प्रतिदिन चार से पांच बार किया जाता है।
निरंतर चक्रीय पेरिटोनियल डायलिसिस (Continuous cyclic peritoneal dialysis (CCPD))
इसमें तरल पदार्थों का आदान-प्रदान करने के लिए एक मशीन का उपयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया सामान्यतः रात में की जाती है, जो 10 से 12 घण्टे की होती है, जिसमें रोगी सो सकता है। कुछ रोगियों को दिन के दौरान इसकी आवश्यकता होती है।
पेरिटोनियल डायलिसिस उन रोगियों के लिए उपयुक्त है, जो हेमोडायलिसिस बहुत अधिक थकावट महसूस करते हैं, जैसे कि बुजुर्ग लोग, शिशु और बच्चे।
निरंतर किडनी के प्रतिस्थापन की चिकित्सा (Continuous renal replacement therapy (CRRT))
यह डायलिसिस रुक-रुक कर या लगातार हो सकता है। निरंतर किडनी के प्रतिस्थापन की चिकित्सा के लिए इंटेंसिव केयर यूनिट (intensive care unit (ICU)) का उपयोग किया जाता है, जिसे 24 घण्टे उपयोग किया जा सकता है। CRRT विभिन्न प्रकार का होती है, इसमें निस्पंदन और विसरण दोनों हो सकते हैं।
डायलिसिस किडनी की कमी को पूरा नहीं कर सकता, इसे मात्र एक विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है। डायलिसिस में खानपान और पेय का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। डायलिसिस करवाने वाले व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं, बस उन्हें समय समय पर अपने डायलिसिस का ध्यान रखना होता है।
गुर्दे की विफलता के लक्षण
मूत्र में रक्त या प्रोटीन का आना गुर्दे की विफलता के लक्षण हो सकते हैं। जीर्ण किडनी धीरे धीरे विफल होती हैं। जिनके लक्षण दिखने में लम्ब समय लग जाता है। जिसमें कुछ प्रमुख लक्षण हैं:
1. थकान लगना
2. अधिक या बार-बार पेशाब लगना
3. विशेषकर रात भर त्वचा में खुजली होना
4. जी मिचलाना
5. श्वसन में कमी
6. पैर, हाथ और टखनों आदि में सूजन आदि
क्रोनिक किडनी (chronic kidney) रोग वाले लोगों में एनीमिया सामान्य हो जाता है। यह तब होता है जब शरीर में एरिथ्रोपोएटिन (erythropoietin) (ईपीओ) का स्तर कम होता है, जो कि किडनी द्वारा बनाया जाता है। एरिथ्रोपोएटिन शरीर को लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने में मदद करता है। जब लाल रक्त कोशिका की संख्या कमी होती है, तो इसे एनीमिया कहा जाता है।
डायलिसिस के कुछ दुष्प्रभाव:
1. मांसपेशियों में ऐंठन
2. निम्न रक्तचाप, विशेष रूप से मधुमेह वाले लोगों में
3. खुजली, पैरों में बेचैनी श्वसन में अवरोध के कारण नींद में कमी
4. द्रव अधिभार से बचने के लिए रोगियों को प्रत्येक दिन एक निश्चित मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए
5. तनाव और मनः स्थिति में उतार-चढ़ाव
गुर्दे की बीमारी एक गंभीर स्थिति है। क्रोनिक किडनी की विफलता वाले लोगों में, गुर्दे के ठीक होने की संभावना नहीं है, लेकिन डायलिसिस 20 साल या उससे अधिक लंबे समय तक तक इनकी आयु बढ़ा सकता है।
अब रामपुर में भी मरीजों को डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। जिला अस्पताल में डायलिसिस मशीन लगाने की तैयारी शुरू कर दी गयी है, जल्द ही यह सुविधा प्रारंभ होने की सम्भावना है।
संदर्भ:
1.https://www.medicalnewstoday.com/articles/152902.php
2.https://www.webmd.com/a-to-z-guides/kidney-dialysis#2
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Dialysis
4.https://bit.ly/2Ty49eX
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