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चिन्मय मिशन एक आध्यात्मिक, शैक्षिक तथा धार्मिक संस्था है। इसकी स्थापना चिन्मय आंदोलन के परिणामस्वरूप हुई थी। चिन्मय आंदोलन की शुरूआत तब हुई जब लंबे विदेशी शासन से मुक्त होने के बाद हिंदू धर्म अवरोधपूर्ण दौर से गुजर रहा था। उसे दूर करने के लिए देश के कई विद्वानों ने धार्मिक सुधार के लिये अनेक आन्दोलन प्रारम्भ किए। उसी समय 31 दिसंबर 1951 को पुणे में स्वामी चिन्मयानंद द्वारा चिन्मय आंदोलन हुआ। चिन्मय आंदोलन का मुख्य लक्ष्य भारतीय संस्कृति की उन्नति तथा प्रसार और जन साधारण को शिक्षित एंव हिंदू धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करना है।
स्वामी चिन्मयानंद हिंदू धर्म और संस्कृति की आधारशिला रखने वाले वेदांत के महान प्रतिपादकों में से एक थे। उन्होंने वेदांत पर रूढ़िवादी पुरोहितों का एकाधिकार समाप्त किया और जनसाधारण को ज्ञान-यज्ञ (ये हिंदू धर्म के विषयों और दर्शन पर जन साधारण को दिए जाने वाले प्रवचन हैं, जिनका चयन धार्मिक साहित्य जैसे उपनिषद, गीता, भगवत गीता, तुलसी रामायण आदि से किया जाता है) के माध्यम से शाश्वत व अमूल्य ज्ञान प्रदान किया। तत्पश्चात चिन्मयानंद के शिष्यों ने वेदांत के विषयों का अध्ययन और उन पर चर्चा करने के लिए एक समूह गठित करने का निर्णय किया और इसके लिये स्वामी चिन्मयानंद भी राज़ी हो गये। अंततः 8 अप्रैल 1953 में ‘चिन्मय मिशन’ का गठन हुआ। चिन्मय मिशन का उद्देश्य वेदांत के मानव हितैषी ज्ञान को समस्त विश्व में फैलाना है। इस समय भारत एवं विश्व के अन्य भागों में इसके 300 से अधिक केंद्र चल रहे हैं।
यह मिशन विश्वभर में आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, समाज सेवा परियोजनाओं और संबंधित कार्य क्षेत्रों में कार्यालयों व योजनाओं का आयोजन एवं समन्वय करता है। इसने वेदांत की उपदेश परंपरा के अनुसार वैदिक संस्कृति की आध्यात्मिकता और आधारशिला को तर्कपूर्ण रीति से प्रस्तुत करने में योगदान किया है। इसका प्रायोजन लोगों को वेदांत का ज्ञान देना और आध्यात्मिक उन्नति एवं प्रसन्नता के लिए व्यावहारिक साधन उपलब्ध कराना है, ताकि वे समाज के लिए सकारात्मक योगदान दे सकें।
मिशन ने बहुत सी सामाजिक परियोजनाएं शुरू की हैं, कई विद्यालय, कॉलेज, अस्पताल, वृद्धाश्रम खोले हैं, तथा बाल एवं युवा विकास के कई कार्यक्रम, ग्रामीण नर्सों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, गांव का पुननिर्माण, ग्रामीण महिलाओं के लिए आय सृजन, बड़े पैमाने पर वनारोपण आदि योजनाएं संचालित की हैं।
1993 में स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती के महासमाधि प्राप्त करने के बाद, उनके शिष्य स्वामी तेजोमयानंद चिन्मय मिशन के वैश्विक प्रमुख बन गये। इनके बाद जनवरी 2017 में स्वामी स्वरूपानंद को चिन्मय मिशन का उत्तराधिकारी बना दिया है।
संदर्भ:
1.सांस्कृतिक एटलस, राष्ट्रीय एटलस एवं थिमैटिक मानचित्रण संगठन (NATMO)
2.http://www.chinmayamission.com/