कला की कहानी सदैव से ही मानव इतिहास से जुड़ी है। इन्ही कलाओं में से एक है अभिरंजित काँच की कला तथा काँच पर नक़्क़ाशी की कला, जिनका उपयोग प्राचीन काल से ही खिड़कियों में विविध रंगों के काँच के टुकड़ों को जोड़कर कोई चित्र प्रस्तुत करके किया जा रहा है। माना जाता है कि पाश्चात्य (Western) सभ्यता में बारहवी सदी (12th Century) में गोथिक शैली के भवनों के साथ-साथ इस कला को भी विशेष रूप से प्रोत्साहन मिला और विभिन्न विख्यात गिरजाघरों के दरवाजों, खिड़कियों में रंगीन काँच के टुकड़ों का उपयोग होने लगा।
अभिरंजित काँच का कहाँ और कब प्रथम निर्माण हुआ, यह तो स्पष्ट नही है, परंतु संभावना यही है कि अभिरंजित काँच का आविष्कार भी काँच के आविष्कार के सदृश पश्चिमी एशिया (Western Asia) और मिस्र में हुआ। इस कला की उन्नति एवं विस्तार 12वीं शताब्दी से आरंभ होकर 14वीं शताब्दी के शिखर पर थी। अभिरंजित काँच का प्रयोग विशेषकर ऐसी खिड़कियों में होता है जो केवल प्रकाश आने के लिए लगाई जाती हैं। इसी उद्देश्य से गिरजाघरों के विशाल कमरों में विशाल अभिरंजित काँच, केवल प्रकाश आने के लिए दीवारों में लगाए जाते हैं। ये खिड़कियां दिन के समय सूर्य के प्रकाश में तथा सूर्यास्त के बाद मोमबत्तियों के प्रकाश में अंदर तथा बाहर के दृश्यों को अत्यधिक मनोहारी बना देती है और इन काँचों में से होकर जो प्रकाश भीतर आता है उसे शांति और धार्मिक वातावरण उत्पन्न होने में बहुत कुछ सहायता मिलती है। पहले इस खिड़कियों पर बाइबिल की कथाओं जैसे ईसा का जन्म, बचपन, धर्मप्रचार, सूली अथवा माता-मरियम से सम्बन्धित भावपूर्ण चित्रों को चित्रित किया जाता था। इस कला का एक नमूना शिमला क्राइस्ट चर्च (यह उतरी भारत में दूसरा सबसे पुराना चर्च है) में भी देखनें को मिलता है। अंग्रेजी शासनकाल में बना यह चर्च आज भी शिमला की शान बना हुआ है। वर्ष 1857 में नियो-गोथिक (neo-gothic) कला में बने इस चर्च की खिड़कियां रंगीन ग्लासों से सजी हुई है।
इस प्रकार यह सुंदर कला गिरजाघरों से निकल कर हर जगह फैल गयी, और गिरजाघरों के अलावा भी इसे कई ऐतिहासिक इमारतों में देखा जाने लगा। इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कैसरबाग में स्थित एक श्वेत संगमर्मर निर्मित महल सफ़ेद बारादरी। इसका निर्माण नवाब वाजिद अली शाह ने 1854 में इमामबाड़े के रूप में उपयोग के लिए बनाया गया था। 1856 में अवध के अधिग्रहण उपरान्त, बारादरी का प्रयोग ब्रिटिश द्वारा अपदस्थ नवाब के शासन के लोगों के निवेदन व शिकायतें सुनने हेतु कोर्ट के रूप में किया जाने लगा था। बाद में 1923 के लगभग इसको ब्रिटिश महारानी द्वारा स्वामिभक्ति स्वरूप अवध के तालुकदारों को उनके “अन्जुमन-ऐ-हिंद” नाम के संघ को दे दिया गया था। इन संघ का नाम बाद में बदलकर ब्रिटिश असोसिएशन ऑव अवध (British India Association of Awadh) नाम कर दिया गया था।
सफ़ेद बारादरी में बारादरी का अर्थ बारह दरवाजे वाला एक खूबसूरत बना मंडप होता है। इसका परिसर बागों, फव्वारों, मस्जिदों, महलों, हरम और आंगन से घिरा हुआ है। केंद्र में सफेद बारादरी स्थित है। यह कई छोटी-छोटी खूबसूरत ईटों से गोल घेरे में बनीं रंगीन शीशों से खिड़कियाँ और दरवाजे सजे है। नीचे दिए गए फोटो मे आप देख सकते है कि किस प्रकार रंगीन शीशों द्वारा इस खिड़की को सजाया गया है। जब दिन के समय इस पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो अंदर इन रंगों की रोशनी का दृश्य अत्यधिक मंत्रमुग्ध करने वाला होता है।
इस बारादरी में आप रंगीन शीशों के अलावा नक्काशीदार शीशों से सजे खिड़कियाँ और दरवाजे भी देखने को मिलेंगे। ग्लास नक़्क़ाशी में अम्लीय (Acidic), कास्टिक (Caustic), या घर्षण पदार्थों की सहयता से ग्लास की सतह पर सुंदर आकृतियां बनाई जाती हैं। नीचे दे गए चित्र में फोटो मे आप देख सकते है की किस प्रकार ग्लास नक़्क़ाशी के माध्यम से आकृतियां के साथ-साथ “अन्जुमन-ऐ-हिंद” संघ का नाम भी बनाया गया है।
आज ये कलाएं घरों में आमतौर पर पेंटिंग्स, सिरेमिक, मूर्तियों तथा रंगीन काँच के दुर्लभ कलात्मक पैनलों में दिखाई देती है और घर की सजावट के लिए एक विदेशी आयाम प्रदान करती है। जब भी इन खिड़की या पैनल पर (कृत्रिम और प्राकृतिक) प्रकाश पड़ता है तो एक लुभावनी रंगों की एक श्रृंखला आपके घर की शोभा और भी बढ़ा देती है।
संदर्भ:
1. https://www.dnaindia.com/lifestyle/report-do-you-want-to-have-this-stunning-peice-of-luxury-2214611© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.