विश्व का सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म या हिन्दू धर्म है, जिसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुयी। अपनी प्राचीनता के कारण यह काल गणना के लिए भी विश्व का सबसे प्राचीन माध्यम रहा है। 1952 में नियुक्त भारतीय कैलेंडर सुधार समिति ने भारत के विभिन्न हिस्सों में लगभग 30 से अधिक तिथि प्रणालियों को संदर्भित किया, जिनमें से दो शक संवत और विक्रम संवत प्रमुख हैं। प्रथम पंचांग के रूप में विक्रम संवत को स्वीकारा गया है, जिसका नव वर्ष दीपावली तिथि (अक्टूबर- नवंबर) से शुरू होता है, जो 56 ईस्वी पूर्व में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के राज्याभिषेक का भी प्रतीक है। इसमें वर्ष 2002 ईस्वी को वर्ष 2060 के रूप में इंगित किया गया है।
द्वितीय पंचांग शक संवत है, जो 78 ईसा पूर्व शालिवाहन राजा की ताजपोशी से प्रारंभ हुआ। इसे भारतीय राष्ट्रीय पंचांग का प्रारंभिक युग भी कहा जाता है, जो भारतीय कालक्रम का एक पारंपरिक युग भी है। यह 500 ईस्वी बाद लिखे गए संस्कृत साहित्य में अधिकांश खगोलीय कार्यों को भी संदर्भित करता है। शक पंचांग में वर्ष 2002 ईस्वी को 1925 ईस्वी के रूप में इंगित किया गया है। हालांकि हिन्दू समाज को चार युगों (सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलयुग) में विभाजित किया गया है। वर्तमान समय कलयुग का हिस्सा है जो श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद प्रारंभ हुआ, जिसे 17 फरवरी से 18 फरवरी के बीच मध्य रात्रि 3102 ईस्वी पूर्व से आंका जाता है। विक्रम संवत के मुताबिक हिन्दू पंचांग का नव वर्ष गुड़ी पड़वा की तारीख (मार्च - अप्रैल के महीने में) से प्रारंभ होता है। हिन्दू पंचांग में तिथियों के निर्धारण के लिए चन्द्र कालचक्र (28 से 31 दिनों के मध्य) का उपयोग किया जाता है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। एक चंद्र मास में ‘दीप्त’ पक्ष के साथ-साथ ‘कृष्ण’ पक्ष होता है, जो चांद के वर्धन अवधि तथा क्षय अवधि को इंगित करता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, एक चंद्र वर्ष में 12 महीने होते हैं। एक चंद्र महीने में दो पक्ष होते हैं, जिसमें नव चन्द्र के आगमन को "अमावस्या" कहा जाता है। चंद्र दिनों को "तिथि" कहा जाता है। प्रत्येक महीने में 30 तिथि होती हैं, जो 20 से 27 घंटे तक हो सकती हैं। वर्धन काल के दौरान, तिथि को "शुक्ल" या दिप्त पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा की रात से शुभ पक्ष की शुरुआत मानी जाती है। क्षय काल की तिथि को "कृष्ण" पक्ष कहा जाता है, जिसे अशुभ पक्ष के रूप में माना जाता है। हिन्दू सभ्यता पूर्ण विकसित सभ्यता थी, जो सूर्य, शुक्र और बृहस्पति जैसी तारीख प्रणालियों से भलि भांति अवगत थी। उनमें से सबसे प्रचलित सौर चक्र पर आधारित है और वे सौर तिथि प्रणाली का अनुसरण करते थे। अतः इनका इसके विषय में गहनता से जानना स्वभाविक था, हिन्दुओं का सौर वर्ष वसंत विषुव में प्रारंभ हुआ तथा एक सौर वर्ष में 365 दिन, 6 घंटे और 9.54 सेकंड होते थे। प्रकृति में सौर और चंद्र के दो चक्र कई वर्षों में मिलते हैं। इन दो चक्रों को एक साथ लाने के लिए हिन्दूओं द्वारा प्रत्येक तीन वर्ष में एक अतिरिक्त माह जोड़ा गया, जो सौर चक्र और चंद्र चक्र के मध्य 29 दिन 12 घंटे 44 मिनट और 2.865 सेकंड के संचित होने पर पूरा होता है तथा यह अतिरिक्त महीना दोनों पंचांगों को एक साथ जोड़ता है। अतिरिक्त महीने को जोड़ने का समय चंद्र चक्र पर निर्भर करता है, क्योंकि सूर्य हर महीने एक नई राशि में चला जाता है। जब सूर्य एक नई राशि में नहीं जाता है और लगातार दो महीने तक एक ही राशि पर रहता है, तो उस महीने को अतिरिक्त महीने के रूप में लिया जाता है। इसे "पुरुषोत्तम" मास या अधिक मास के नाम से भी जाना जाता है। आज भी ज्यादातर धार्मिक त्यौहारों और शुभ अवसरों का निर्धारण चंद्र गति के आधार पर किया जाता है। पश्चिमी कैलेंडर की बात करें तो, यह अनिवार्य रूप से एक सौर कैलेंडर प्रणाली है जिसमें एक महीना 30 और 31 दिनों के बीच का होता है और कैलेंडर को विनियमित करने के लिए हर चौथे वर्ष में एक दिन जोड़ा जाता है। भारत और नेपाल में हिंदुओं द्वारा विशेष रूप से हिंदू त्यौहार की तारीखों जैसे कि होली, महा शिवरात्रि, वैशाखी, रक्षा बंधन, पोंगल, ओणम, कृष्ण जन्माष्टमी, दुर्गा पूजा, राम नवमी, और दिवाली को मनाने के लिए हिन्दू कैलेंडर का उपयोग किया जाता है। भारत के प्रारंभिक बौद्ध समुदायों ने प्राचीन भारतीय कैलेंडर, बाद में विक्रमी कैलेंडर और फिर स्थानीय बौद्ध कैलेंडर को अपनाया। बौद्ध त्योहारों को चंद्र प्रणाली के अनुसार निर्धारित किया जाता है। बौद्ध कैलेंडर और कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड के पारंपरिक चंद्रमा कैलेंडर भी हिंदू कैलेंडर के पुराने संस्करण पर ही आधारित हैं। इसी तरह, प्राचीन जैन परंपराओं ने त्यौहारों, ग्रंथों और शिलालेखों के लिए हिंदू कैलेंडर के रूप में एक ही चंद्रमा प्रणाली का पालन किया है। हालांकि, बौद्ध और जैन टाइमकीपिंग सिस्टम (timekeeping systems) ने बुद्ध और महावीर के जीवनकाल को उनके संदर्भ बिंदुओं के रूप में उपयोग करने का प्रयास किया है।संदर्भ :
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