जब भाषा क्लिष्टता से सरलता की ओर बढ़ती है, तो उसके विभिन्न स्वरूप उभरकर सामने आते हैं। भारोपीय (इंडो-यूरोपीय) परिवार की सदस्य हिन्दी भाषा की यात्रा भी कुछ इसी प्रकार रही: संस्कृत-प्राकृत-पालि-अपभ्रंश-हिन्दी। समय के साथ हिन्दी भाषा के भी विभिन्न रूप उभरकर सामने आये। जिनमें से एक है खड़ी बोली जिसे संविधान द्वारा राजभाषा के रूप में चुना गया है। खड़ी का अर्थ है ‘खरी’ या शुद्ध। हिन्दी में इसका उपयोग शुद्ध हिन्दी भाषा के लिए किया गया। अपने नाम के अनुसार ही इसका स्वरूप देखने को मिलता है।
14वीं शताब्दी के मध्य भारत के विभिन्न हिस्सों में अनेक बोलियों का प्रचलन था। मुगलों के भारत में आगमन के पश्चात भारत में प्रवेश हुआ अरबी और फारसी भाषा का, किंतु इनको आभास हुआ कि भारतीय समाज में सामांजस्य बिठाने के लिए यहां की स्थानीय भाषा सीखना अनिवार्य है। उस दौरान भारत में सर्वाधिक प्रचलित अवधि और ब्रजभाषा के अत्यंत कठिन होने के कारण इन्होंने मेरठ वाले भाग में बोली जाने वाली बोली को सीखा, जिसे इनके द्वारा खड़ी बोली नाम दिया गया। समयांतराल में खड़ी बोली के विभिन्न रूप उभरकर सामने आये अर्थात खड़ी बोली में अधिकांश संस्कृत शब्दों के समावेश से ठेठ हिन्दी या शुद्ध हिन्दी का रूप उभरा तथा अरबी और फारसी शब्दों के समावेश से उर्दू भाषा का जन्म हुआ। हिन्दी और उर्दू के मिश्रित रूप से हिंदुस्तानी भाषा जन्मी। इस प्रकार खड़ी बोली हिन्दुयी, हिन्दी, हिन्दुस्तानी, रेख्ता, उर्दू, दखिन्नी हिन्दी आदि के नाम से जानी गयी। दिल्ली सल्तनत के दौरान इस बोली का व्यापक रूप से विस्तार हुआ।
इस प्रकार यह बोली शुद्ध हिन्दी और उर्दू की मूल भाषा बनी। विभिन्न हिन्दी और मुस्लिम लेखकों द्वारा खड़ी बोली को अपनी साहित्य भाषा के रूप में उपयोग किया गया। अमीर खुसरो खड़ी बोली के पहले कवि थे तथा खड़ी बोली शब्द का सर्वप्रथम हिन्दी गद्य साहित्य में उपयोग लल्लूलाल जी द्वारा अपनी रचना प्रेमसागर में किया गया।
संदर्भ:
1.https://sol.du.ac.in/mod/book/tool/print/index.php?id=1490http://sol.du.ac.in/mod/book/tool/print/index.php?id=1490
2.https://en.wiktionary.org/wiki/Khariboli
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