नवरात्रि के महापर्व पर चारों तरफ माता के जयकारों की गूंज सुनाई दे रही थी और मंदिरों में भक्तों का सैलाब भी उमड़ा हुआ था। वहीं उन्नाव के कुशहरी देवी मंदिर का पौराणिक इतिहास भक्तों की आस्था का केंद्र बिंदु बना हुआ, जो भगवान राम के पुत्र कुश द्वारा स्थापित एक मात्र मंदिर है।
उन्नाव से 20 किमी और नवाबगंज से तीन किमी दूरी पर स्थित इस मंदिर पर केवल उन्नाव के ही नहीं बल्कि लखनऊ, कानपुर, रायबरेली व आसपास जनपदों के लोग अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहाँ माँ के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पुरी होती हैं। इस मंदिर के ठीक सामने एक विशाल सरोवर है, जो गऊ घाट की झील से जा मिलता है। इसमें रहने वाले कछुओं व मछलियों को लोग आटे की गोली का भोजन भी खिलाते हैं। मंदिर परिसर में शिव जी, हनुमान और राधा-कृष्णा के आकर्षण दरबार स्थापित हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब श्रीराम ने सीता का परित्याग कर दिया था, तो वे अपने भाई लक्ष्मण को माता सीता को गंगातट के जंगलों पर छोड़ आने का आदेश देते हैं। लक्ष्मण श्रीराम के आदेश का पालन करते हुए लक्ष्मण माता सीता को रथ में बैठाकर जंगल की ओर चल दिए। मार्ग में माता सीता को प्यास लगती है, और वे लक्ष्मण को जल लाने के लिए कहती हैं। लक्ष्मण एक कुएं से जल निकालने का काफी प्रयत्न करते हैं, तभी कुएं से आवाज आती है कि पहले मुझे बाहर निकालो फिर यहां से जल भरो। लक्ष्मण द्वारा तब कुएं से एक देवी की मूर्ती निकाली गयी, जिसे उन्होंने एक बरगद के पेड़ के नीचे रख दिया। फिर वे जल माता सीता के पास ले गए और उन्हें मुर्ति की बात बता दी। जब वे गंगातट के पास पहुंचे तो लक्ष्मण द्वारा माता सीता को राम द्वारा उन्हें त्यागने वाली बात बतायी गयी, जिसे सुनकर माता सीता बहुत दुखी हुई। और वहाँ से वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में उन्होंने पनाह ले ली।
वहीं कुछ समय बाद माता सीता के लव और कु नामक पुत्र होते हैं। काफी दिनों बाद नैमिषारण्य धाम में श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान किया। यज्ञ में वाल्मीकि जी सीता और लव कुश के साथ गए। तभी रास्ते में माता सीता को लक्ष्मण द्वारा बरगद के पेड़ के नीचे रखी गई मुर्ति दिखाई दी। माता सिता ने मुर्ति की स्थापना कुश से करवायी, जो बाद में माता देवी के नाम से विख्यात हुईं।
दर्भे घास के ऊपरी हिस्से को कुश कहा जाता है जोकि अक्सर पूजा में हम इस्तेमाल भी करते है। कुछ जगह कुश का इस्तेमाल भोजन को ग्रहण से बचाने के लिए भी किया जाता है। माना जाता है कि जब सीता माता ने अपने जुड़वा बच्चो को जनम दिया तो दाई द्वारा पहले बच्चे को महर्षि वालमीकि के आदेश पर दर्भ घास के ऊपरी हिस्से(कुश) से साफ़ किया और इसी वजह से उनका नाम कुश पड़ा और वही दूसरे बाचे को दर्भ घास के निचले हिस्से से साफ़ किया गया जिसे लव (LAVA) कहा जाता है। इसी तरह सीता माता के दोनों पुत्रो का नाम लव कुश पड़ा ।
1.https://www.quora.com/Why-did-Lord-Rama-name-one-of-his-sons-Love
2.https://www.quora.com/What-is-the-meaning-of-Kush-Lord-Ramas-son
3.https://www.jagran.com/uttar-pradesh/unnao-13024960.html
4.https://www.patrika.com/unnao-news/lav-and-kush-was-established-of-kushari-devi-mandir-in-nawabganj-unnao-1415868/
5.https://www.amarujala.com/photo-gallery/uttar-pradesh/kanpur/history-of-kushari-devi-temple-unnao-up
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