क्या हैं लखनऊ के बालाजी मंदिर के अष्ट दिक्पाल?

लखनऊ

 20-11-2018 01:20 PM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

हमारे हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थों के अनुसार ईश्वर कण-कण में विद्यमान हैं, उनकी दृष्टि और कृपा दसों दिशाओं में रहती है। यही कारण है कि प्रचीन मंदिरों में दसों दिशाओं में दिशाओं का पालन करने वाले देवगण विराजमान रहते थे। हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक दिशा के लिये एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे ‘दिक्पाल’ कहा गया है अर्थात दिशाओं की रक्षा करने वाले। यह शैली आज कल नव निर्मित मंदिरों में नहीं देखी जाती है परंतु प्रचीन मंदिरों, खासकर कि दक्षिण भारत के मंदिरों में, आप दिशाओं का पालन करने वाले देवगण को आसानी से देख सकते हैं, यह प्रथा दक्षिण भारत में आज भी ज़िन्दा है।

लखनऊ का बालाजी मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां 8 दिशाओं में देवताओं की स्थापना हुई है। भव्य वास्तुकला और प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध यह मंदिर लखनऊ के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसका उद्घाटन 2012 में किया गया था। जिस क्षण आप इसके अंदर जाएंगे तो आपको मुख्य मंदिर परिसर में नौ ग्रहों के देवताओं की खूबसूरत और नक्काशीदार मूर्तियां दिखाई देंगी। पूरे भारत से लोग बालाजी मंदिर में अपनी प्रार्थनाएं करने और उसकी भव्यता को देखने के लिए आते हैं।

दिक्पाल पुराणों के अनुसार दस दिशाओं का पालन करने वाले देवगण माने जाते हैं जिनकी उत्पत्ति की कथा वराह पुराण में कुछ इस प्रकार बताई गई है:

जब ब्रह्मा जी सृष्टि के निर्माण के लिये चिंतनशील थे, उस समय उनके कान से दस कन्याएँ उत्पन्न हुईं, जिनमें मुख्य 6 और 4 गौण थीं।

1. पूर्वा - जो पूर्व दिशा कहलाई।
2. आग्नेयी - जो आग्नेय दिशा (दक्षिण-पूर्व) कहलाई।
3. दक्षिणा - जो दक्षिण दिशा कहलाई।
4. नैऋती - जो नैऋत्य दिशा (दक्षिण पश्चिम) कहलाई।
5. पश्चिमा - जो पश्चिम दिशा कहलाई।
6. वायवी - जो वायव्य दिशा (पश्चिमोत्तर) कहलाई।
7. उत्तर - जो उत्तर दिशा कहलाई।
8. ऐशानी - जो ईशान दिशा (उत्तरपूर्व) कहलाई।
9. ऊर्ध्व - जो ऊर्ध्व दिशा (ऊपर की ओर) कहलाई।
10. अधस्‌ - जो अधस्‌ (नीचे की ओर) दिशा कहलाई।

उन कन्याओं ने ब्रह्मा से रहने का स्थान और उपयुक्त पतियों की याचना की, तब ब्रह्मा ने कहा- तुम सभी की जिस ओर जाने की इच्छा हो जा सकती हो। शीघ्र ही तुम सभी को अनुरूप पति की प्राप्ति होगी। उन कन्याओं ने एक-एक दिशा की ओर प्रस्थान किया। जिसके पश्चात् ब्रह्मा ने उन कन्याओं के वर के रूप में आठ दिक्पालों (जिन्हें अष्ट-दिक्पाल कहा जाता है) की सृष्टि की।

इसके बाद वे सभी दिक्पाल उन कन्याओं के साथ अपनी दिशाओं में चले गए। इन दिक्पालों के नाम और उनकी दिशाओं का क्रम निम्नांकित है:-

1. इंद्र - पूर्व (पूर्वा)
2. अग्नि - दक्षिणपूर्व (आग्नेयी)
3. यम - दक्षिण (दक्षिणा)
4. सूर्य - दक्षिण पश्चिम (नैऋती)
5. वरुण - पश्चिम (पश्चिमा)
6. वायु - पश्चिमोत्तर (वायवी)
7. कुबेर - उत्तर (उत्तरा)
8. ईशान - उत्तरपूर्व (ऐशानी)

वास्तु-शास्त्र में भी इन अष्ट-दिक्पालों की अधिक मान्यता है। इन्हीं आठ दिशाओं को वास्तु-शास्त्र में सूचीबद्ध किया गया है। जब ये दिक्पाल ब्रह्मांड की दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो इन्हें लोकपाल के रूप में भी जाना जाता है।

शेष दो दिशाओं अर्थात् ऊर्ध्व की ओर ब्रह्मा स्वयं चले गए और अधस्‌ की ओर उन्होंने विष्णु को प्रतिष्ठित किया। इस प्रकार ये दश-दिक्पाल कहलाए। हिंदू धर्म में मंदिरों की दीवारों और छत पर दश-दिक्पाल की छवियों का प्रतिनिधित्व करना परंपरागत है। इन्हें अक्सर जैन मंदिरों में देखा जा सकता है।

आपको बता दें कि इंडोनेशिया में भी हिंदू धर्म की बहुत अधिक मान्यता है। प्राचीन जावा और बाली में आप हिंदू धर्म के नव-दिक्पालों अर्थात नौ दिशाओं की रक्षा करने वाले को देख सकते हैं। यहां के मंदिरों में आठ दिशाओं के अतिरिक्त केंद्र को भी शामिल किया गया है। इन दिक्पालों की छवि मजापहित साम्राज्य के प्रतीक सूर्य मजापहित में दिखाई गई है। इन नौ दिक्पालों के नाम और उनकी दिशाएं निम्नांकित है:

1. शिव (केंद्र)
2. विष्णु (उत्तर)
3. ब्रह्मा (दक्षिण)
4. इश्वर (पूर्व)
5. महादेव (पश्चिम)
6. शंभू (पूर्वोत्तर)
7. महेश्वरा (दक्षिणपूर्व)
8. शंगकरा (उत्तरपश्चिम)
9. रुद्र (दक्षिणपश्चिम)

संदर्भ:
1.
https://hinduism.stackexchange.com/questions/3102/who-are-ashta-dikpalakas-what-is-their-job
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Guardians_of_the_directions
3.https://stylesatlife.com/articles/temples-in-lucknow/



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id