वैसे तो हमारा देश हमेशा से ही हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है। हालांकि, समय-समय पर कुछ असामजिक तत्वों ने अपने स्वार्थों और व्यक्तिगत लालच के लिये आपस में फूट डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन इतिहास में कई ऐसे उदहारण हैं जो हमें सभी धर्मों में आस्था और आपस में प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं। इन उदहारणों के बल पर हम अपनी आने वाली नयी पीढ़ियों को एक बेहतरीन सन्देश दे सकते हैं और लखनऊ के अलीगंज में बना हनुमान मंदिर इसका एक प्रतीकात्मक चिन्ह है।
कभी लक्ष्मणपुर नाम से मशहूर लखनऊ आज भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखने वाले लखनऊ में कई ऐसी इमारतें हैं जो हमें आपस में जोड़ने का काम करती हैं। लखनऊ के अलीगंज में बने हनुमान मंदिर के बारे में अनेकों मान्यताएं हैं जिस कारण इसकी आस्था की पैठ सभी धर्मों के लोगों के बीच उतनी ही चर्चित है जितनी हिन्दू धर्म के लोगों में।
इसकी मान्यता की जड़ें मुग़ल शासन से जुड़ी हैं। कहा जाता है कि 400 वर्ष पूर्व जब नवाब मुहम्मद अली शाह का बेटा गंभीर रूप से बीमार हुआ था, उसे उस वक़्त के सभी बड़े हकीमों को दिखाया गया, लेकिन नवाब के बेटे की तबियत में नाम मात्र का सुधार भी देखने को नहीं मिला। मुहम्मद अली शाह और उनकी बेग़म रबिया की चिंता अपने बेटे की बीमारी को लेकर बढ़ती ही जा रही थी, ऐसे में किसी ने उन्हें अलीगंज के हनुमान मंदिर से जुड़ी कहानियों के बारे में बताया। अपने बच्चे की सलामती के लिये रबिया एक दिन अपने बेटे को लेकर अलीगंज के हनुमान मंदिर पहुंच गयी। मंदिर पहुंचने के बाद मंदिर के पुजारी ने उन्हें अपने बेटे को रातभर के लिये मंदिर में छोड़कर वहां से चले जाने की बात कही।
रातभर अपने बेटे को मंदिर में छोड़ जाने के बाद जब दूसरे दिन रबिया अपने बेटे को लेने मंदिर वापस आई तो रबिया का बेटा पूरी तरह से ठीक हो चुका था। रबिया को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका बेटा एक रात में ठीक कैसे हो सकता है। तब रबिया के मन में ख्याल आया कि जब उसका बेटा इस मंदिर में आने के बाद तंदरुस्त हो सकता है तो इस टूटे हुए मंदिर का मरम्मत करवाना चाहिये जिससे और माँओं को भी हनुमान मंदिर से लाभ प्राप्त हो सकें। जब मंदिर की मरम्मत करवाई जा रही थी उस वक़्त मंदिर में प्रतीक के तौर पर मंदिर के गुम्बद पर चाँद सितारा लगाया गया था जो आज भी मंदिर के गुम्बद पर देखा जा सकता है।
मंदिर के मरम्मत के साथ ही मुगल शासक ने ज्येष्ठ माह के मंगलवार को पूरे नगर में गुड़-धनिया, भुने हुए गेहूं में गुड़ मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद बंटवाया। साथ ही शासक ने शहर में प्याऊ भी लगवाये थे। आज इस मंदिर में दर्शन और मंदिर में सेवा करने हिन्दू, मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ में सिख व ईसाई धर्म के लोग भी आते हैं।
इस मंदिर से जुड़ी दूसरी मान्यता आलिया बेग़म से है| ऐसा माना जाता है जब सन 1718 में आलिया बेग़म शाही बिल्डिंग बनाने के लिये मजदूरों से अलीगंज में खुदाई का काम करवा रही थी| मजदूरों को खुदाई करते वक़्त हनुमान जी की दो प्रतिमाएं जमीन के अंदर से प्राप्त हुई जिसकी सुचना मजदूर आलिया बेग़म को दे देते हैं| मजदूरों की बात सुन आलिया बेग़म हनुमान जी की प्रतिमाओं को दिन के समय निर्माण कार्य वाली जमीन के किनारों में रखवा देती हैं| इसी रात आलिया बेग़म को सपने में दिखाई देता है कि यदि इन प्रतिमाओं को स्थापित किया जायेगा तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी| सपने के कुछ दोनों बाद ही आलिया बेगम मूर्तियों को स्थापित करवा देती हैं और इसके कुछ दिनों बाद ही आलिया को पुत्र की प्राप्ति हो जाती है जिसका नाम मंगत राय फिरोज शाह रखा जाता है|
संदर्भ:
1. https://goo.gl/SrDhPL
2. https://www.patrika.com/lucknow-news/top-5-famous-lord-hanuman-temple-in-lucknow-2835431/
3. http://www.aliganjhanumanmandir.org/mandir_history.html
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