भारत के स्कूलों में बच्चों को सज़ा देना या उनसे मारपीट करना एक आम बात सी है। यदि कोई बच्चा समय पर स्कूल या होमवर्क (Homework) पूरा करके नहीं आता है तो अध्यापक या प्रधानाचार्य द्वारा उसे सख्त सज़ा सुनाई जाती है। लेकिन क्या कभी उन अध्यापकों और प्रधानाचार्य ने ये सोचा है कि इससे बच्चे पर क्या असर पड़ता होगा। आइए जानते हैं स्कूलों में दिए जाने वाले शारीरिक दंड और उत्पीड़न के बारे में।
कोई भी सज़ा जिसमें भौतिक बल का उपयोग हो, जिससे काफी दर्द या चोट महसूस हो, और वहीं कोई भी अपमानजनक और क्रूर डांट, धमकी, या बच्चे का उपहास करना भी शारीरिक दंड कहलाता है। इन सारी शारीरिक गतिविधियों के कारण बच्चों पर काफी मानसिक प्रभाव पड़ता है। यूनिसेफ के अनुसार इससे बच्चे के अंदर डर की भावना उत्पन्न हो जाती है, उनके व्यवहार में काफी अंतर आने लगता है, जिसे हमारे द्वारा कई बार नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है। शारीरिक दंड न केवल भावनात्मक व्यवहार को बल्कि बच्चे के अकादमिक प्रदर्शन को भी प्रभावित करता है। स्कूलों में प्रमुख रूप से तीन प्रकार के शारीरिक दंड दिये जाते हैं:
• शारीरिक दंड:
1. स्कूल के बैग उनके सिर पर रखवाना,
2. उन्हें पूरे दिन सूरज में खड़ा रखना,
3. उन्हें बेंच पर खड़ा करना,
4. उनके हाथ खड़े करवाना,
5. पैरों के नीचे हाथों से उनके कान पकड़वाना (मुर्गा बनाना),
6. बच्चों के हाथों में मरना,
7. कान मरोड़ना।
• भावनात्मक दंड:
1. दुर्व्यवहार और अपमानजनक डांट लगाना,
2. कक्षा में पीछे खड़ा कर देना,
3. उन्हें कुछ दिनों के लिए निलंबित करना,
4. उनकी पीठ पर कागज़ चिपकाना और उसपर अपमानजनक वाक्य लिखना, जैसे “मैं एक गधा हूं”, “मैं बेवकूफ हूँ” आदि,
5. बच्चों को हर कक्षा में ले जा कर अपमानित करना,
6. लड़कों की शर्ट उतरवाना।
• नकारात्मक प्रबलन
1. उन्हें अंधेरे कमरे में बंद करना,
2. बच्चों को माता-पिता से स्पष्टीकरण पत्र लाने के लिए कहना,
3. बच्चों को गेट के बाहर खड़ा रखना,
4. बच्चे से परिसर को साफ करवाना,
5. बच्चों को प्रिंसिपल के पास भेजना,
6. शिक्षक के आने तक उन्हें खड़ा रखना,
7. बच्चे को टी.सी. देने की धमकी देना,
8. उनके बेवजह अंक काटना
9. उन्हें कक्षा में जाने की अनुमति न देना।
भारतीय दंड संहिता द्वारा शारीरिक दंड को बंद करने के लिए आई.पी.सी. सेक्शन 83 लागू किया गया है। इसके तहत कोई भी बच्चा जिसने होमवर्क नहीं किया हो या स्कूल यूनिफार्म में ना आने पर, उसे स्कूल प्रशासन द्वारा शारीरिक दंड या किसी भी प्रकार का मानसिक उत्पीड़न नहीं दिया जानी चाहिए। यदि किसी भी स्कूल में ऐसा होता है, तो अभिभावक को इस संबंध में प्रधानाचार्य से बात करनी चाहिए, उनके द्वारा भी कोई कार्यवाही ना करने पर पुलिस स्टेशन पर संबंधित शिकायत दर्ज करावा सकते हैं। किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 23 बच्चों की क्रूरता पर रोक लगाती है। यह कानून शिक्षकों और माता-पिता को इस अपराध के लिए नहीं बख्शता है। वहीं आई.पी.सी. सेक्शन 89 के तहत जब तक कोई अपराध तर्क संगत ना हो, अध्यापकों द्वारा बच्चे पर अत्यधिक बल का उपयोग करना एक दंडनीय अपराध है।
लेकिन इन कानूनों का अनुसरण आज भी कई स्कूलों में नहीं हो रहा है। हाल ही में रामपुर में एक प्रधानाचार्य द्वारा अनुशासन के नाम पर एक बच्चे की बेंत के डंडे से काफी पिटाई की गयी। कारण जानकर आप हैरान रह जाएंगे। एक छात्र कक्षा में गाना गा रहा था, तभी प्रताड़ित छात्र की अचानक हँसी निकल गई। इस बात की शिकायत मॉनिटर और सहायक मॉनिटर ने प्रधानाचार्य से की तो उन्होंने उसे बेरहमी से मारा, साथ ही उसके पूरे शरीर पर नीले निशान पड़ गए। प्रताड़ित छात्र की माँ के द्वारा जब प्रधानाचार्य से इस व्यवहार का विरोध किया गया तो प्रधानाचार्य ने उन्हें टी.सी. देने की धमकी दे दी। बाद में प्रताड़ित छात्र के माता-पिता द्वारा प्रधानाचार्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई गयी।
चाइल्ड साइकलॉजी (Child Psychology) अर्थात बाल मनोविज्ञान से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक यह मानते हैं कि बच्चों को मार-पीट या डांटने के बजाए प्यार से समझाना चाहिए। हमारे समाज में अनुशासन को डांटने और मार-पीट करने तक सीमित कर दिया गया है। मार-पीट करने या डांटने के बजाए बच्चों को इस तरह से शिक्षित किया जाए कि वह अनुशासन के महत्व को समझे और वह स्वयं ही खुद को अनुशासित रखें।
संदर्भ:
1.http://unicef.in/Story/197/All-You-Want-to-Know-About-Corporal-Punishment
2.https://www.urbanpro.com/a/punishment-in-schools-in-india-what-the-law-says/2653029
3.http://www.legalservicesindia.com/articles/punish.htm
4.https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/rampur/student-beaten-by-principal-in-rampur
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