आज अनंत चतुर्दशी है और आज ही के दिन गणेश जी का विसर्जन भी किया जाता है। गणेश चतुर्थी का त्यौहार 10 दिनों तक मनाते हैं, और इस त्यौहार के 11 वें दिन गणेश विसर्जन करते हैं। मूर्ति को एक नदी या समुद्र में डुबोया जाता है। मान्यता यह है कि भगवान् गणेश को समुन्द्र में डुबो के कैलाश पर्वत की और भेजा जाता है और जाते-जाते भगवान् गणेश हमारे दुःख और परेशानियाँ भी हमसे दूर अपने साथ ले जाते हैं।
आइए आज गणेश विसर्जन के इस पावन अवसर पर जानते हैं गणेश मूर्ति की उत्पत्ति से जुड़ा इतिहास। भारत में पाई जाने वाली अब तक की सबसे पुरानी गणेश प्रतिमा ऊपर दिए गए चित्र में प्रस्तुत की गयी है। चित्र में आप देख सकते है कि दोनों भाई, गणेश और कार्तिकेय, मोदक के लिए लड़ते/खेलते हुए दिख रहे हैं। यह मूर्ति भीतर गाँव मंदिर (कानपुर के नज़दीक), पाई गई थी तथा इस मूर्ति का निर्माण पांचवी शताब्दी के आस-पास हुआ था। वर्तमान में यह मूर्ति लखनऊ के सरकारी संग्रहालय में स्थित है। यह मूर्ति पत्थर की ग्रेको-रोमन मूर्तिकला तकनीक से स्पष्ट रूप से प्रभावित है।
यह पांचाल क्षेत्र की टेराकोटा कला है, जिसका मुख्यालय रामपुर/बरेली के पास उस समय के महानगर आहिक्षेत्र में था। पांचाल की गौरवशाली टेराकोटा कला गंगा-यमुना क्षेत्र में 2 ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी तक फैली थी। टेराकोटा से जुड़े सभी शहरों एवं मंदिरों (भीतर गाँव) का उत्थान भारत के कला के सबसे महानतम चरण में हुआ जोकि गुप्त काल माना जाता है। टेराकोटा के उस समय के ईंटा बनाने वाले शहर वर्तमान में भी ईंट बनाने के लिए मशहूर हैं जो आज इटावा के नाम से जाना जाता है। 5वीं शताब्दी तक विदेशी प्रभाव टेराकोटा में भी दिख रहा था। पंचाल कस्बों में ग्रीक और फारसी बस्तियों का प्रमाण मिला है, लेकिन इसका विस्तार से अध्ययन अभी तक नहीं किया गया है।
संदर्भ:
1. https://goo.gl/Ps6axh
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