रेशम के कपड़े हमारी प्राचीन सभ्यता का एक अनोखा और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं| रेशम का व्यापार प्राचीन काल से ही होता आ रहा है| महाभारत व अन्य ग्रंथों में रेशम के कपडे का जिक्र मिलता है और मौर्य साम्राज्य में भी रेशम के कई प्रमाण देखने मिलते हैं| भारत में वाराणसी, कांचीपुरम रेशम की साड़ियों का काम होता है| वाराणसी की बनारसी साड़ी अपने खूबसूरती और कारीगरी के लिए विख्यात है| वाराणसी से लगभग 100 किलोमीटर दूर मुबारकपुर भी बूटी काम और ज़री काम के लिए प्रसिद्ध है| ब्रोकेड का काम बनारसी साड़ियों की खासियत है जिसको किन्काब कहते हैं| सिल्क साड़ियों पर अलग अलग तरह के आकर वाली रचनाएँ इनकी शोभा को और बढाती हैं| अलग अलग रुपांकनो से इनकी खूबसूरती में चार चाँद लग जाते हैं (पहले चित्र में इसका विविरण देखे)| इन्हें बनाने की कई तकनीक हैं जैसे कड़वा, मीनाकरी, फेक्वा, कत्रुआ, नक्शा, कलाबत्तू इत्यादि|
सिल्क साड़ियाँ पुरे भारत में पाई जाती हैं| यह कई प्रकार की होती हैं और इनको बनाने में अलग अलग तकनीक अपनाई जाती है :-
1. वाराणसी – ब्रोकेड, ज़री
2. मुबारकपुर (उत्तर प्रदेश) – नगई साडी
3. मुर्शिदाबाद(बंगाल) – बालूचर
4. गुजरात – तन्चोई, पटोला
5. महाराष्ट्र – पैठणी
6. असम- एंडी, मुगा (चंपा अदाकारी / मेजम्कारी), सुलाकुची
7. कश्मीर
8. तमिल नाडू – कांचीपुरम
9. गणेशपुर (महाराष्ट्र) – तुस्सेर सिल्क साडी इत्यादि
जैसे लखनऊ का चिकनकारी का काम प्रसिद्ध है वैसे ही वाराणसी के ज़री और ब्रोकेड सिल्क साड़ियों का कोई तोड़ नहीं| सिल्क के धागे को कपास और दुसरे अलग प्रकार के धागों से मिला कर जारजट, शिफॉन, नायलॉन इत्यादि प्रकार के कपड़े भी बनते हैं| रामपुर में जहाँ इस प्रकार के कपड़ों का उत्पादन होता था, वही आज कारीगर फूल-पत्ती और ज़री कारगरी के लिए कपड़ा आयात करते हैं|
1. तानाबाना- टेक्सटाइल्स ऑफ़ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ़ टेक्सटाइल्स, भारत सरकार
2. आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स ऑफ़ इंडिया – इले कूपर, जॉन गिल्लो
3. हेंडीक्राफ्ट ऑफ़ इंडिया – कमलादेवी चट्टोपाध्याय
4. टेक्सटाइल ट्रेल इन उत्तर प्रदेश (ट्रेवल गाइड ) – उत्तर प्रदेश टूरिज्म