नए दिन का स्वागत हो या नए रिश्तों की शुरुआत या फिर आलस दूर भगाना हो या गपशप का बहाना तो बस दरकार होती है, एक प्याली चाय की। सुबह-शाम की चाय के अलावा दिन भर में ऑफिस में काम के बीच न जाने कितने ही कप चाय गले से उतर जाती हैं। लेकिन कम ही लोग जानते होंगे भारत में चाय आयी कहाँ से और कैसे।
ऐसा माना जाता है कि भारत में चाय को ब्रिटिश द्वारा औपचारिक रूप से पेश किया गया था। ब्रिटिश चीन का चाय पर से एकाधिकार को हटाना चाहते थें। 1823 में स्कॉट्समैन रॉबर्ट ब्रूस की आसाम यात्रा के दौरान उनका परिचय एक विचित्र पौधे कैमेलिया सीनेन्सिस से हुआ,वहाँ के एक स्थानीय व्यापारी नें ब्रूस को सिंग्फो के लोगों से मिलवाया जो चाय के सामान ही कुछ पीते थें जिसका स्वाद इन्हें चीन के चाय की भांति प्रतीत हुआ। ब्रूस ने उन पौधों के नमूने एकत्र किए। लेकिन 1830 में उनकी मृत्यु के बाद उनके भाई चार्ल्स ने इन नमूनो को कलकत्ता परीक्षण के लिए भेजा। जो जांच के बाद चाय की पत्तियाँ पायी गयी और उसे "असामिका" नाम दिया गया।
ब्रिटिशों द्वारा इन पत्तियों पर लम्बे समयातंराल तक विभिन्न परिक्षणों और अथक प्रयासों के बाद पहली बार 1837 में चबुआ (ऊपरी असम) में वाणिज्यिक (Commercial) चाय के बागान की स्थापना की गयी। वहीं 1840 के शुरूआती दौर में चाय उद्योग ने आकार लेना शुरू किया। चीन के चाय के बीज जो पहले असम में उगाये गए थे, बाद में दार्जिलिंग और कांगड़ा के उच्च क्षेत्रों में उगाए गए जो वहाँ सफलतापूर्वक उगें।
ब्रिटिशों के जाने के बाद भी भारत में चाय का उद्योग खत्म नहीं हुआ। आज असम में 43,293, नीलगिरिस में 62,213 और दार्जिलिंग में केवल 85 चाय के बागान हैं।
ये तो हुई चाय के इतिहास की बात अब हम आपको बताते हैं चाय का लखनऊ में महत्व। आपको पता है लखनऊ में चाय सिर्फ एक पेय पदार्थ नहीं है, चाय यहाँ के लोगों के लिए योजनाओं, महत्वाकांक्षाओं और सपनों का एजेंडा है। जिसे राम मनोहर लोहिया अस्पताल के बाहर प्रसिद्ध “ग्रेजुएट चायवाला” की स्थापना करने वाले तीन बेरोजगार भाइयों गोविंद, गोपाल और माधव से बेहतर कोई नहीं जानता है। जब डिग्री होने के बावजूद भी इन्हें घर चलाने के लिए एक सभ्य नौकरी नहीं मिल पायी, तब इन्होंने इस छोटे व्यावसाय के बारे में योजना बनायी।
लखनऊ की चाय की बात हो रही हो और विश्व प्रसिद्ध शर्मा टी स्टाल का जीक्र ना हो ये संभव नहीं, स्वर्गीय ओम प्रकाश शर्मा द्वारा इसकी स्थापना की गयी थी और अब यह उनके बेटों दीपक और गोपाल द्वारा चलाया जा रहा है। ये विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें जश्न-ए-इतवार भी शामिल है। ये प्रसिद्ध हस्ति तनु वेड्स मनु और रांझना के लेखक हिमांशु शर्मा की भी पसंदीदा दुकान है। वे जब भी लखनऊ आते हैं, यहाँ की चाय का आनंद जरूर लेते हैं।
लखनऊ में आज “लोनली प्लेनेट ट्रेवल कंपनी” 124 अमरीकी डॉलर में अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों को "वर्तमान नवाब के वंश के साथ चाय पे चर्चा" प्रदान करते हैं।
1.https://tea101.teabox.com/brief-history-indian-tea-industry/
2.https://www.youthkiawaaz.com/2016/04/tea-culture-of-lucknow/
3.https://www.lonelyplanet.com/india/activities/tea-in-lucknow-with-the-nawab-of-awadh/a/pa-act/v-50182P272/356195
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