यदि लखनऊ शहर के व्यंजनों की बात कि जाये और उसमें मक्खन मलाई की बात न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। यह लखनऊ शहर की तहज़ीब का एक अभिन्न हिस्सा है जो बड़ी ही नजाकत और नफ़ासत से तैयार की जाती है। लखनवी जायके का अंदाज मौसम के साथ बदलता रहता है। यहां गर्मियों की दस्तक के साथ लखनवी कुल्फी तरावट देने को बेताब रहती है, तो वहीं सर्द शामों में काली गाजर का हलवा, कबाब और बिरयानी अपने स्वाद के संग गर्माहट का अहसास दे जाते हैं, और सुबह के समय मक्खन मलाई का स्वाद तो मानों सर्दियों का मजा दुगना कर देती है। सही मायनों में मक्खन मलाई ही लखनवी जायके के वास्तविक अहसास से रूबरू कराती है।
कोहरे सी हल्की, ओस सी मीठी, मक्खन मलाई वास्तव में एक ऐसी मिठाई है जो मुंह में प्रवेश करने के तुरंत बाद पिघलकर गायब हो जाती है। किवदंतियों के अनुसार, इसकी उत्पत्ति लखनऊ में नहीं बल्कि मथुरा में हुई थी। मक्खन मलाई एक मौसमी मिठाई है जो केवल वर्ष के शीतकालीन समय में ही तैयार की जाती है। लखनऊ में शरद ऋतु के अक्टूबर-नवंबर महीने में आयु के हर वर्ग के लोग, समृद्ध हो या गरीब समान रूप से इस मिठाई के जायके का लुफ्त उठाते हैं। मक्खन-मलाई बेचने वाले अपनी साइकिल पर यात्रा करते हैं, जिसमें पारंपरिक लाल कपड़े से ढकी दो स्टील की बाल्टी हैंडल के दोनों ओर लटकती होती हैं। इन लोगों को अधिकांशतः गोल दरवाजा, चौक और लखनऊ के कई ऐसी जगहों में देखा जाता है के पास अपनी ठेली लगाए देखा जा सकता है।
लखनऊ में 200 से अधिक वर्ष पुराने चौक बाजार के प्रतिष्ठित गोल दरवाजे के ठीक सामने की जगह, सर्दियों की ठंडी सुबह में एक अलग ही तस्वीर प्रस्तुत करती है, वहां पहुँचने पर आपको मुँह में पानी लाने वाली मक्खन-मलाई की मोहक खुशबू, आपको परस्पर आमंत्रण देती है। इस व्यंजन को एक बड़े शंकुधारी ग्लास फ़नल द्वारा कवर किया जाता है जो आंशिक रूप से लाल कपड़े से घिरा हुआ होता है। जब गाढ़े मलाई से भरे दूध में केसर के धागों को डाला जाता है, तो मलाईदार मिश्रण और भी गाढ़ा हो जाता है, इस प्रकार यह एक सुन्दर हल्के पीले रंग का हो जाता है। मक्खन मलाई को भीगे हुए पिस्ते और बादाम के ताजे गुच्छों के साथ सजाया जाता है। अंत में, इसे ‘चांदी के वर्क’ द्वारा खूबसूरती से सजाया जाता है जिससे यह और भी अनूठा और स्वादिष्ट दिखता है। लखनऊ के अलावा, यह मिठाई कानपुर, वाराणसी और दिल्ली के कुछ हिस्सों में बनायी जाती है।
अब आपके मन में ये सवाल आया होगा कि ये मिठाई सर्दियों में ही क्यों मिलती है? तो आपको बता दें कि इसकी तैयारी एक दिन पहले शुरू होती है जिसमें गाय के दूध को एक बड़े कढ़ाई में उबाला जाता है। फिर इसमें ताजी क्रीम डाली जाती है और फिर से दूध को उबला जाता है और आकाश के नीचे ठंडा होने के लिए रखा जाता है। यह शायद सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें दूध ओस के संपर्क में आता है और चार से पांच घंटे तक खुला रहता है। इस पूरी प्रक्रिया में कोई मशीन का उपयोग नहीं किया जाता है, मलाई को मथने के लिए पारंपरिक मथनी का उपयोग किया जाता हैं, जिस कारण स्वाद और भी बढ़ जाता है। यही कारण है कि इसे गर्मियों में तैयार नहीं किया जा सकता है। यदि गर्मियों में इसे तैयार किया गया तो मक्खन पिघल जाएगा और मिठाई खराब हो जाएगी।
वैसे तो मक्खन-मलाई और निमिश लगभग एक जैसे ही होते हैं, लेकिन यह बात शायद कुछ ही लोगों को पता हैं कि इन दोनों के बीच थोड़ा सा अंतर होता है। मक्खन-मलाई एक भारतीय मिठाई है जिसे गाय के दूध से बनाया जाता है, जबकि निमिश एक अफगानी मिठाई है, जिसमें घोड़े के दूध का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन दोनों की विधि लगभग एक सी ही है।
लखनऊ के कई दुकानदार और ठेले वाले जो मख्खन मलाई बेचते हैं उनका कहना है कि वह अपने ग्राहकों का स्वागत करने के लिए सुबह-सुबह 5 बजे तक अपनी दुकानों को खोल देते हैं, और ग्राहक आम तौर पर सुबह 6 बजे से आने लगते हैं। लखनऊ को छोड़ कुछ चुनिंदे शहर ही है जहाँ यह मिष्ठान पाया जाता है वर्ना कहीं भी जाये मक्खन-मलाई या निमिश नहीं पाएंगे। यह खाद्य-प्रेमियों के बीच काफी प्रसिद्ध है। यह मिष्ठान तैयारी की अपनी अनूठी विधि के कारण कही और पाना दुर्लभ है।
मक्खन-मलाई एक अद्वितीय लखनवी मिठाई है जो हम सभी को अपने बचपन में ले जाती है। अपने बचपन के वो स्वाद जिससे बाहर निकलना आसान नहीं है।
संदर्भ:
1. https://recipes.timesofindia.com/articles/features/lazzat-e-lucknow-a-bowlful-of-mythical-makkhan-malai/articleshow/50612740.cms© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.