भारतीय संस्कृति में देवियों का विशेष महत्व है विशेषकर दुर्गा माता का। अन्य देवियों को इनका स्वरूप माना जाता है। आपने अक्सर देखा होगा कि दुर्गा माता की प्रतिमा या उनकी तस्वीर बिना शेर के पूरी नहीं होती है। लखनऊ शहर के उत्तरी पूर्वी भाग में बौद्ध और जैन धर्म का प्रमुख केंद्र श्रावस्ती स्थित है, जिसकी खोज वैदिक काल के राजा श्रावस्ती द्वारा की गयी थी। इस क्षेत्र के निकट साहेत-माहेत में उत्खनन के दौरान कई ऐतिहासिक वस्तुऐं एवं मूर्तियां पायी गईं, जिन्हें लखनऊ और मथुरा के संग्रहालय में संरक्षित रखा गया है। इनमें से एक प्रतिमा टेराकोटा से बनी माँ दुर्गा की शेर के साथ है, जो लखनऊ के संग्राहलय में संरक्षित रखी गयी है। यह मूर्ती 6ठी शताब्दी की मानी गयी है तथा ऊपर दिए गए चित्र में आप इसे देख सकते हैं।
क्यों दर्शाया जाता है माँ को हमेशा शेर के साथ, क्या संबंध है इनके मध्य? इसके पीछे एक कथा है:
माता पार्वती ने शिव से विवाह करने के लिए कड़ी तपस्या की, जिस कारण माता पार्वती का रंग सांवला पड़ गया। एक दिन शिव पार्वती वार्तालाप कर रहे थे तभी शिव ने माता पार्वती के रंग पर उपहास कर दिया। यह शब्द माता को चुभ गये, उन्होंने गोरा होने के लिए तपस्या प्रारंभ कर दी। उनकी तपस्या के दौरान एक भूखा शेर उन्हें अपना आहार बनाने हेतु वहाँ आया किंतु माता को तपस्या में लीन देख वह उनके तपस्या से उठने की प्रतीक्षा करने लगा। माता को तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गये किंतु वह शेर अपने स्थान से नहीं हिला। अंततः शिव द्वारा माता पार्वती को गोरी होने का वरदान दिया गया। माता ने तपस्या से उठने के पश्चात शेर को कैलाश में द्वार पाल के रूप में रख लिया। यह कथा दर्शाती है कि माता सभी बुरे विचारों वालों को भी अपनी शरण में स्थान देती हैं, बस आवश्यकता है उन्हें ढूंढने की।
वास्तव में भारत में शेर एक निवासी नहीं बल्कि एक प्रवासी जीव है। वर्ष 2013 में वाल्मिक थापर की एक पुस्तक आयी, जिसमें उन्होंने शेर और चीता को प्रवासी जीव बताया, जो अफ्रीका और मध्य एशिया से शाही परिवारों के मनोरंजन के लिए प्रशिक्षित करके भारत लाए जाते थे। धीरे-धीरे यह यहां की मूल प्रजाति में परिवर्तित होने लगे। 17वीं शताब्दी के मध्य में एशियन शेरों के अंधाधुन शिकार ने इनकी संख्या में तीव्रता से कमी लाई जिनमें से कई प्रजातियां विलुप्त हो गयी। भारत में लाए गये, इन शेरों का संरक्षण आवयश्क हो गया क्योंकि ये मिस्र की सभ्यता से जुड़ी प्रजाति की अंतिम श्रृंखला शेष रह गयी है। जो प्रमुख रूप से गिरि राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षित हैं। जिसे 20वीं सदी में शेरों के लिए संरक्षित किया गया। 1936 की गणना में 150 शेरों की संख्या ज्ञात की गयी, जो संरक्षण के बाद 2015 तक 523 हो गयी। भारत में शेरों को संरक्षण देने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई गयी हैं, जिन्होंने इनकी संख्या वृद्धि में योगदान दिया है।
संदर्भ :
1.https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10155026758546239&set=p.10155026758546239&type=3&theater
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Shravasti
3.https://www.quora.com/What-is-spiritual-meaning-of-Lion-on-which-Devi-Durga-sits
4.https://blogs.kent.ac.uk/barbarylion/2015/10/05/was-the-lion-ever-native-to-india/
5.http://www.pbs.org/wnet/nature/indias-wandering-lions-asiatic-lion-fact-sheet/14129/
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