मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥
अर्थात् :- हे निषाद ! तुमको अनंत काल तक (प्रतिष्ठा) शांति न मिले, क्योंकि तुमने प्रेम, प्रणय-क्रिया में लीन असावधान क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक की हत्या कर दी।
वाल्मीकि ऋषि के शोक में निकला यह श्लोक भारतीय साहित्य और प्रथम महाकाव्य रामायण का पहला संस्कृत श्लोक बना। यह श्लोक महर्षि वाल्मीकि द्वारा शोक में एक शिकारी के प्रति अनायास निकला एक शाप है। यह कथा प्रारंभ होती है जब वाल्मीकि जी के आश्रम पर देवर्षि नारद पधारते हैं और उन्हें रामायण के बारे में संक्षिप्त में बताते हैं। देवर्षि नारद के जाने के बाद वाल्मीकि जी अपने शिष्यों के साथ तमसा नदी के तट पर स्नान हेतु जाते हैं, तब वे अपने कपड़े शिष्य भारद्वाज मुनि को सौंपकर सही स्थान ढूंढने लगते हैं। तभी उनकी दृष्टि क्रौंच पक्षियों के एक जोड़े पर पड़ती है, जो रतिक्रिया में लीन होते हैं। यह क्रौंच पक्षी और कोई नहीं बल्कि रामपुर के आस-पास पाए जाने वाले सारस पक्षी हैं। उन प्रसन्न पक्षियों को देख वाल्मीकि जी भी प्रसन्न महसूस करने लगे और वहीं खड़े होकर उन्हें देखने लगे।
तभी अचानक उन जोड़ों में से एक पक्षी जोरों से चीखते और पंख फड़फड़ाते हुए जमीन पर गिर जाता है और दूसरा उसके शोक में करुण विलाप करने लगता है। वाल्मीकि जी यह दृश्य देखकर काफी दुखी और क्रोधित हो गए। और जब शिकारी वहाँ पक्षी को लेने पहुँचा तो वाल्मीकि जी द्वारा अनायास शिकारी के लिए श्राप निकला।
इस श्राप के छंदबद्ध वचन वाल्मीकि जी द्वारा सोच-समझकर नहीं बोले गए थे। उस वाक्य का उच्चारण करते ही वे इस सोच में डूब गये कि आखिर उन्होंने ऐसे वचन क्यों कहे। जब वे वापस तट पर पहुंचे तो उन्होंने इस घटना का वर्णन अपने शिष्य भारद्वाज को बताया कि उनके मुख से अनायास एक छंद-निबद्ध वाक्य निकला जो आठ-आठ अक्षरों के चार चरणों, कुल बत्तीस अक्षरों, से बना है। इस छंद को उन्होंने ‘श्लोक’ नाम दिया। और बोले “श्लोक नामक यह छंद काव्य-रचना का आधार बनना चाहिए; यह यूं ही मेरे मुँह से नहीं निकले हैं"। परंतु उनके पास लिखने के लिए कोई विषय ही नहीं था।
इसी विचार में जब वे अश्रम लौटे, तो वे अपने आसन पर विराज कर विभिन्न विचारों में खो गये। तभी सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिये और देवर्षि नारद द्वारा उन्हें सुनायी गयी रामकथा का स्मरण कराया। और वाल्मीकि जी को पुरुषोत्तम राम की कथा को काव्यबद्ध करने के लिए प्रेरित किया। इस प्रेरणा का वर्णन रामायण के दो श्लोकों में किया गया है।
इस प्रकार वाल्मीकि ऋषि द्वारा भारतीय साहित्य और प्रथम महाकाव्य रामायण का निर्माण हुआ।
1.http://1201sv.blogspot.com/2011/05/ramayanas-first-sloka-ma-nishada.html
2.https://goo.gl/ra3sTS
3.http://shabdbeej.com/sanskrit-first-shloka-by-valmiki-story-in-hindi/
4.https://www.scribd.com/document/120263576/Krauncha-Birds-of-the-Ramayana-3
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