दो किताबों के माध्यम से समझें क्रिकेट का समाज पर प्रभाव

अवधारणा II - नागरिक की पहचान
31-10-2018 01:45 PM
दो किताबों के माध्यम से समझें क्रिकेट का समाज पर प्रभाव

“वो लोग क्रिकेट के बारे में क्या जानते हैं, जो केवल क्रिकेट के बारे में जानते हैं ” - यह ‘बियॉन्ड अ बाउंड्री’ (Beyond A Boundary) नामक किताब की एक प्रसिद्ध पंक्ति है। बियॉन्ड अ बाउंड्री सी.एल.आर. जेम्स (CLR James) द्वारा लिखी गयी क्रिकेट पर एक पुस्तक है, जो सामाजिक पहलू को दर्शाती है। उन्होंने अपने जीवन काल में अश्‍वेत लोगों की आज़ादी के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। इनका क्रिकेट से जो लगाव था वह उनका शेक्सपियर के प्रति प्रेम के समान था।

इस पुस्तक में लेखक द्वारा 19वीं सदी में होने वाले जाति, वर्ग और साम्राज्य में लोगों के समक्ष भेद भाव का वर्णन क्रिकेट के माध्यम से किया गया है। किसी अन्य खेल की तुलना में उस समय क्रिकेट राजनीति, जाति, वर्ग और साम्राज्य से अधिक प्रभावित था। वेस्टइंडीज (West Indies) के क्रिकेट क्लबों में त्वचा के रंग के अनुसार क्लबों को वर्गीकृत किया जाता था। उस समय क्रिकेट ने उपनिवेशवाद के पदानुक्रम और औपनिवेशिक समाज के वर्गीकरण को प्रतीक बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जेम्स द्वारा क्रिकेट को राष्ट्र का गौरव बनाए रखने के साधन के रूप में देखा गया। उन्होंने 1960 में त्रिनिदाद के समाचार पत्र ‘दी नेशन’ (The Nation) के संपादक के रूप में, वेस्टइंडीज के पहले अश्वेत कप्तान फ्रैंक वॉरेल ( Frank Worrell ) के चुनाव का सफलतापूर्वक प्रचार किया था। जेम्स ने अपने पूरे जीवन काल के दौरान क्रिकेट को दो अलग द्वीपों के एक अलग समूह को एकजुट करने में मदद करने के साधन के रूप में देखा। लेकिन उन्हें यह समझने में कठिनाई हुई कि नॉर्मन टेब्बिट (Norman Tebbit) ने क्रिकेट को वफादारी की परीक्षा के रूप में क्यों आंका जब अश्‍वेत लोगों को अपनी वफादारी दिखाने का अवसर ही नहीं मिलता था।

वहीं रामचंद्र गुहा द्वारा लिखी गयी ‘अ कॉर्नर ऑफ अ फॉरिन फील्ड’ (A Corner of a Foreign Field) एक ब्रिटिश खेल के भारतीय इतिहास को दर्शाती है। यह किताब क्रिकेट पर आधारित है, लेकिन ये क्रिकेट से कई ज्यादा औपनिवेशिक काल के दौरान के भारतीय इतिहास को दर्शाती है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा बाएं हाथ के स्पिनर पलवंकर बलू, जो दलित समुदाय से संबंधित थे की जीवनी को दर्शाया गया है। इसमें लेखक द्वारा बताया गया है कि, “बलू की गेंद फैंकने की प्रक्रिया हर समय भिन्न होती थी, जो बल्लेबाज़ों के लिए एक समस्या का कारण बन जाती थी। उनकी इस योग्यता के बावजूद उन्हें चाय के लिए विराम के दौरान साथियों से अलग बैठना पड़ता था और डिस्पोज़ल कप (Disposal Cup) में चाय पीनी होती थी, जबकि बाकी सब चीनी मिट्टी के कप में चाय पीते थे। इसमें बलू के जीवन में क्रिकेट की मदद से आए बदलाव को दर्शाया गया है। गुहा की पुस्तक में स्वतंत्रता आंदोलन के बढ़ने का एक आकर्षक पहलू है।

इन पुस्तकों के आधार से हम ऐसा कह सकते हैं कि क्रिकेट ने जाति व्यवस्था को कम करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

संदर्भ:
1.https://kenanmalik.com/2013/05/19/beyond-a-boundary/?fbclid=IwAR2YAaOvpty0CJyQF3w2YFcQS73lz5GlYu6TXmk-98ngRuyTEUvt4b_iVZw/
2.https://www.theguardian.com/books/2003/may/03/featuresreviews.guardianreview5
3.https://www.countercurrents.org/date230211.htm?fbclid=IwAR26gsEp_MygycgrwNt4alLmJd6KSfHT1LDnp8Z6K3UHlmksDkOtSz-ssb4