आधुनिक युग में जहाँ हम में से अधिकांश लोग एलोपैथिक (allopathic) दवाओं के उपयोग को ज्यादा महत्व देते हैं, वहीं आज भी सदियों पुरानी प्रणाली का इस्तेमाल व्यापक रूप से हो रहा है, हम बात कर रहें हैं प्राचीन यूनानी चिकित्सा प्रणाली के बारे में, जो आज भी अपना महत्व बरकरार रखे हुए है। यह विश्व की सबसे पुरानी उपचार पद्धतियों में से एक है, जिसकी शुरुआत ग्रीस (यूनान) से हुई। इसीलिए इसे यूनानी प्रणाली कहा जाता है।
यूनानी चिकित्सा प्रणाली स्वास्थ्य के संवर्धन और रोग के निवारण से संबंधित सुस्थापित ज्ञान और अभ्यास पर आधारित चिकित्सा विज्ञान है। इस पद्धति के जनक ग्रीस के महान दार्शनिक व चिकित्सक हिपोक्रेट्स (460-370 ईसा पूर्व) थे। हिप्पोक्रेट्स के अनुसार रोग शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, और शरीर के रोगी होने पर रोग के लक्षण शरीर की प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होते है। वहीं अरबों के उदय के साथ दवा की यह प्रणाली और समृद्ध हो गयी। इब्न जुहर, अल-राज़ी, इब्न सिना, इब्न नाफिस, एज़-ज़हरौवी, इब्न अल बेतार और कई अन्य ऐसे विद्वानों ने इसके विकास में अपना योगदान दिया था।
अरब का सिंध पर कब्जा करने के साथ-साथ ग्रीको-अरब चिकित्सा प्रणाली का भारत में आगमन हुआ और खिलजी सुल्तानों के समय तक यह एक बड़े क्षेत्र में फैल गया। यह प्रणाली भारत में मुस्लिम-हिंदू प्रणाली के रूप में उभरी, जिसे तिब्ब कहा जाता था। भारत में मुगलों के आगमन के साथ, यह प्रणाली काफी विकसित होने लगी। उस समय इस प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न शल्य-चिकित्सक भी उपलब्ध कराये जाते थे। अलाउद्दीन खिलजी के शाही दरबारों में कई प्रतिष्ठित चिकित्सक (हाकिम) थे। इस शाही संरक्षण ने भारत में यूनानी के विकास और यूनानी साहित्य के निर्माण का भी नेतृत्व किया।
आयुर्वेद की तरह यूनानी मानव शरीर में तत्वों की उपस्थिति के सिद्धांत पर आधारित है। यूनानी दवा के अनुयायियों के मुताबिक, ये तत्व तरल पदार्थ में मौजूद हैं और उनमें संतुलन शरीर को स्वास्थ रखता है और असंतुलन बीमार करता है। शरीर के अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने की क्षमता में विफलता, शरीर के अख्लात के सामान्य संतुलन में अव्यवस्था उत्पन्न कर देती है। इस सिद्धान्त के आधार पर शरीर में चार अख्लात होते है, जो दम (खून), बलगम, सफरा (पीला पित्त) और सौदा (काला पित्त) के नाम से जाने जाते है। शरीर में खिल्त की प्रबलता के आधार पर दमवी की प्रबलता वाले लोग आशावादी, बलगमी की प्रबलता वाले भावशून्य, सफरावी की प्रबलता वाले क्रोधी और सौदावी की प्रबलता वाले अवसाद ग्रस्त होते है। इस पद्धति में इलाज के लिये अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है, उदाहरण के लिए, इलाज बिल तदबीर (संगठित चिकित्सा) में कपिंग (cupping), अरोमाथेरेपी (aromatherapy), रक्तपात, स्नान, व्यायाम, और दलाक (शरीर को मालिश करना) शामिल हैं।
जहां तक यूनानी चिकित्सा का सवाल है, आज भारत इसका उपयोग करने वाले अग्रणी देशों में से एक है। यहाँ यूनानी शैक्षिक, अनुसंधान और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों की सबसे बड़ी संख्या है। यूनानी मेडिसिन एंड सर्जरी (Unani Medicine and Surgery) में स्नातक, यूनानी टिब और सर्जरी में स्नातक और आधुनिक चिकित्सा और सर्जरी डिग्री के साथ यूनानी मेडिसिन (Medicine) में स्नातक करने से यूनानी डिग्री प्राप्त होती हैं।
वहीं लखनऊ में भी यूनानी चिकित्सा में डिग्री प्राप्त करने के लिए एक यूनानी कॉलेज और अस्पताल है। राजकीय तकमील उत तिब कॉलेज और अस्पताल (State Takmeel-Ut-Tib College & Hospital) उत्तर प्रदेश का प्रतिष्ठित सरकारी यूनानी कॉलेजों में से एक है। 1902 में हकीम अब्दुल अज़ीज़ द्वारा यूनानी चिकित्सा में अनुसंधान और उत्कृष्टता के लिए इस कॉलेज की स्थापना की गयी थी। ब्रिटिश राज में यह भारत के प्रमुख यूनानी चिकित्सक थें। हकीम इतने प्रसिद्ध थे कि यूनानी दवाओं के अध्ययन के लिए इनके पास पंजाब, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, बुखारा और हेजाज जैसे दूर देशों से व्यापक रूप में छात्र आते थे। इनकी मृत्यु के बाद इनके बेटों द्वारा तकमील उत तिब कॉलेज की देखरेख की गयी और आज वर्तमान में इस कॉलेज की सरकार द्वारा देखरेख की जा रही है।
संदर्भ:
1.https://archive.org/stream/MedicalTechniquesAndPracticesInMughalIndia/MedicalTechniquesPracticesInsa_djvu.txt
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Unani_medicine#Notable_Unani_institutions
3.https://www.edufever.com/govt-takmil-ut-tib-college-lucknow/
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Hakim_Abdul_Aziz
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