वसंत ऋतु में नई कोंपलों का आगमन तो वहीं वर्षा ऋतु में आम के वृक्षों पर कोयल की कूक तथा अन्य वृक्षों और पौधों पर चहचहाती चिडियां किसी का भी मन मोह लेती हैं। यह ऐसा प्रतीत होता है कि मानो प्रकृति ने मैदान को सुन्दर हरियाली से आनन्दित कर दिया हो। एक साथ इतनी अद्भुत नैसर्गिकता उद्यानों में ही देखने को मिलती है। साथ ही कुछ उद्यानों/पार्कों को ऐतिहासिक घटनाओं की स्मृति में भी बनाया जाता है, जो जनमानस को अपने क्षेत्र के गौरवमय इतिहास से अवगत कराते हैं। किसी भी क्षेत्र की खूबसूरती का अनुमान वहां उपस्थित हरियाली से लगा दिया जाता है। उद्यानों की दृष्टि से लखनऊ को एक समृद्ध शहर या उद्यानों का शहर भी कहा जा सकता है। इस विषय में बेहतर जानकरी के लिए हमने अध्ययन किया अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ इलिनोइस की श्रीमती अमिता सिन्हा द्वारा लिखे गए एक पेपर का जिसका शीर्षक है 'कोलोनियल एंड पोस्ट-कोलोनियल मेमोरियल पार्क्स इन लखनऊ, इंडिया: शिफ्टिंग आइडियोलॉजीज़ एंड चेंजिंग एस्थेटिक्स' (Colonial and post-colonial memorial parks in Lucknow, India: shifting ideologies and changing aesthetics)।
लखनऊ में उपस्थित अधिकांश पार्क (Park) ऐतिहासिकता से संबंधित हैं, जो वर्तमान में राजनीतिक परिवेश से दूर अपनी संस्कृति की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहां के स्मृति पार्क औपनिवेशिक कालीन घटनाओं से अधिक प्रभावित हैं| जो की लगभग 250 वर्षों की घटनाओं से संदर्भित हैं तथा इनमें प्रमुख नेताओं और समाज सुधारकों की प्रतिमा, सांस्कृतिक प्रतीकों को भी संजोया गया है। इन पार्कों में भारतीय परंपरा स्पष्ट झलकती है। 1990 के बाद लखनऊ में पार्कों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि हुयी, जिनमें मुख्यतः स्मारक संरचना तथा प्रतिमा के आस-पास डिज़ाइन (Design) इत्यादि देखने को मिले।
नवाबों के शासन के दौरान महलों, उपनगरीय बागानों, उद्यानों को सुन्दर परिदृश्य में तैयार किया गया जिसने शहर की छवि को बदल दिया। इन बागानों में मुगल पार्क की कुछ विशेषताओं जैसे चारबाग ज्यामिती, बारादरी, जल प्रणाली, कुंड इत्यादि का कुशलता से प्रयोग किया गया था। औपनिवेशिक काल के दौरान इन उद्यानों को वनस्पति विज्ञान और जीवउद्यान में परिवर्तित कर दिया गया और साथ ही इन सभी स्मारकों तथा व्यक्तिगत उद्यानों का भी निर्माण किया गया, जिनमें से कुछ स्मारक आज भी इन पार्कों में देखे जा सकते हैं। तथा कुछ बागान पेड़-पौधे झाड़ियों से ढक गये हैं। ईस्लामी बागानों को कुरान के स्वर्ग से प्रेरित किया गया था तो वहीं औपनिवेशिक बागानों में प्रेम की भावना की छाप देखने को मिलती है।
औपनिवेशिक बागानों को यूरोपीय शासकों ने एकान्त में विचार करने के साथ मनोरंजक कार्यों के लिए बनाया था। विक्टोरियन (Victorian) शासन में वनस्पतियों और जीवों के संचय और अनोखे पारंपरिक स्मारकों वाले औपनिवेशिक बागीचों का निर्माण कराया गया था। साथ ही में यह शहर की दूषित हवा, इसके प्रदूषण और गंदगी को कम करने के उद्देश्य से बनाए गये थे। इसमें बने स्मारक संरचना तथा प्रतिमा के आस-पास के भौतिक परिदृश्य शहर में प्राधिकरण और व्यवस्था बनाने में योगदान देते हैं।
औपनिवेशिक पार्क के दो मॉडलों (Models) में से उपनिवेशवाद के समय के स्मारक बगीचे में कुछ नए बदलाव किए गए और उन्होंने आज एक महत्वपूर्ण श्रेणी हासिल की है। जबकि अन्य वनस्पति और प्राणी विज्ञान बागानों के संग्रह ने अपना काफी हलका प्रभाव डाला है। लखनऊ के अमीन-उद-दौला और विक्टोरिया मेमोरियल पार्क जैसे औपनिवेशिक उद्यान राष्ट्रवादी सभाओं का कार्य स्थल थे।
शहर में पार्क न केवल प्रकृति निष्क्रिय मनन को समायोजित करता है ,बल्कि मनोरंजन को भी समायोजित करता है। जिसमें न केवल आंखों का उपयोग होता हो बल्कि संपूर्ण शरीर का उपयोग हो तथा उससे जुड़ा जा सकता हो, जैसे बच्चों के खेलने के लिए सड़क के बजाये पार्क एक महत्वपूर्ण स्थान है और बड़े यहां पर एकत्रित होकर कुछ शारीरिक परिश्रम (योग, ध्यान लगाना आदि) कर सकते हैं।
संदर्भ:
1.https://www.academia.edu/33773904/memorial-parks.pdf
2.https://www.academia.edu/35680472/Lucknow_The_City_of_Parks.docx
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