वायु को शुद्ध करने के लिए वायु शोधक कैसे करते हैं काम?

लखनऊ

 20-12-2018 09:39 AM
गंध- ख़ुशबू व इत्र

वर्तमान समय में प्रदूषण एक विकट समस्‍या बनता जा रहा है फिर चाहे वह जल प्रदूषण हो, मृदा प्रदूषण हो, ध्‍वनि प्रदूषण हो या वायु प्रदूषण। जितनी तीव्रता से उद्योगों का विकास हुआ है उतनी ही तीव्रता से पर्यावरण का हनन भी हो रहा है, जिसके भयावह दुष्परिणाम आज हमारे सामने आने लगे हैं। यदि बात की जाए बड़े-बड़े औद्योगिक शहरों की तो वहां की हवा तक स्‍वच्‍छ नहीं रह गयी है। पर्यावरण में मौजूद ये अशुद्धियाँ आज हमारे घर के अन्दर भी मौजूद हैं और इन्हें स्‍वच्‍छ करने के लिए मानव द्वारा एक कृत्रिम उपकरण तैयार किया गया है, जिसे वायु शोधक या एयर प्यूरीफायर (Air Purifier) कहा जाता है।

यह यंत्र हवा से दूषित कणों को समाप्‍त कर उसे शुद्ध कर देता है जो विशेषकर बच्‍चों और अस्‍थमा के रोगियों के लिए अत्‍यंत लाभदायक है। इसका पहला प्रारूप 1830 में चार्ल्स एंथनी डीन (Charles Anthony Deane) ने तैयार किया जिसमें एक हेल्‍मेट (Helmet), लचीला कॉलर (Collar) तथा वस्‍त्र शामिल थे। हेल्‍मेट के पीछे हवा की आपूर्ति के लिए एक चमड़े की नली जोड़ी गयी। इसका उद्देश्‍य दोहरे बेलौ (Bellow, हवा पंप करने का एक साधन) का उपयोग करके शुद्ध हवा पहुँचाना था। एक छोटी नली को श्‍वसन के दौरान हवा बाहर भेजने के लिए लगाया गया था। वस्‍त्रों को चमड़े या वायुरोधी कपड़े से बनाया गया था, जिसे पट्टियों से संरक्षित किया गया था।

1860 के दशक में जॉन स्टेनहाउस द्वारा लकड़ी के कोयले की अवशोषक क्षमता का उपयोग करके वायु का शुद्धिकरण करने के लिए दो प्रारूप तैयार (1860 और 1867 में) किये गए, जो पहला प्रायोगिक श्‍वसन यंत्र भी बना। इसके कुछ वर्ष पश्‍चात (1871-1874) जॉन टिण्‍डल द्वारा आग बुझाने वालों के लिए एक श्‍वसन यंत्र तैयार किया गया जो वायु से हानिकारक गैस को स्‍वच्‍छ करता था। 1940 के दशक में अमेरिका द्वारा मैनहैटन परियोजना में वायुवाहित रेडियोधर्मी पदार्थों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग हुए एच.ई.पी.ए. (HEPA) फिल्टर को 1950 में परिष्‍कृत कर उपयोग करना शुरू किया गया। इसके पश्‍चात वायु शुद्धिकरण के उपकरणों में अनेक परिवर्तन किये गये, साथ ही इसका व्‍यवसाय भी तीव्रता से बढ़ा।

वायु शोधक उपकरण में मुख्‍यतः दो प्रकार की प्रौद्योगिकी होती है: सक्रिय और निष्क्रिय। सक्रिय वायु शोधक में वायु शुद्ध‍ि के लिए आयनीकरण (Ionization) का उपयोग होता है, जबकि निष्‍क्रिय वायु शोधक वायु से प्रदूषण हटाने के लिए वायु फिल्टर (Filter) का उपयोग करते हैं, जिसमें हवा में उपस्थित धूल, कण हवा से छनकर फिल्टर में एकत्रित हो जाते हैं।

हवा को शुद्ध करने की कुछ प्रमुख तकनीकें इस प्रकार हैं:

