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भारत विश्व के उन गिने चुने देशों में से है जो वन संम्पदा से समृद्ध हैं। यहां अनेक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं, जिनमें से बहुत सारे पेड़-पौधे तो ऐसे हैं जो केवल भारत में ही होते हैं। यहां कुछ ऐसे पेड़-पौधे भी हैं जिनमें औषधीय गुण होते हैं। इनका उपयोग भारत में सदियों से होता आ रहा है। आज भी भारत में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो सीधे जड़ी-बूटियों से अपनी बीमारियों का इलाज करते हैं या ऐसी दवाओं का उपयोग करते हैं जिनका आधार जड़ी-बूटियाँ होती हैं। इन सभी औषधीय पौधों को अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया गया है, ताकि इनका अध्ययन आसानी से किया जा सके। परंतु क्या आपको पता है दुनिया की पहली पुस्तक जिसमें औषधीय पौधे के गुणों का विस्तृत विवरण दिया गया है दक्षिण भारत के पश्चिमी घाटों के औषधीय पौधे पर आधारित है।
‘हॉर्टस मालाबारिकस (मालाबार का गार्डन - Hortus Malabaricus)’ भारतीय औषधीय पौधों पर आधारित सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण दुर्लभ पुस्तक है, जिसका संग्रह रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी में भी नहीं है। परंतु इसकी एक प्रतिलिपि देहरादून के वन अनुसन्धान संस्थान पुस्तकालय में मौजूद है। यह पुस्तक एक व्यापक ग्रंथ है जो दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट क्षेत्रों (केरल, कर्नाटक और गोवा) के वनस्पतियों के गुणों से संबंधित है। यह पुस्तक लैटिन में 17वीं शताब्दी के दौरान हेन्ड्रिक वैन रीड (जोकि उस समय डच मालाबार के गवर्नर थे) के द्वारा लिखी गई थी। इसे 1678-1693 के दौरान एम्सटर्डम में प्रकाशित किया गया था।
इस पुस्तक के कार्य को लगभग 30 वर्ष में पूरा किया गया था, जिसे कोचीन में 1663 में शुरू किया था। इसे लिखने के लिए ज्ञान को मलयालम और कोंकणी भाषाओँ में प्राप्त किया गया था, जिसे फिर पुर्तगाली भाषा में अनुवादित कर, अंततः जन-समूह के प्रयोग के लिए लैटिन में एम्सटर्डम में प्रकाशित किया। हॉर्टस मालाबारिकस में 12 खंड हैं, जिनमें 794 कॉपर प्लेट एनग्रेविंग (Copper plate engravings) के साथ हर खंड में करीब 200 पृष्ठ शामिल हैं। पुस्तक के प्रथम खंडों को 1678 में और अंतिम खंडों को 1693 में प्रकाशित किया गया था। इसमें 742 से अधिक विभिन्न औषधीय पौधों और उनके गुणों के बारे में बारे में बताया गया है। इस पुस्तक में स्थानीय क्षेत्र के चिकित्सकों द्वारा अपनाई गई परंपराओं के आधार पर औषधीय पौधों के एक वर्गीकरण की प्रणाली भी देखने को मिलती है। इस पुस्तक में दिए गए पौधों के औषधीय गणों की अधिकतर जानकारी चार मालाबरी द्वारा प्रदान की गई थी, वे थे- इति अचुदेन (एक स्थानीय आयुर्वेदिक चिकित्सक, कोचीन), रंगा भट्ट, विनायक पंडित और अपु भट्ट (पुरोहित-चिकित्सक जो कोचीन में बस गए थे)।
इन चिकित्सकों ने मलयालम और कोंकणी भाषाओं में अपनी जानकारी दी थी, जिसे पुर्तगाली में अनुवादित किया गया था। जिस तरीके से रीड ने इन चारों के द्वारा दी गई जानकारी को एकत्रित किया वह भी उल्लेखनीय है। उन दिनों जानकारी को लिखित तौर पर नहीं रखा जाता था, शिक्षक केवल बोल कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान का प्रसार करते थे। ऐसे में यह लिखित पुस्तक बेहद दुर्लभ है। जब पहली बार 17वीं शताब्दी में यह प्रकाशित हुई, तो यूरोप के वैज्ञानिकों के बीच वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुई। इस पुस्तक ने कार्ल लीनियस (जिन्होंने द्विपद नामकरण की आधुनिक अवधारणा की नींव रखी और जिन्हें आधुनिक वर्गिकी (वर्गीकरण) के पिता के रूप में भी जाना जाता है) पर भी प्रभाव डाला। लीनियस ने कई बार इस पुस्तक के महत्व के बारे में विशेष उल्लेख किया, उन्होंने इसमें से लगभग 250 नई प्रजातियों के बारे में जानकारी प्राप्त की थी।
लीनियस से भी ज्यादा इस पुस्तक का प्रभाव वर्तमान के वनस्पति-वैज्ञानिक के.एस. मणिलाल पर पड़ा। इस 400 वर्ष पुरानी पुस्तक का अनुवाद के.एस. मणिलाल द्वारा अंग्रेजी और मलयालम में किया गया तथा जिसे केरल विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित किया गया है। उनके इस योगदान को पूर्व और पश्चिम के बीच बेहतरीन सहयोगों में से एक माना जाता है। मणिलाल कालीकट विश्वविद्यालय में वनस्पति-वैज्ञानिक तथा वर्गीकरण वैज्ञानिक थे। इन्होंने अपने जीवन के करीब 35 वर्ष का समय इस पुस्तक के अनुवादन में समर्पित कर दिया। हालांकि मणिलाल केरल के ही थे फिर भी उनके लिये इसका अनुवादन करता आसान नहीं था। इसके लिये उन्होंने कई स्थानीय पुरोहितों की मदद ली। उन्होंने बताया कि उन्हें प्रत्येक खंड का अनुवाद करने में लगभग तीन से चार साल लग गए।
संदर्भ:
1.https://thewire.in/the-sciences/hortus-malabaricus-van-rheede-ks-manilal-botany-itty-achuden
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Hortus_Malabaricus
3.https://en.wikipedia.org/wiki/K._S._Manilal
4.https://www.researchgate.net/publication/224898694_Hortus_malabaricus_and_the_ethnoiatrical_knowledge_of_ancient_malabar