तस्वीरें कभी-कभी शब्दों से ज्यादा कह जाती हैं। इसका एक उदाहरण है, मुहर्रम के विषय में 18वीं और 19वीं शताब्दी में पेंसिल और पानी के रंगों (Watercolour) से तैयार की गयी तस्वीरें, जो उस दौरान के लोगों के दर्द को स्पष्ट दर्शाती हैं। वह दर्द है जो आज भी मुस्लिम समुदाय के मन में स्पष्ट झलकता है। हिजरी सन् (इस्लामी वर्ष) का पहला महिना मुहर्रम होता है और यह हिजरी सन् के चार पवित्र महीनों में से एक है। हजरत मुहम्मद साहब (अल्लाह के पैगम्बर) ने इसे अल्लाह का महीना कहा है, इन्होंने कहा रमज़ान के बाद इस महीने में सबसे फलदायी रोज़े होते हैं। आखिर क्या कारण रहा कि इतनी पवित्रता और अहमियत के बाद भी यह त्यौहार शोक पर्व में बदल गया।
680 ईस्वी (मुहर्रम के महीने) में बादशाह यज़ीद और हज़रत इमाम हुसैन (इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद के नाती) के मध्य कर्बला में एक जंग हुयी। जिसमें हज़रत इमाम हुसैन सहित उनके परिवार के अन्य सदस्य भी शहीद हो गये। ईस्लाम की रक्षा हेतु दी गयी हज़रत इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद रखने के लिए शिया समुदाय मुहर्रम के दसवें दिन को शोक के रूप में मनाते हैं।
अवध (लखनऊ) के नवाब असफ़ुद्दौला ने 1775-1797 में मुहर्रम मनाने के लिए इमामबाड़ा की इमारत का निर्माण कराया। इनकी मृत्यु के बाद इस इमारत को इनके मकबरे के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। एक गुमनाम चित्रकार ने एक सभा के साथ असफ़ुद्दौला को मुहर्रम के अवसर पर भाग लेते हुए चित्रित किया है। यह रात्रि का चित्र पानी के रंगों और पेंसिल से तैयार किया गया था जिसे आप ऊपर देख सकते हैं।
आज भी भारत के कई शहरों में शिया मुसलमान मातम मनाते हैं जिसमें लखनऊ इसका प्रमुख केंद्र है। इमामबाड़े की इमारत में लोग एकत्रित होकर एक साथ मातम मनाते हैं। यहां महिलाएं काले बुर्के को पहने हुए मातम मनाती हैं और पुरूष अपना दर्द 'या हुसैन, हम न हुए' (अर्थात तुम्हारे साथ शहीद होने के लिए हम उपस्थित ना थे) कह कर व्यक्त करते हैं। मुहर्रम में खाया जाने वाला पकवान खीचड़ा या हलीम है, इसके पीछे की विचारधारा है कि कर्बला की जंग के दौरान जब भोजन समाप्त हो गया तो फौजियों ने हलीम ही खाया था।
18वीं 19वीं सदी में बनाये गये चित्रों में मुहर्रम के अवसर पर रात्री में लोग एकत्रित होकर सामूहिक रूप से शोक व्यक्त करते हुए दर्शाये गये हैं। जिसने आज थोड़ा आधुनिकता का स्वरूप ले लिया है। लोग सामूहिक रूप से एकत्रित होते हैं, साथ ही अपने एकत्रित होने वाले स्थान को लाइटों से सजाते हैं, तथा विभिन्न प्रकार की झांकियां निकालते हैं।
संदर्भ:
1.https://www.dawn.com/news/1433872
2.https://deccanchronicle.com/videos/news/muslims-observe-muharram-in-lucknow.html
3.http://www.bl.uk/onlinegallery/onlineex/apac/addorimss/t/019addor0003230u00000000.html
4.https://www.bbc.com/hindi/india-45597228
5.https://en.wikipedia.org/wiki/Muharram
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