देखते-ही-देखते ज़माना बदल गया और इसी के साथ हमारी खानपान की आदतों में भी परिवर्तन आया। लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं, जिनका स्वाद किसी भी दौर में कम नहीं होती। इनका जायका हमेशा समय के साथ बढ़ता ही जाता है। भारत में आम हो या खास, एक ऐसी ही खाद्य वस्तु है जो सब ही को पसंद आती है। इसके बिना तो मानों भोजन की थाली हमेशा अधूरी ही रहती है। ये अक्सर हमें हमारी बचपन की छुट्टियों की यादों में ले जाता है जब छत पर हमारी दादी माँ बड़े सिरेमिक जारों में अचार डाला करती थी और हम उनकी मदद किया करते थे। इसका नाम सुनते ही सभी के मुंह में पानी आ जाता है।
शायद आप भी इसे खाने में रोज इस्तेमाल करते हों। अब आप ज्यादा सोचिए नहीं, क्योंकि हम जिस खाद्य वस्तु की बात कर रहे है उसका नाम है अचार। भारत में कई क्षेत्रों में तो ना जाने कितने तरह के पकवान बनाये जाते है, परन्तु अचार न हो, तो भोजन की थाली सुनी लगती है। अचार यानी सब्जियों और फलों को अम्लीय पदार्थों में पकाए जाने की प्रक्रिया। इसमें दो राय नहीं है कि इस प्रकार तैयार की गई सामग्री में हमें स्वाद के साथ अनेक पौष्टिक तत्व भी मिल जाते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि आप अचार नामक इस प्रक्रिया से टमाटर, प्याज, खीरे से लेकर आम-आंवला और करेले जैसी कई सब्जियां बचाकर रख सकते हैं और कई महीनों तक इनका लाजवाब स्वाद चखा जा सकता है। पूरे भारतवर्ष के रसोई में अचार का अद्वितीय स्थान है। अचार बहुत से फलों, सब्जियों, मसालों और अम्लीय पदार्थों से बना एक स्वादिष्ट चटपटा व्यंजन है जो प्राय: दूसरे पकवानों के साथ खाया जाता है, और कई महीनों तक इनका लाजवाब स्वाद चखा जा सकता है।
न्यूयॉर्क खाद्य संग्रहालयों के पिकल हिस्टरी टाइमलाइन (Pickle History timeline) के अनुसार 2030 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया के टाइग्रिस (Tigris) घाटी के लोग खीरे के अचार का उपयोग करते थे। समय के साथ-साथ अचार भोजन को लंबे समय तक संरक्षित रखने और कहीं भी आसानी से ले जाने वाले गुणों के कारण लोकप्रिय होने लगा, धीरे-धीरे इसके लाभों की खोज भी होने लगी। यहां तक कि 350 ईसा पूर्व में सुप्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने अपनी कृतियों में कहीं-कहीं खीरे के प्रभावकारी असर की तारीफ भी की है। माना जाता है रोमन सम्राट जुलियास सीसर (100-44 ईसा पूर्व) भी अचार के बहुत शौकिया थे। उस समय ऐसा माना जाता है कि युद्ध से पहले, पुरुषों को अचार खिलाया जाना चाहिये क्योंकि अचार से शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है। इस प्रकार अचार पूरी दुनिया में फैल गया।
कई शताब्दियों बाद क्रिस्टोफ़र कोलम्बस (1451-1506 सीई) और अमेरिगो वेस्पूची (1454-1512 सीई) जैसे खोजकर्ताओं और समुद्री यात्रियों ने जहाजों की खाद्य समस्या को हल करने के लिए अचार का उपयोग किया, वे अपने साथ जहाजों में अचार का भण्डार ले कर चलते थे। पहले के समय में अचार को अचार के नाम से नहीं अपितु किसी और नाम से जाना जाता था, ज्यादातर लोग इसे “पिकल” के नाम से संबोधित करते थे। यह शब्द डच भाषा के पेकल (pekel) से संबंधित था, जिसका अर्थ नमकीन या खारा। परंतु अब प्रश्न उठता है कि अचार शब्द कहां से आया?
कहा जाता है कि अचार शब्द फारसी मूल का है, इसका उच्चारण व्यापक रूप से फारस में किया जाता था। फारस के लोग सिरका, तेल, नमक और शहद या सिरप (syrup) में नमकीन मांस, फल और सब्जी आदि को संरक्षित रखते थे जिसे वे अचार कहते थे। हॉब्सन-जॉब्सन के अनुसार : ब्रिटिश भारत की परिभाषात्मक शब्दावली में 'आचर' शब्द का उल्लेख 1563 ईस्वी में एक पुर्तगाली चिकित्सक गार्सिया दा ऑर्टा द्वारा किए गए कार्यों में किया गया है, जिसमें नमक के साथ काजू संरक्षित रखने का वर्णन किया गया है, जिसे वे अचार कहते हैं।
खाद्य इतिहासकार केटी आचाया की किताब 'अ हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड' (A Historical Dictionary of Indian Food) में बताया गया है कि अचार बिना आग में पकाये तैयार किया जाने वाला खाद्य पदार्थ है। हालांकि, आजकल कई अचार की तैयारियों के दौरान कुछ हद तक हीटिंग या आग का उपयोग होता हैं। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में अचारों की एक समृद्ध विरासत है। भारत में सिरका का इस्तेमाल बहुत ही कम किया जाता है, यहां ज्यादातर अचार सब्जियों या फल को तेल और पानी के साथ रखकर बनाया जाता है। इस मिश्रण में नमक और मसाले डाल कर धूप में रखा दिया जाता है, जहां वे गर्माहट पा कर अच्छी तरह से बन सके। इसी अचार से जन्म हुआ गोश्त के अचार यानी की अचार गोश्त का। एक समय था जब अचार गोश्त भी अवध की खाद्य सूची में शामिल था।
पहले के समय में रात्रिभोज में मुख्य व्यंजन के साथ एक संगत व्यंजन के रूप में अचार गोश्त को पेश किया जाता था, जोकि धीरे-धीरे रात्रिभोज की टेबल (table) पर मुख्य पकवान में बदल गया। माना जाता है कि उत्तर पंजाब के क्षेत्र ने अचार गोश्त को विकसित किया था, परंतु हैदराबाद के लोगों का भी यही दावा है कि अचार गोश्त बनाने की शुरूआत यही से उनके क्षेत्र से हुई थी। चूंकि हैदराबादी व्यंजनों में उन्हीं मसालों का इस्तेमाल होता है जोकि आ अचार गोश्त बनाने में किये जाते है। खाद्य इतिहासकार कन्निघम का भी यही मानना है कि हैदराबाद का दावा सच हो सकता है। आज उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक अचार के कई प्रकार हैं, जिसमें से प्रत्येक में कुछ नया और कुछ खास होता है। हरी सब्जियों से लेकर फल तक, सभी के अचार बनाए जाते हैं। इसमें शामिल नमक, तेल और मसालों का मिश्रण आपको आपकी छोटी-सी जिंदगी में स्वाद का भरपूर आनंद तो देता ही है और कुछ हद तक पौष्टिक तत्व भी प्रदान करता है।
संदर्भ:
1. https://theculturetrip.com/asia/india/articles/a-brief-history-of-the-humble-indian-pickle/© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.