नवाबों की नगरी लखनऊ में औपनिवेशिक काल के दौरान लम्बे समय तक ब्रिटिश सत्ता का भी प्रभाव रहा है। अतः यहां पर उनकी धार्मिक निशानी रहना भी स्वभाविक है। लखनऊ शहर में ब्रिटिश और यूरोपियनों द्वारा बनाये गये चर्च और गिरिजाघर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। उत्तर भारत में पहला ब्रिटिश चर्च (क्राइस्ट चर्च) भी लखनऊ में ही बनाया गया था, यहां के ऐतिहासिक चर्च आज भी ईसाई धर्म का केंद्र बने हुये हैं। क्रिसमस के इस शुभ अवसर पर दौरा किया जाये लखनऊ के कुछ प्रमुख चर्चों का :
क्राइस्ट चर्च:
हजरतगंज (लखनऊ) में 1860 के दशक में बना यह चर्च उत्तर भारत का पहला तथा देश का तीसरा चर्च है। इस चर्च को मुख्यतः सैन्य विद्रोह के दौरान शहीद हुये सैनिकों की स्मृति में बनाया गया, जिसे मूलतः इंग्लैंड चर्च के नाम से जाना जाता था। इसे जनरल हचिंसन द्वारा डिजाइन किया गया। चर्च में बना धात्विक क्रॉस (cross), सुडौल रेलिंग (railing) और पांच मंजिला टावरों ने चर्च को एक आकर्षक रूप दिया है। इस चर्च में बना क्रॉस मानव जाति के लिये किये गये मसीह के बलिदान का प्रतीक है। इस चर्च की मुख्य विशेषता यहां का पांच मंजिला नोकदार टावर है। दरवाजों और खिड़कियों के ऊपर, एक गोथिक मेहराबों का स्वरूप देखा जा सकता है तथा इनके शीशों पर अरबी ढ़ाचे का प्रयोग किया गया है। आज क्राइस्ट चर्च कॉलेज के रूप में उपयोग किया जा रहा है। यह कॉलेज 1878 के दौरान एक एंग्लो इंडियन स्कूल था, जिसे कॉलेज के रूप में 31 जनवरी 1939 को लेडी हैग द्वारा परिवर्तित किया गया था। 1967 में यह मध्यवर्ती कॉलेज के रूप में बदल दिया गया।
ऑल सेंट्स गैरिसन चर्च (All Saints Garrison Church):
लखनऊ शहर के छावनी क्षेत्र में बने इस चर्च की नींव 1860 में रेव जोएल जानवियर (Rev Joel Janvier) (पहले मेथोडिस्ट कन्वर्ट (Methodist convert)) द्वारा रखी गयी। यह चर्च 1860 के दशक के दौरान अपने वर्तमान स्वरूप से काफी छोटा था, किंतु लखनऊ में छावनी के विस्तार के साथ ही सैन्य वृद्धि होने लगी। उनकी आवश्यकताओं को देखते हुए 1908 में एक बड़े चर्च के निर्माण का निर्णय लिया गया, जिसका स्वरूप ब्रिटिश इंजीनियर जोन्स रैनसम द्वारा तैयार किया गया। इन्होंने लखनऊ छावनी में सेंट मुनगो चर्च ऑफ स्कॉटलैंड (Saint Mungo’s Church of Scotland) का भी डिजाइन तैयार किया था। गैरिसन चर्च की आकर्षक वास्तुकला मैग्डालेन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड (Magdalene College, Oxford) से प्रेरित है। इस चर्च में एक विचित्र स्वरूप देखने को मिलता है जिसमें एक व्यवस्थित बरामदा, चोकोर टावर का भारोपीय स्वरूप, रेलिंग और झरोखे, विशाल प्रार्थना कक्ष आदि शामिल हैं।
पुराना मेथोडिस्ट चर्च (Old Methodist church):
लखनऊ के पुराने चर्चों में से एक मेथोडिस्ट चर्च की नींव 1858 में विलियम बटलर द्वारा रखी जिन्होंने शहर में सर्वप्रथम ईसाई सेवायें प्रारंभ करवायी। हालांकि 1870 पहली बार लोगों ने प्रार्थना में औपराचिक रूप से हिस्सा लिया, जिसका आयोजन प्रचारक टेलर द्वारा कराया गया था। वर्तमान चर्च का निर्माण 1877 में कराया गया था। चर्च का स्वरूप कांफोर्मिस्ट पैटर्न (conformist pattern) के अनुरूप तैयार किया गया, इसके बरामदे का प्रारंभ त्रिकोणीय मेहराब से होता है जिसकी तिरछी छत को अनेक अलंकृत क्रॉस से सजाया गया है। यह चर्च ईसाई समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है।
चर्च ऑफ इपिफ़नी (Church of Epiphany) :
यह अद्भूत चर्च का निर्माण 1877 में कराया गया था। इसके प्रवेश द्वार के ऊपर स्थित पांच मंजिला टावर की यहां की अद्विती शोभा को बढ़ा देता है। इस टावर की मुख्य विशेषता आयताकार झरोखा तथा मेहराबदार खिड़कियां हैं। इस चर्च का प्रार्थना कक्ष का स्वरूप लगभग क्राइस्ट चर्च के समान ही है।
ग्रेस बाइबल चर्च (Grace Bible Church):
इस चर्च का निर्माण 1997 में कराया गया, जो लखनऊ के आधुनिक चर्चों में से एक है। यह चर्च जॉन थॉमस राजा की अध्यक्षता में पॉल एजुकेशनल सोसाइटी (Paul Educational Society) नामक समूह द्वारा प्रबंधित किया जाता है। यह चर्च मुख्यतः अपने सेवा कार्यों के लिए जाना जाता है, जिसमें यह निचले तबके के लोगों को आर्थिक सहयोग पहुंचाने के साथ स्वास्थ्य सिवीरों का भी आयोजन कराता है। इसके अलावा, परिसर का उपयोग विभिन्न राष्ट्रीय ईसाई शिक्षा कार्यक्रमों के लिए किया जाता है।
संदर्भ:
1.https://bit.ly/2Sm8ly2
2.https://en.wikipedia.org/wiki/All_Saints_Garrison_Church,_Lucknow
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Christ_Church,_Lucknow
4.https://bit.ly/2GSG01d
5.http://www.lucknowonline.in/city-guide/churches-in-lucknow
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