थर्मोडायनेमिक स्‍टेरिलाइज़ेशन (Thermodynamic Sterilization (TSS)):
यह तक‍नीक ऊष्‍मीय किटाणुओं के शोधन में प्रयोग की जाती है। यह तकनीक वायु से आण्‍वीय जीव- बैक्टीरिया, वायरस, धूल तथा एलर्जी उत्‍पन्‍न करने वाले कणों को पूर्णतः समाप्‍त कर देती है। टी.एस.एस. का दावा है कि वायु शुद्धि‍करण के साथ यह उपकरण किसी हानिकारक उत्‍पाद का निष्‍कासन नहीं करता व वायुमण्‍डल की ओज़ोन (Ozone) को भी किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाता है। यह एक फिल्‍टर तकनीक नहीं है।

अल्ट्रावायलेट जर्मीसाइडल इर्रेडिएशन (Ultraviolet germicidal irradiation (UVGI)):
यूवीजीआई का उपयोग यूवी लेम्प (UV Lamps) से हवा को बलपूर्वक भेजकर उसे शुद्ध करने के लिए किया जाता है।

फ़िल्टर (Filter):
फ़िल्टर आधारित शुद्धीकरण में वायुवाहित कणों को वायु से अलग किया जाता है। एक फ़िल्टर से हवा को बलपूर्वक पास कराया जाता है और कणों को फ़िल्टर द्वारा हवा से अलग कर दिया जाता है। एच.ई.पी.ए. (HEPA) फ़िल्टर 0.3 माइक्रोमीटर कणों को कम से कम 99.97% हटाने में मदद करता है और आमतौर पर यह बड़े कणों को हटाने में अधिक प्रभावी होता है।

एक्टिवेटिड कार्बन (Activated carbon):
एक्टिवेटिड कार्बन एक छिद्रपूर्ण सामग्री है जो अणुओं पर अस्थिर रसायनों का अधिशोषण करता है, लेकिन बड़े कणों को नहीं हटाता है। एक्टिवेटिड कार्बन का उपयोग करते समय अधिशोषण की प्रक्रिया संतुलित होनी चाहिए, वरना दूषित पदार्थों को पूरी तरह से हटा देना मुश्किल हो सकता है।

इसके आलावा भी वायु शुद्धिकरण की कई तकनीकें हैं, आयोनाइज़र प्युरिफायर (Ionizer purifiers); इम्मोबिलाइज्ड सेल टेक्नोलॉजी (Immobilized cell technology); ओजोन जेनेरेटर्स (Ozone generators); टाइटेनियम डाइऑक्साइड (Titanium dioxide), आदि।

एक वायु शोधक खरीदने से पहले ग्राहक को तीन चीज़ों की फ़िक्र होती है, खतरनाक गैसीय उत्पाद, शोर का स्तर, फ़िल्टर प्रतिस्थापन की आवृत्ति और विद्युत खपत, और सुन्दरता। आयोनाइज़र प्युरिफायर ओज़ोन का उत्पादन करती है, यद्यपि ओज़ोन की उच्च सांद्रता खतरनाक होती है, लेकिन अधिकांश आयोनाइज़र कम मात्रा (<0.05पीपीएम) उत्पन्न करते हैं। शोधक का शोर स्तर ग्राहक सेवा विभाग के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है और आमतौर पर यह डेसिबल (डीबी) में बताया जाता है। वहीं ज्यादातर वायु शोधक अन्य घरेलू उपकरणों की तुलना में कम शोर करता है। बिजली की लागत को ध्यान में रखते हुए, वायु शोधक लेते समय उसके ऊर्जा बचत विकल्पों/रेटिंग पर भी ध्‍यान दें।

स्वास्थ्य से संबंधित उपकरणों के साथ आयनिक वायु शोधक जैसी कंपनियों के विवादित दावे शामिल हैं। जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया कि कुछ वायु शोधक उपकरण ओज़ोन का उत्पादन करते हैं, आयनीकरण प्रक्रिया की प्रकृति के कारण, आयनिक एयर प्युरिफायर अधिकांश ओज़ोन उत्पन्न करते हैं। आइये जानें आयोनाइज़र एयर प्युरिफायर और हेपा एयर प्युरिफायर के मध्य अंतर:

ज़्यादातर लोगों को लगता है कि वायु प्रदूषण से सिर्फ बाहर की हवा प्रभावित होती है, परंतु उन्हें यह नहीं पता कि अंदर की हवा कितनी घातक है। हमारे घरों की हवा में भी कई सारे सूक्ष्म जीव और हानिकारक पदार्थ मौजूद होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक होते हैं। आज भारत में तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण वायु प्रदूषण में भी वृद्धि होती जा रही है। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 तो हमारे देश में ही हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 1.3 मिलियन लोग घरों में फैले वायु प्रदूषण के कारण मारे जाते हैं। यहां तक कि वायु शोधक की गुणवत्ता की जांच के लिये किसी भी प्रकार के ठोस मानकों का निर्धारण भारत सरकार द्वारा अभी तक नहीं किया गया है। इस कारण उपभोक्ता कम गुणवत्ता वाले वायु शोधक खरीद लेते हैं। भारत में मानकों की कमी के कारण वायु शोधक खरीदना मुश्किल हो सकता है। परंतु यदि आप एक अच्छा वायु शोधक खरीदना चाहते हैं तो निम्नलिखित महत्वपूर्ण कारकों तथा बातों का ध्यान अवश्य रखें:

1. कमरे के आकार के अनुसार वायु शोधक खरीदें
यह सबसे महत्वपूर्ण कारक है। आपके कमरे का आकार यह निर्धारित करेगा कि आपको किस तरह के वायु शोधक की आवश्यकता है, क्योंकि वायु शोधक को कमरे के आकार के हिसाब से बनाया जाता है। इसलिए हमेशा अपने कमरे की साइज़ (Size) के हिसाब से ही वायु शोधक का चुनाव करें। साथ ही इसमें कमरे की ऊंचाई का भी ध्यान रखा जाता है तथा एक सीमित आकार का एक वायु शोधक मात्र एक कमरे की वायु को ही शुद्ध करता है। कमरे के दरवाज़े और खि‍ड़कियां खुली रखने पर वायु शोधक ढंग से कार्य नहीं करते हैं।

2. प्रभावशीलता
वायु शोधक को प्रदर्शन के आधार पर CADR और ACH के पैमाने पर मापा जाता है।

क्लीन एयर डिलीवरी रेट (Clean Air Delivery Rate (CADR)): उच्च CADR रेटिंग वाले प्यूरीफायर की वायु निस्पंदन क्षमता बेहतर होती है, CADR स्तर आपको दिखाएगा कि शोधक से कितनी स्वच्छ हवा आ रही है और उत्पाद कितनी जल्दी काम करता है।

एयर चेंजेज़ पर आवर (Air Changes Per Hour (ACH)): ACH निर्धारित करता है कि एक घंटे में कितनी बार वायु शोधक कमरे की वायु को साफ कर सकता है। उच्च प्रदूषण के स्तर को देखते हुए ऐसा वायु शोधक खरीदें जो एक घंटे में कम से कम चार बार (हर 15 मिनट में) वायु को साफ करे।

3. फिल्टर
वायु शोधक में एच.ई.पी.ए. (HEPA) फिल्टर अच्छा माना जाता है क्योंकि इनको परीक्षण करके प्रमाणित किया जाता है। साथ ही आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि हर कुछ समय अंतराल के अंदर आपको एयर फिल्टर को बदलना अनिवार्य है।

4. तकनीक
एक वायु शोधक को लेते समय उसकी तकनीक का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। सक्रिय और निष्क्रिय निस्पंदन तकनीक के उत्पाद उपलब्ध हैं। तकनीक में इस अंतर को समझना महत्वपूर्ण है, एक सक्रिय तकनीक का उपयोग करने वाला शोधक ओज़ोन का उत्पादन करता है, वहीं एक निष्क्रिय तकनीक का उपयोग करने वाला शोधक बिना ओज़ोन उत्पादन के वायु को शुद्ध करता है।

अतः वायु शोधक खरीदते समय इन बातों का ध्‍यान रखें।

संदर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Air_purifier
2.https://molekule.com/blog/air-purifiers-ionic-ionizers-bad-or-good/
3.https://bit.ly/2SbJqNE
4.https://bit.ly/2UY3C7p



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