सर्दियों के मौसम में गर्माहट देने वाली शॉल का इतिहास व प्रकार

लखनऊ

 17-12-2018 01:46 PM
स्पर्शः रचना व कपड़े

आजकल बाजारों में तरह-तरह के गर्म कपड़ों को आप देख सकते हैं। सर्दियों के मौसम में अच्छी गुणवत्ता वाले गर्म कपड़े हर किसी को पसंद आते हैं। सर्दियों के आते ही वुलेन (Woolen) कपड़ों की खरीददारी भी शुरू हो जाती है, फिर चाहे वो स्वेटर (Sweater) हो या गर्म शॉल (Shwal)। यदि शॉल की बात की जाये तो लखनऊ शहर जितना कढ़ाई के केंद्र के नाम से प्रसिद्ध है उतना ही ये कढ़ाई वाले शॉल के लिये भी जाना जाता है। यहां आपको कढ़ाई वाले शॉलों की एक विस्तृत विविधता भी देखने को मिलेगी। परंतु क्या आप जानते हैं कि भारत में कितने प्रकार की शॉल मिलती हैं? सर्दियों के मौसम में गर्माहट देने वाली शॉल के पीछे का इतिहास क्या है और ये पश्मीना शॉल क्या होती है? यदि नहीं, तो चलिये जानते हैं शॉल का इतिहास और उसके प्रकारों के बारे में।

शॉल, जिसे दुशाला नाम से भी जाना जाता है, माना जाता है कि यह शब्द कश्मीर से लिया गया है। लेकिन इस शब्द का मूल हामेदान (ईरान का शहर) से है। कहा जाता है कि सईद अली हमदानी द्वारा शॉल बनाने की कला भारत में प्रस्तुत की गई थी। 14वीं शताब्दी में मीर अली हमदानी पश्मीना बकरियों की मूलभूमि लद्दाख आए थे, जहां उन्होंने पहली बार लद्दाखी कश्मीरी बकरियों के फर (Fur) से मुलायम ऊन का उत्पादन किया। और इस ऊन से बने मोजे उन्होंने कश्मीर के राजा, सुल्तान कुतुबुद्दीन को उपहार के रूप में भेंट दिये। इसके बाद हमदानी ने राजा को सुझाव दिया कि वे इस ऊन का उपयोग करके कश्मीर में एक शॉल बुनाई का उद्योग शुरू कर सकते हैं। इस प्रकार पश्मीना शॉल का उद्योग शुरू हुआ और देखते-देखते ही पूरे भारत में अलग-अलग प्रकार के शॉल बनना शुरू हो गये।

संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी यूनेस्को (UNESCO) ने भी 2014 में बताया कि अली हमदानी उन प्रमुख ऐतिहासिक व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने वास्तुकला, कला और शिल्प के विकास के माध्यम से कश्मीर की संस्कृति को आकार दिया था। आज ये कश्मीरी शॉल पश्चिमी देशों के फैशन (Fashion) जगत का एक हिस्सा बन गई है। कुछ संस्कृतियों में विभिन्न प्रकार के शॉल को उनके राष्ट्रीय पारंपरिक पोशाक में शामिल किया गया है।

शॉल के प्रकार

कश्मीर शॉल:
कश्मीर भारत का वह राज्य है जहां से प्राचीन समय में अन्य देशों तक जाने के लिये मार्ग आसानी से मिल जाता था। कश्मीर घाटी की एक सदियों पुरानी कला को कश्मीर शॉलों में देखा जा सकता है। ये शॉल अत्यंत गर्म और मुलायम होती हैं। इन्हें विशेष रूप से पश्मीना बकरियों के ऊन से बनाया जाता है। ये शॉल दो प्रकार की होती हैं: कानी कर शॉल तथा कढ़ाई वाले शॉल।

पश्मीना शॉल:
कश्मीर की घाटी में निर्मित पशमीना शॉल अपनी गर्माहट तथा शानदार कारीगरी के लिए दुनिया भर में मशहूर है। सुंदरता का प्रतीक, पश्मीना हमेशा दुनिया भर में महिलाओं की प्रिय रही है। पश्मीना शॉल का मूल्य और उत्कृष्टता केवल एक महिला ही बता सकती है। पश्मीना शॉल को उसकी महंगी सामग्री और स्मरणकारी डिज़ाइन (Design) के लिए बहुत ही प्राचीन समय से जाना जाता है। सम्राट अशोक के शासन के बाद से, कश्मीर दुनिया में सबसे अनन्य पश्मीना शॉल बनाने के लिए जाना जाता है। पश्मीना नाम एक फारसी शब्द ‘पश्म’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है बुनने लायक रेशा, ज़्यादातर उन। पश्मीना बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऊन हिमालय के अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पायी जाने वाली कश्मीरी बकरी की एक विशेष नस्ल से प्राप्त होती है। पहले के समय में, यह केवल राजाओं और रानियों द्वारा ही पहनी जाती थी और इस प्रकार यह शाही महत्व का प्रतीक थी। पश्मीना सदियों से पारंपरिक पहनावे का अभिन्न अंग रही है। इसकी बुनाई की कला कश्मीर राज्य में पीढ़ी से विरासत के रूप में चली आई है।

