वर्तमान समय में हम आसानी से दिन, महीने, साल की गणना कर लेते हैं, लेकिन आज से हजारों वर्ष पूर्व जब गणना के कोई विकल्प उपलब्ध नहीं थे, उस दौरान वेदांग ज्योतिष (एक प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ) में समय के विभिन्न चरणों (तिथि, काल, युग) की गणना की जा चुकी थी, जो आधुनिक खगोल विदों की समय निर्धारण से संबंधित खोजो में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सुभाष काक द्वारा लिखे गए पेपर ‘एस्ट्रोनॉमी एंड इट्स रोल इन वैदिक कल्चर (Astronomy and its Role in Vedic Culture) के अनुसार, वेदांग ज्योतिष का खगोल विज्ञान सूर्य और चंद्रमा की औसत गति पर आधारित है। वेदांग ज्योतिष में बताई गयी एक तिथि 1350 ईसा पूर्व पर शीतकालीन संक्रांति असल में श्रविष्ठा नक्षत्र के साथ थी। वेदांग ज्योतिष दो पाठ में उपलब्ध हैं: ऋग्वैदिक वेदांग ज्योतिष और यजुर्वेदिक वेदांग ज्योतिष। ऋग्वैदिक वेदांग ज्योतिष में 36 छंद हैं और यजुर्वेदिक वेदांग ज्योतिष में 43 छंद पाए जाते हैं। वैदिक काल से पाए गए एकमात्र खगोलीय अध्याय के बारे में हम आपको बताते हैं।
वेदांग ज्योतिष में समय की गणना कुछ इस प्रकार है:
1 चंद्र वर्ष = 360 तिथि
1 सौर वर्ष = 366 सौर दिन
1 दिन = 30 मुहूर्त
1 मुहूर्त = 2 नादिक
1 नादिक = 10 1/20 काल
1 दिन = 124 अंश
1 दिन = 603 काल
इसके अलावा पांच साल को एक युग के बराबर माना जाता था। वहीं एक साधारण युग में 1,830 दिन होते हैं। एक मध्यनिविष्ट महीने को युग के आधे में और दूसरे को युग के अंत में जोड़ा गया है। लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि एक दिन को 603 काल में विभाजित करने का कारण क्या था ? इसको इस प्रकार समझाया गया है कि चंद्रमा एक युग में 1,809 नक्षत्रों से होकर गुजरता है। तो इस प्रकार चंद्रमा एक नक्षत्र से 1 7/603 नक्षत्र दिनों में होकर गुजरता होगा, क्योंकि:
1,809 x1 7/603=1,830
या चंद्रमा 610 काल में एक नक्षत्र से होकर गुजरता है।
वहीं चंद्र वर्ष को 360 तिथि के बराबर मानकर एक औसत तिथि प्राप्त की जाती है, जिसमें एक तिथी का निर्धारण चंद्रमा के 12 डिग्री पर स्थान परिवर्तन करने से होता है। दूसरे शब्दों में 30 तिथि में चंद्रमा 360 डिग्री के चक्र को पुरा करता है। लेकिन 12 डिग्री पर स्थान परिवर्तन अनियमित तरीके से होने के कारण तिथि प्रत्येक दिन बदलती रहती है। वेदांग ज्योतिष एक दिन के 122 भागों को लेकर 124 भागों में विभाजित करता है। चंद्र महीने का एक दिन सूर्योदय की तिथि के साथ प्रारंभ होता है, जो दो सूर्योदय के मध्य में समाप्त हो जाता है, जिसमें एक तिथि लुप्त हो सकती है। इस प्रकार महीनों के दिनों की लंबाई भिन्न-भिन्न होती है।
युग के पांच सालों को वेदांग ज्योतिष में अलग-अलग नाम दिए गए हैं, उन्हें संवत्सर, परिवत्सर, इदावत्सर, इदुवत्सर और वत्सर कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि हिन्दू धर्म में बताये गए 33 देवता 33 वर्षों के चक्र को दर्शाते हैं, लेकिन इसका कोई प्रमाणिक सबूत नहीं मिला है। सतपाथा ब्राह्मणा में 95 वर्षों के चक्र का वर्णन किया गया है। 60 वर्ष का युग अनुमानित नक्षत्र अवधि 12 और 30 वर्षों के क्रमश: बृहस्पति और शनि को सुसंगत बनाने के प्रयास से उभरा है। नक्षत्रों के सही मूल्यों को जानने के लिए शास्त्रीय काल के बाद के सैद्धांतिक खगोल विज्ञान में मिलने वाली बड़ी अवधि की आवश्यकता होती है।
संदर्भ:
1. Astronomy and its Role in Vedic Culture, Subhash Kak.© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.