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तस्वीरें खूबसूरत लम्हों को संजोने का सबसे प्रभावी विकल्प हैं। तस्वीरें ही हैं जो आज भी हमें भारत के उन दृश्यों का भ्रमण करा रही हैं, जोकि आधुनिकता के इस दौर में कहीं खो गये हैं। भारत ने सदैव ही अपनी खूबसूरती से विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया और साथ ही वे स्वयं को इसके विहंगम दृश्यों को तस्वीरों में समेटने से ना रोक पाये। 19वीं और 20वीं सदी में भारत फोटोग्राफी की दृष्टि से श्रेष्ठ स्थानों पर था। जिनमें भारत के धार्मिक स्थलों, विभिन्न खूबसूरत वास्तुकलाओं एवं यहां के नैसर्गिक दृश्यों तथा यहां की संस्कृतियों को समेटा गया। उसी दौरान लखनऊ फोटोग्राफी की दृष्टि से आकर्षण का केन्द्र बना।
ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के चिकित्सक डॉ. जॉन मरी 1833 के दौरान भारत आये जिन्होंने उस दौरान के भारत की तस्वीरों की एक बड़ी एल्बम प्रिंट की। इसमें आगरा और दिल्ली की मुगल वास्तुकला को संजो के रखा गया था। भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) के दौरान इतालवी फोटोग्राफर फीलिस बियातो (Felice Beato) भारत आये तथा 1857 की क्रांति के भारत को अपनी तस्वीरों में एकत्रित किया। इन्होंने तत्कालीन लखनऊ की क्षतिग्रस्त इमारतों तथा सैन्य गतिविधियों से प्रभावित शहर की लगभग 60 तस्वीरें लीं, जिसके लिए इन्होंने लंदन के युद्ध कार्यालय से अनुमति ली थी। बियातो द्वारा अन्य विद्रोह प्रभावित क्षेत्रों जैसे मेरठ, दिल्ली, कानपुर आदि का भी दौरा किया गया।
नवंबर 1857 में ब्रिटिश सैन्य अधिकारी सर कॉलिन कैम्पबेल (Sir Colin Campbell) ने लखनऊ (सिकंदरा बाग) पर पहला हमला किया जिसमें लगभग 2000 लोगों की मृत्यु हुयी। 1858 में बियातो द्वारा इस क्षेत्र की आंतरिक तस्वीरें (a) ली गईं थीं, जिसमें मृतक व्यक्तियों के कंकाल दिखाई दे रहे हैं। कैम्पबेल द्वारा इसी दौरान मैस हाउस में भी हमला किया गया, इस क्षतिग्रस्त इमारत की तस्वीर (b) भी बियातो द्वारा ली गयी। लखनऊ के प्राचीन दुर्ग में हुए बम विस्फोट के बाद शेष बचे मलबे को इन्होंने अपनी तस्वीरों (c) में स्थान दिया। जनरल हेनरी हैवेलॉक (General Henry Havelock) ने लखनऊ की रेजीडेन्सी में 1857 में जिस मार्ग से प्रवेश किया था उसकी बड़ी ही खूबसूरत तस्वीर (d) बियातो ने ली।
लखनऊ के बैली गार्ड गैट के भीतर रेजीडेन्सी का एक व्यवस्थित शहर था। जिसमें व्यक्तिगत घर, कार्यालय, चर्च इत्यादि शामिल थे। बियातो ने लखनऊ में स्थित एक ऊंची इमारत की छत से इस रेजीडेन्सी की तस्वीर (e) खींची, जिसमें लखनऊ का घण्टाघर भी दिखाई दे रहा है। कैप्टन एटकिन्सन द्वारा संभाली हुई रेजीडेन्सी का प्रवेश बैली गार्ड गैट था जिसकी एकल तस्वीर (f) बियातो द्वारा ली गयी। मोती महल (लखनऊ) में कैम्पबेल के पहले आक्रमण की तस्वीर (g) तथा लालबाग जहां पर 1857 में जनरल जेम्स नील की हत्या की गयी थी उस स्थान की तस्वीर (h) भी बियातो द्वारा ली गयी। विद्रोह के दौरान ब्रिटिशों के आश्रय के लिए एकमात्र स्थान बची रेजीडेंसी के एक कमरे में विद्रोहियों ने अवध के मुख्य आयुक्त सर हेनरी लॉरेंस की हत्या कर दी थी। बियातो द्वारा ली गयी रेजीडेंसी की तस्वीर (i) में यह कमरा भी दिखाई दे रहा है। इन सभी तस्वीरों के साथ लखनऊ के इमामबाड़े की भी इनके द्वारा तस्वीर (j) ली गयी।
इस प्रकार बियातो युद्ध क्षेत्रों की फोटो लेने वाले पहले ब्रिटिश फोटोग्राफर बने इनके द्वारा द्वितीय अफीम युद्ध की भी तस्वीरें ली गयी थी। इसके साथ ही इन्होंने भारत और एशिया के अन्य क्षेत्रों की वास्तुकला, प्राकृतिक दृश्य इत्यादि की भी तस्वीर ली। 1859 में बियातो ने भारत से विदा ली। बियातो ने जापानी फोटोग्राफी पर भी अपना प्रभाव डाला और साथ ही इनके द्वारा मिस्र की भी तस्वीरें ली गईं। 1855-1930 के मध्य में ली गयी भारत की दुर्लभ तस्वीरों को लंदन की प्रहलाद बब्बर गैलरी में ‘द न्यू मिडियम: फोटोग्राफी इन इंडिया 1855-1930’ (The New Medium: Photography in India 1855-1930) नाम की प्रदर्शनी में प्रस्तुत किया गया।
संदर्भ:
1.https://www.reckontalk.com/lucknow-india-history-best-old-all-images-photos-download-part-5/
2.https://library.brown.edu/collections/askb/beato.php
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Felice_Beato