चंद्रकांता का नाम सुनते ही हमें याद आती है एक भारतीय टेलीविज़न सीरिज़, जो आंशिक रूप से देवकीनन्दन खत्री द्वारा रचित एक तिलिस्मी हिन्दी उपन्यास (चंद्रकांता) पर आधारित थी। यह मूल रूप से दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर 1994 और 1996 के बीच प्रसारित किया गया था, और निरजा गुलेरी द्वारा बनाया, लिखा, और निर्देशित किया था। उन दिनों ये धारावाहिक काफी लोकप्रिय भी हुआ था। जिन्होंने इस सीरिज को देखा है, इसका नाम सुनते ही उनके मन में जरुर इस धारावाहिक का टाइटल सांग ("नवगढ, विजयगढ़ में थी तकरार....नौगढ़ का था जो राजकुमार...चंद्रकांता से करता था प्यार") फिर से स्मरण हो गया होगा। आप इस धारावाहिक का पहला एपिसोड नीचे दिए गए वीडियो में भी देख सकते हैं।
बाबू देवकीनन्दन खत्री (जन्म 29 जून 1861 पूसा, मुजफ्फ़रपुर, बिहार - मृत्यु 1 अगस्त 1913) ने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोंडा, कटोरा भर, भूतनाथ जैसी रचनाएं की थी। परंतु उपन्यास ‘चंद्रकांता’ (1888 - 1892) का उनके लेखन जीवन में बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया, कहा जाता है कि इस उपन्यास को पढ़ने के लिये लाखों लोगों ने हिंदी सीखी। यह उपन्यास चार भागों में विभक्त है। बाबू देवकीनंदन खत्री ने 'तिलिस्म' (जादुई यंत्र या आकर्षण), 'अय्यार' (एक प्रकार का योद्धा) और 'अय्यारी' जैसे शब्दों को हिंदीभाषियों के बीच लोकप्रिय बनाया। वे लगातार कई-कई दिनों तक चकिया एवं नौगढ़ के बीहड़ जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की खाक छानते रहते थे। इन्हीं की पृष्ठभूमि में अपनी तिलिस्म तथा अय्यारी के कारनामों की कल्पनाओं को मिश्रित कर उन्होंने चन्द्रकान्ता उपन्यास की रचना की। इसकी लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इसी कथा को आगे बढ़ाते हुए दूसरा उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’ (1894 - 1904) लिखा जो चन्द्रकान्ता की अपेक्षा कई गुना रोचक था। उनका यह उपन्यास भी अत्यन्त लोकप्रिय हुआ।
चन्द्रकान्ता धारावाहिक को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। ये प्रेम कहानी, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ़ और विजयगढ़ के बीच जन्म लेती है, जिसमें तिलिस्मी और अय्यारी के अनेक चमत्कार पाठक को आश्चर्यजनक कर देते हैं। विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ़ के राजकुमार विरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है, लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। हांलांकि इसका ज़िम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देखता है। जब क्रूर सिंह अपने प्रयास में असफल हो जाते हैं तो वह शक्तिशाली पड़ोसी राज्य चुनारगढ़ (मिर्ज़ापुर के चुनार में स्थित किले की ओर इशारा करते हुए, जिसने खत्री को ‘चंद्रकांता’ लिखने की प्रेरणा दी थी) के राजा शिवदत्त से मिल जाता है। क्रूर सिंह के कहने से शिवदत्त चंद्रकांता को पकड़ लेते हैं और जब चंद्रकांता शिवदत्त से दूर भागती है तो वो एक तिलिस्म में खुद को कैद पाती है। उसके बाद कुंवर वीरेंद्र अय्यारों की मदद से शिवदत्त के साथ लड़ कर तिलिस्म तोड़ देते हैं। रहस्यों से भरे इस धारावाहिक को क्रूर सिंह के षड्यंत्र एवं वीरेन्द्र विक्रम के पराक्रम और तिलिस्म तथा अय्यारों का वर्णन अत्यधिक रोचक बना देता हैं।
इस सीरियल का प्रसारण 1996 में कानूनी विवादों के कारण रोक दिया गया था और निर्माताओं को पुनर्निर्माण के लिए अदालत में मुकदमा दायर करना पड़ा था। भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, चंद्रकांता को 1999 में दूरदर्शन द्वारा पुनरारंभ किया गया। इसके पात्र एक लम्बे समय तक लोगों के दिलों में बने रहे थे। अब ये कहानी फिर से सहारा वन (चंद्रकांता) और लाइफ ओके (प्रेम या पहेली) पर नए ढंग से दिखाई गई है। इन सीरियल में युद्ध, तिलिस्म, बदले की भावना को एक नए रूप में लोगों के सामने लाया गया है, जो लोगों को रोमांचित कर देता है।
संदर्भ:
1. https://wikivisually.com/wiki/Chandrakanta_(novel)
2. https://goo.gl/rY126P
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Chandrakanta_(TV_series)
4. https://wikivisually.com/wiki/Kahani_Chandrakanta_Ki
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