1990 के दशक में, फैशन उद्योग में पश्मीना की मांग ने इसकी कीमतों को आकाश की ऊँचाई छुआ दी। नतीजतन पश्मीना अधिक महंगी हो गई और इस प्रकार उच्च वर्ग समाज तक ही सीमित रह गई। एक पश्मीना पहनना अपने आप में एक अलग शान है। एक शुद्ध पश्मीना शॉल की लागत 7,000-12,000 रुपये है। ये शॉल मौद्रिक मूल्य के आधार पर विभिन्न रंगों और डिज़ाइनों में आती है।

दुशाला:
सम्राट अकबर कश्मीर के शॉल के एक बड़े प्रशंसक थे। उस समय के दौरान शॉल सोने, चांदी के धागे से किनारों पर डिज़ाइन बना कर बनाई जाती थी। अकबर हमेशा इसे दो परत कर के पहना करते थे ताकि उसके अंदर की सतह ना दिखाई दे। इसी के चलते दुशाला का जन्म हुआ, दुशाला का अर्थ ही दो शॉल है। इसे दो शॉलों को जोड़ कर बनाया जाता है।

नमदा और गब्बा शॉल:
गब्बा शॉल की मूल सामग्री सादे रंग में रंगा हुआ ‘मिल्ड (Milled) कंबल’ है। इसे ऊनी या सूती धागे के साथ कढ़ाई और डिज़ाइन किया जाता है। इनका रंग चटक होता है तथा इन्हें ज़्यादातर दीवान आदि के कवर (Cover) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

बुनाई द्वारा निर्मित शॉल:
यह एक त्रिकोणीय बुनाई द्वारा निर्मित शॉल है जो आमतौर पर गर्दन से बुनी हुई होती है। प्रत्येक शॉल में दो त्रिभुज साइड पैनल (Side Panel) होते हैं, और पीछे से ये समलंब आकार की होती हैं।

स्टॉल:
स्टॉल, महिला के लिये एक औपचारिक शॉल के समान है, इसका उपयोग ज्यादातर पार्टियों की पोशाकों और बॉल गाउन (Ball gown) के साथ किया जाता है। ये शॉल से कम चौड़े और पतले होते हैं।

कुल्लू शॉल:
इसका निर्माण हिमाचल प्रदेश में होता है और ये देशकर, बिहांग, ऑस्ट्रेलियाई मेरिनो टॉपस्, अंगोरा इत्यादि स्थानीय बकरियों की ऊन से बनाई जाती हैं। इसके रंगीन डिज़ाइन धर्म, परंपराओं, स्थानीय दर्शनों आदि पर आधारित होते हैं।

नागा शॉल:
ये शॉल परंपरागत अनुष्ठान में पहने जाने वाले शॉल हैं, जो आम तौर पर नागालैंड में कई स्थानीय लोगों द्वारा पहने जाते हैं। ये अपने डिज़ाइनों के कारण देश-विदेश में काफी लोकप्रिय भी हैं। ये रंगीन ऊन से बने होते हैं, जैसे कि लाल, काला तथा नीला। इन पर बने चित्र नागालैंड की लोक कथाओं आदि को चिह्नित करते हैं।

कलमकारी शॉल:
आंध्र प्रदेश में कलमकारी शॉल बनाई जाती है, कपास आधारित इस शॉल पर हाथ से मुद्रित या ब्लॉक (Block) से मुद्रित डिज़ाइन होते हैं। ये डिज़ाइन श्रीकलाहस्ति और मछलीपट्टनम शैली के होते हैं और धार्मिक विषयों पर आधारित होते हैं।

ढाबला शॉल:
ढाबला शब्द से अर्थ है कच्छ की रबारी और भरवाड जाती के लोगों द्वारा धारण की जाने वाली ऊनी कम्बलनुमा शॉल। यह शॉल डिज़ाइन में काफ़ी सादा होती है और अधिकतर सिर्फ सफ़ेद और काले रंग की बनी होती है। यदि इनमें एनी रंग शामिल भी हों तो वे केवल कोनों तक ही सीमित होते हैं और बीच का कपड़ा बिलकुल सादा होता है।

संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Shawl
2.https://www.kosha.co/journal/2014/08/06/shawls-from-india/
3.https://www.mapsofindia.com/my-india/travel/pashmina-the-art-of-kashmir



RECENT POST

  • जानें, प्रिंट ऑन डिमांड क्या है और क्यों हो सकता है यह आपके लिए एक बेहतरीन व्यवसाय
    संचार एवं संचार यन्त्र

     15-01-2025 09:32 AM


  • मकर संक्रांति के जैसे ही, दशहरा और शरद नवरात्रि का भी है एक गहरा संबंध, कृषि से
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     14-01-2025 09:28 AM


  • भारत में पशुपालन, असंख्य किसानों व लोगों को देता है, रोज़गार व विविध सुविधाएं
    स्तनधारी

     13-01-2025 09:29 AM


  • आइए, आज देखें, कैसे मनाया जाता है, कुंभ मेला
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-01-2025 09:32 AM


  • आइए समझते हैं, तलाक के बढ़ते दरों के पीछे छिपे कारणों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:28 AM


  • आइए हम, इस विश्व हिंदी दिवस पर अवगत होते हैं, हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसार से
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:34 AM


  • आइए जानें, कैसे निर्धारित होती है किसी क्रिप्टोकरेंसी की कीमत
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:38 AM


  • आइए जानें, भारत में सबसे अधिक लंबित अदालती मामले, उत्तर प्रदेश के क्यों हैं
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:29 AM


  • ज़मीन के नीचे पाए जाने वाले ईंधन तेल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे होता है?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:46 AM


  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली कैसे बनती है ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id