प्रचीन काल से ही खेल हर समाज की एक मौलिक गतिविधि का हिस्सा रहे हैं,फिर चाहे वो बाहर खेले जाने वाले शारीरिक खेल हो या घर पर बैठ कर दिमागी कसरत वाले बोर्ड और कार्ड खेल हो।शुरूआती समय में ये बोर्ड और कार्ड खेल दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के समाजों के बीच फैले जिस कारण ये खेल अपने अंदर एक लंबे और जटिल सांस्कृतिक इतिहास को समेटे हुए है।
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के बोर्ड गेम “गंज” को रिचर्ड जॉनसन (1753-1807) द्वारा भारत से लंडन ले जाया गया, जो आज ब्रिटिश पुस्तकालय में संरक्षित रखी हुई है। रिचर्ड जॉनसन को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में भेजा गया था। जिन्होंने सर्वप्रथम अपनी सेवा कलकत्ता में दी, जहाँ उन्होंने व्यापार कर काफी धन अर्जित किया और कई शहरी संपत्ति में भी निवेश किया। और वॉरेन हेस्टिंग्स के साथ काम करते समय उन्हों ने हेस्टिंग्स की तरह भारतीय चीजें इकट्ठा करना शुरु कर दिया। 1782 में जॉनसन को मुख्य सहायक के रूप में लखनऊ भेज दिया गया। यहाँ वे दो साल तक रहे, और भारत की कला को भारत से बाहर ले जाने लगे।जिनमें यह 8x8 वर्ग कागंज बोर्ड भी शामिल था। इसे खेलने के नियम फारसी में लिखे हुए हैं। साथ ही यह बोर्ड इतना बड़ा है की कई लोग इसमें खेल सकते हैं।इसमें बनाए गये डिजाइन पर छोटे रेखा-चित्र रागमाला श्रृंखला (गुलाम रजा, गोबिंद सिंह, उदवत सिंह और मोहन सिंह) के एक चित्रकार का काम हो सकता है।
गंज खेल आमतौर पर 16वीं शताब्दी में युरोप में खेले जाने वाले "द रॉयल गेम ऑफ गूस" के समान है। बेअज़-ए ख्वाश्बूई (1698) में मुहम्मद अज़म ने भी गंज को "युरोपीय खेल" कहा है।गंज खेल को वैकल्पिक वर्गों के बोर्ड पर खेला जाता है, यह युरोपीय शतरंज के बोर्ड के लगभग समान होता है। इसमें काले रंग वाले वर्ग खाली रहते हैं और सफेद रंग वाले वर्गों में खतरे के निशानों का चित्रण किया जाता है, यदि पासे फैंकने वाले खिलाड़ी का सामना सफेद वर्ग से होता है तो उसे खतरे का सामना करना पड़ता है।ब्रिटिश पुस्तकालय में संरक्षित यह बोर्ड "वास्तविक जीवन" पर अधारित है।
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