विज्ञान की एक नयी शाखा, समुद्र विज्ञान

लखनऊ

 11-12-2018 01:00 PM
समुद्र

समुद्र विज्ञान बेशक विज्ञान के नवीनतम क्षेत्रों में से एक है, लेकिन इसका इतिहास हज़ारों वर्षों पूर्व का है। जब लोगों ने नावों के ज़रिए व्यापार करना शुरू किया था, उस समय के नाविकों और खोजकर्ताओं ने जब समुद्र को ध्यान से देखा तो उन्होंने उनकी नावों को अलग-अलग दिशाओं पर ले जाने वाली समुद्र की धाराओं, लहरों, और तूफानों का अनुसरण किया। साथ ही उन्होंने यह भी पाया कि हालांकि समुद्र का पानी अन्य नदियों के समान दिखता है, लेकिन यह नमकीन और पीने के लिये अनुपयुक्त था। वहीं महासागर का अध्ययन और ज्ञाप्ति हज़ारों वर्षों तक मिथकों और किंवदंतियों के रूप में पारित होता गया।

850 ईसा पूर्व तक कई प्रकृतिवादियों और दार्शनिकों ने भूमि से देखे गए पानी के विशाल निकायों को समझने की कोशिश करना शुरू कर दिया और 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 16वीं शताब्दी की शुरुआत में कोलंबस और अन्य खोजकर्ताओं ने कई महासागरों की खोज की और उनमें उत्पन्न होने वाली लहरों के बारे में कई जानकारियों को प्राप्त किया। 1513 में जुआन पोंस डी लियोन (Juan Ponce de León) द्वारा गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) की खोज की गयी और बेंजामिन फ्रेंकलिन (Benjamin Franklin) ने इसका पहला वैज्ञानिक अध्ययन किया और उन्होंने ही इसका नाम गल्फ स्ट्रीम रखा।

वहीं आधुनिक समुद्र विज्ञान को 19वीं शताब्दी के पूर्व में विज्ञान के क्षेत्र के रूप में देखा गया, जब अमेरिकियों, ब्रिटिशों और यूरोपियों ने समुद्र की धाराओं, समुद्री जीवों तथा समुद्रतलों पर अभियान शुरू किया। विश्व के पहले वैज्ञानिक अभियान द्वारा महासागरों और समुद्रतलों की खोज करने वाला चैलेंजर अभियान (Challenger expedition) (1872 से 1876 तक) था। इस अभियान ने एक संपूर्ण वैज्ञानिक और शोध अनुशासन के लिए आधारभूत कार्य किया। चार्ल्स वाइविल थॉम्पसन (Charles Wyville Thompson) और सर जॉन मरी (Sir John Murray) द्वारा चैलेंजर अभियान शुरू किया गया। 1970 के दशक से, समुद्री विज्ञान के लिए बड़े पैमाने पर कंप्यूटर का उपयोग किया गया, जो समुद्र की स्थितियों की संख्यात्मक भविष्यवाणियों और समग्र पर्यावरणीय परिवर्तन भविष्यवाणी का पता लगाने में सहायक सिद्ध हुआ। 1990 में विश्व महासागर परिसंचरण प्रयोग (डब्ल्यूओसीई (WOCE)) की शुरुआत हुई जो 2002 तक जारी रही। और 1995 में जिओसैट समुद्रतल मैपिंग डेटा (Geosat seafloor mapping data) उपलब्ध हो गया था।

समुद्र विज्ञान का अध्ययन निम्न चार शाखाओं में बांटा गया है:

जैविक समुद्री विज्ञान, या समुद्री जीवविज्ञान: यह समुद्री जीवों की पारिस्थितिकी पर अनुसंधान करता है।

रासायनिक समुद्री विज्ञान और सागर रसायन शास्त्र: यह समुद्र के रसायन शास्त्र पर अध्ययन करता है।

भूगर्भीय समुद्री विज्ञान या समुद्री भूविज्ञान: यह समुद्र तल के भूविज्ञान का अध्ययन करता है, जिसमें प्लेट टेक्क्टोनिक्स (Plate tectonics) और पेलियोशियनोग्राफ़ी (Paleoceanography) शामिल हैं।

भौतिक समुद्री विज्ञान या समुद्री भौतिकी: यह समुद्र के भौतिक गुणों का अध्ययन करता है, जिसमें तापमान-लवणता संरचना, मिश्रण, सतह की तरंगे, आंतरिक तरंगें और धाराएं शामिल हैं।

समुद्र विज्ञान की पहली अंतर्राष्ट्रीय संस्था 1902 में ‘समुद्र की खोज के लिए अंतर्राष्ट्रीय परिषद’ (International Council for the Exploration of the Sea) के रूप में बनाई गई थी। उसके बाद समुद्र विज्ञान के लिए कई संस्थाओं की स्थापना हुई। भारत में 1 जनवरी 1966 में राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography, India) की स्थापना की गयी। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.) की 37 में से एक प्रयोगशाला है। इसका मुख्यालय गोवा में स्थित है। इसका मुख्य ध्येय उत्तरी हिन्द महासागर के विशिष्ट समुद्रवैज्ञानिक पहलुओं का विस्तृत अध्ययन करना है। यह भारत के प्रमुख राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठनों में से एक है तथा भारत में इसका योगदान विश्वसनीय रहा है। 1970 के दशक के अंत में, सरकार ने निर्णय लिया था कि देश में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये खनिजों के संसाधनों को बढ़ाने की जरूरत है। तब इस उद्देश्य को पूरा करने की ज़िम्मेदारी एन.आई.ओ. को दी गई थी, और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये महासागरों में छिपे तांबा, निकल, कोबाल्ट, मैंगनीज, लोहे और दुर्लभ तत्वों की खोज का जिम्मा एन.आई.ओ. ने बखूबी निभाया। 26 जनवरी 1981 को, एन.आई.ओ. ने पश्चिमी हिंद महासागर में 4,800 मीटर की गहराई से पॉलिमेटेलिक नोड्यूल (Polymetallic nodules) को अपने पहले जलयान, आर.वी.गवेशानी का उपयोग करके निकाला था, जिसे 1976 में अधिग्रहित किया गया था।

रामपुर की नवाबजादी बेगम साहिबा के पति सैयद ज़हूर कासिम भारतीय समुद्री जीवविज्ञानी थे। भारत ने कासिम के नेतृत्व में अंटार्कटिका का अन्वेषण किया तथा 1981 से 1988 तक अन्य सात अभियानों का नेतृत्व किया। इन्होंने 1974 से 1981 तक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशियनोग्राफी में निदेशक के रूप में कार्य किया। इससे पहले वे आईआईओई (IIOE) के भारतीय कार्यक्रम के सहायक निदेशक और केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान, कोचीन के निदेशक रहे थे। साथ ही इन्होंने समुद्री विज्ञान में अग्रणी योगदान दिया।

संदर्भ:
1.
https://divediscover.whoi.edu/history-of-oceanography/
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Oceanography
3.https://en.wikipedia.org/wiki/National_Institute_of_Oceanography,_India
4.http://www.nio.org/index/option/com_subcategory/task/show/title/Former%20Director/tid/1/sid/117/thid/190
5.https://www.ias.ac.in/public/Resources/Other_Publications/Patrika/patrika_63.pdf



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