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फसल उत्पादकता बढ़ाने में जल-वायु, मृदा (Soil) के साथ साथ बीज की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। फसलों का उत्पादन बीज की गुणवत्ता पर भी निर्भर करता है। जिसकी गुणवत्ता बढ़ाने हेतु अनेक देशों द्वारा विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। आज बाज़ार में दो प्रकार के बीज उपलब्ध हैं प्राकृतिक (पुराने बीज, स्थानीय बीज) और कृत्रिम(आनुवांशिक बीज)। जिसमें कृत्रिम बीजों का उपयोग तीव्रता से बढ़ रहा है तथा प्राकृतिक बीज की उपलब्धता घटती जा रही है।
पुराने बीजों के लाभ को गुजरात की एक कहानी के माध्यम से जानते हैं, गुजरात की एक महिला नावाली नायक ने अपने खेतों में जहां उसके परिवार वाले पिछले 15 वर्षों से मक्के की खेती कर रहे थे वहां उसने छिपकर बाजरे के पुराने बीज बो दिये। इन बीजों से बाजरे की फसल का अच्छा उत्पादन हुआ। कुछ समय पश्चात यह महिला बाजरे की फसल उत्पन्न हेतु आदर्श के रूप में प्रसिद्ध हो गयी। ये आज बाजरे की उस फसल का भी उत्पादन कर रही हैं, जिसे प्रायः विलुप्त माना गया साथ ही ये आज एक बीज बैंक (Seed Bank) की देखरेख भी कर रही हैं। नावाली गांव की महिलाओं को इस शर्त पर बीज लोन(Seed Loan)उपलब्ध कराती हैं कि वे बीज के बदले 1.5 गुना बीज वापस करेंगे। यह बीजों की बचत और संरक्षण हेतु एक बड़ा और एतिहासिक कदम है साथ ही इन्होंने महिला किसानों के लिए मिसाल कायम कर दी है।
नावाली नायक के इस कदम ने गुजरात जैसे कम वर्षा वाले स्थान में फसल की उत्पादकता को बढ़ा दिया तथा लोगों को परंपरागत अनाज की ओर अग्रसर किया क्योंकि आधुनिक मनुष्य इन खाद्य पदार्थों से कहीं दूर होता जा रहा है। महिलाओं के भूमि अधिकारों का समर्थन करने वाली गैर सरकारी संगठन (NGO) 'आनंदी ' गुजरात में प्रत्येक तीन माह पश्चात महिला कृषकों के लिए बीज विनिमय का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। साथ ही इन्होंने विभिन्न फसलों के व्यापार के लिए बीज उत्सव(Seed Festival)का आयोजन कराया।
आज भारतीय बाज़ारों में आनुवांशिक बीजों (Genetic Seed) का विक्रय तीव्रता से बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी कृषि व्यापारिक कंपनी (मोनसेन्टो) को भारत में एक अच्छा बाज़ार मिला, जिसने राजस्थान और आंध्र प्रदेश की राज्य सरकार से आनुवांशिक प्रौद्योगिकी (Genetic Technology) को प्रसारित करने की शर्त पर (Memorandum of Understanding)में हस्ताक्षर किये। यह भारतीय किसानों को कृत्रिम बीज (Artificial Seed) के उपयोग और लाभ से अवगत कराएगा, जो शायद उनकी स्थिति सुधारने में सहायक सिद्ध होगा।
भारत के अधिकांश किसान गरीब और अशिक्षित हैं, जो किसी बीज के भावी दुष्प्रभाव का आंकलन नहीं कर पाते। जिसके परिणाम संपूर्ण जीव-जगत (कीट से लेकर मनुष्य तक) को भुगतने पड़ते हैं। अर्थात हम यहां बात कर रहे हैं आनुवांशिक बीजों के प्रयोग से होने वाली हानि की। किसानों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशक रसायनों (जैसे नियोनिकोटिनौइड्स, डी.डी.टी आदि) और आनुवांशिक बीज से पौधों में परागण करने वाले जीवों जैसे मधुमक्खी, तितलियों आदि की मृत्यु हो रही है। मधुमक्खियां फसल उत्पादन अत्यंत सहयोगी होती हैं किंतु विगत समय में नियोनिकोटि रसायन के प्रयोग से इनकी संख्या में अत्यंत कमी आयी है। ये रसायन मनुष्यों में कैंसर का भी कारण बनते हैं।
भौतिक विज्ञानी (Physicist), पर्यावरण कार्यकर्ता (environmental activist), और लेखिका ‘वंदना शिव’ विश्व भर में लोगों को कृत्रिम बीज के कुप्रभाव और संधारणीय कृषि (sustainable agriculture) के प्रति जागरूकता फैला रही हैं। इनके अनुसार बीज जीवन का प्रतीक हैं। किंतु मोनसेंटो जैसी कंपनी ने रसायनों के प्रयोग से इसका स्परूप ही परिवर्तित कर दिया है। इन्होंने इस प्रकार की बीज निर्माता कंपनियों को संदेश दिया है कि बीज एक प्राकृतिक संपदा है, इसका अविष्कार नहीं किया जाना चाहिए।
1960 की हरित क्रांति के बाद कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि में रसायनों का प्रवेश हुआ। इसके कुछ सकारात्मक प्रभाव नहीं देखे गये जिस स्थान पर कपास का उत्पादन सर्वाधिक होता था, वहां किसानों के आत्महत्या की संख्या सर्वाधिक हो गयी। रसायनों के प्रयोग भूमि की उत्पादकता को समाप्त कर रहे हैं। अंततः वंदना पारंपरिक बीज के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कहती हैं। जो सम्पूर्ण जीव जगत के लिए एक मूलभूत आवश्यकता बनती जा रही है।
संदर्भ :
1. https://www.newsdeeply.com/womensadvancement/articles/2018/08/23/how-ancient-grains-and-a-seed-bank-turned-life-around-for-rural-women