प्रथम विश्‍व युद्ध में भारतीय जवानों का बलिदान

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
12-11-2018 01:30 PM
प्रथम विश्‍व युद्ध में भारतीय जवानों का बलिदान

भारत लगभग 200 वर्ष तक यूरोपीय देशों (जैसे-ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल) का उपनिवेश रहा तथा साथ ही 19वीं सदी के अंतिम चरण से 20वीं सदी के प्रारंभ तक पूर्णतः इनके नियंत्रण में हो गया। अतः उस दौरान यूरोप में होने वाली किसी भी प्रकार की गतिविधियों पर भारत का प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से भागीदार होना स्‍वभाविक था। 20वीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में आगाज़ हुआ भयावह प्रथम विश्‍व युद्ध का। इस युद्ध की भूमिका तो 1912-1913 में हुए बाल्‍कन युद्ध से ही बन गयी थी जिसने आगे चलकर यूरोपीय युद्ध तथा अंततः प्रथम विश्‍व युद्ध का रूप धारण किया। प्रथम विश्‍व युद्ध 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला। इस विशाल युद्ध में शहीद हुए वीरों की याद में हर वर्ष 11 नवम्बर को युद्धविराम दिवस या आर्मिसटाइस डे (Armistice Day) के रूप में जाना जाता है।

लगभग 4 वर्ष तक चले इस युद्ध में विश्‍व के अधिकांश देश शामिल हो गये थे, जिसमें असीमित जन-धन की हानि हुयी। ब्रिटिश उपनिवेश होने के नाते भारत की सेना (घुड़सवार तथा पैदल सेना) भी युद्ध में शामिल हुयी, इनका यह भारतीय भूमि से बाहर पहला युद्ध था। भारत से बाहर जाने के लिए भारतीय सेना द्वारा विरोध भी किया गया, किंतु अंततः इन्‍हें युद्ध में शामिल होना ही पड़ा। इस युद्ध में भारत की सेना ने प्रतिकूल परिस्थितियों में साहसपूर्वक अपनी वीरता का प्रदर्शन किया।

प्रथम विश्‍व युद्ध में भारत द्वारा मात्र मानवीय संसाधन ही नहीं वरन् कच्‍चे माल (कपास, जूट और चमड़े आदि) की आपूर्ति तथा आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया गया। इसमें विद्रोहियों का सामना करते हुए भारत के लगभग 60,000 सैनिक श‍हीद हो गये। युद्ध में श‍हीद सैनिकों को 11 विक्‍टोरिया क्रॉस सहित 9,200 सैनिक सम्‍मान प्रदान किया गया। प्रथम विश्‍व युद्ध के माध्‍यम से ही पहली बार भारतियों ने यूरोप में अपनी प्रत्‍यक्ष सेवा दी, जिसने भारतियों को यहां के समाज से अवगत करवाया। भारत ब्रिटेन की ओर से जर्मन साम्राज्य, तुर्क साम्राज्‍य के विरूद्ध युद्ध में खड़ा हुआ।

भारतीय स्‍वतंत्रता के प्रमुख नेताओं (महात्‍मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सरोजनी नायडू आदि) द्वारा भी भारतीय जनता को युद्ध में बढ़ चढ़कर हिस्‍सा लेने के लिए प्रोत्‍साहित किया गया। इसके पीछे कारण था ब्रिटिश उपनिवेश से भारत को स्‍वतंत्रता दिलाना। इनका मानना था कि यदि हम युद्ध में ब्रिटेन का पूर्ण सहयोग करते हैं, तो ये भारत को शीघ्र स्‍वतंत्रता प्रदान करेंगे। इससे भारतियों को स्‍वतंत्रता तो नहीं मिली, किंतु मांटेग्यू घोषणा पत्र के माध्‍यम से प्रशासन में भारतियों की भागीदारी को बढ़ा दिया गया। लेकिन 1919 में आये रॉलैट एक्‍ट ने युद्ध में भारतियों के बलिदान को पूर्णतः पीछे छोड़ दिया। यहां से प्रारंभ हुआ गांधी जी का असहयोग आंदोलन जिसने भारतीय स्‍वतंत्रता में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रथम विश्‍व युद्ध तथा अफ़ग़ान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की स्‍मृति में अंग्रेजों की ओर से दिल्‍ली के राजपथ में इंडिया गेट की स्‍थापना की गयी जो स्‍वतंत्रता के बाद अज्ञात सैनिकों का स्‍मारक मात्र बनकर रह गया।

भारत-पाक युद्ध (1971) में शहीद हुए भारतीय जवानों की स्‍मृति में इस स्‍मारक पर अमर जवान ज्‍योति का निर्माण कराया गया। आज भले ही भारतियों द्वारा इन जवानों के बलिदानों को भुला दिया गया हो, किंतु फिर भी यह स्‍मारक आज भी उनकी स्‍मृति कराता है।

संदर्भ:
1.https://www.livemint.com/Leisure/7a9ZimWdFqtsMaU6t4uFvK/The-Sepoys-War.html
2.http://indiaww1.in/timeline.aspx
3.https://www.livemint.com/Leisure/VfpJyUSGqCbFo9114UpALP/Why-did-we-fight-the-war.html